एकत्रित भाव से ईश्वर प्रणिधान और धर्मीय आलोचना करने का नाम धर्म चक्र है। धर्म चक्र में सब कोई समान आसन पर पंक्तिबद्ध बैठकर ईश्वर प्रणिधान तथा दर्शनशास्त्र धर्मशास्त्र एवं समाजशास्त्र पर चर्चा करने का प्रावधान है। धर्म चक्र मिलित सभा करके मंत्रणा करने की अनुमति भी देता है। आध्यात्मिक यात्रा में धर्म चक्र महत्व अवश्य ही स्वीकार्य है। इसलिए धर्म चक्र की व्यवस्था मिली है।
चर्याचर्य की व्यवस्था के अनुसार सप्ताह में कम से कम एक बार धर्म चक्र का आयोजन किया जाएगा। जिसमें इकाई विशेष के सभी साधक उपस्थित होकर मिलित ईश्वर प्रणिधान एवं धर्मीय आलोचना करेंगे। इससे सामुहिक ऊर्जा का सर्जन होता है तथा सामाजिक गुणों का विकास होता है। एक आध्यात्मिक यात्री को समाज के अनुशासन में रहते हुए प्रकृति के बंधन से मुक्त होने की यात्रा करनी चाहिए। इससे धर्म की रक्षा होती तथा धर्म उसकी रक्षा करता है। आध्यात्मिक यात्री के लिए धर्म के पथ का सदा वरण करना होता है। इन गुणों का सर्जन एवं विकास धर्म चक्र में होता है।
धर्म चक्र एक वैदिक मंत्र संगच्छध्वम् पर आधारित है।
संगच्छध्वं संवदध्वं संवो मनांसि जानताम्।
देवा भागं यथा पूर्वे सञ्जानाना उपासते।।
समानी व आकूति: समाना ह्रदयानि व:।
समानमस्तु वो मनो यथा व: सुसहासति॥
अर्थात- हम सब एक साथ चलें; एक साथ बोलें; हमारे मन एक हों। प्राचीन कालीन देवगण की भांति मिलित ईश्वर प्रणिधान करें।।
हमारा उद्देश्य समान हो, हमारी हृदय की भावना समान हो। हमारे मन के विचार समान हो, हम सब एक हो जाए॥
इस मन्त्र का मूलभाव हमें शिक्षा देता है कि हम सदैव एक रहे, मिलकर सांसारिक एवं आध्यात्मिक कार्य संपन्न करें। हमारी एकता में कोई विभेद न रहे। ऐसा महान उद्देश्य लेकर धर्म चक्र घूमता है। धर्म चक्र के इस घूर्णन से एक दिन वैश्विक एकता का निर्माण होगा। यही धर्म चक्र का उद्देश्य है।
आध्यात्मिक यात्रा में मिलित भाव से चलने से गति में द्रुति तथा आनन्ददायक होती है। लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग शीघ्र ही खुल जाता है। यद्यपि आध्यात्मिक यात्रा व्यक्तिशय है तथापि आध्यात्मिक यात्री को मिलकर ही आगे बढ़ने की मंशा रखनी चाहिए। इससे हमारी साधना अच्छी होती है तथा विप्रोचित्त सेवा भी होती है। समाज में आध्यात्मिकता के प्रति तथाकथित सृजित नकारात्मक सोच भी दूर हो जाती है। जिसके चलते हम आने वाले युग के साधकों के लिए अच्छा परिवेश देकर जाते है।
इतिहास पहला धर्म चक्र ऋग्वेद युग में देखा गया। ऋषि मुनियों ने मिलकर उपासना करने तथा धर्मीय आलोचना करने का महत्व स्वीकार जिसके चलते वेदों एवं दर्शन शास्त्र,धर्म शास्त्र एवं समाज शास्त्र की रचना हुई। उसके बाद बौद्ध एवं जैन मत में धर्म चक्र के दर्शन हुए जिसके चलते स्थानीय जन एवं जन सामान्य धर्म चक्र से परिचित हुए। तत्पश्चात आधुनिक युग में आनन्द मार्ग धर्म चक्र लेकर आया है। जिसमें विश्व एकता का बीज बोया जा रहा है।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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