आसन‌ (A'san)


साधना के बाद आसन करने व्यवस्था मिली हुई है। आसन शब्द का शाब्दिक अर्थ - जिस स्थित में सुख से रह सकता है, उसे आसन कहा जाता है। शरीर को किसी विशेष स्थित में मोड़कर श्वास, दृष्टि, ग्रंथि एवं चित्त के व्यायाम को आसन कहा जाता है। जिस स्थित में श्वास, दृष्टि, ग्रंथि एवं चित्त का व्यायाम नहीं होता है ‌उस स्थितियों को कसरत, करतब अथवा जिमनास्टिक इत्यादि कहा जाता है। आसन का संबंध चित्त से होने के कारण आसन को आध्यात्मिक जगत की संपदा में रखा गया है। आध्यात्मिक जगत की संपदा में क्रिया, नाद, मुद्रा, बंध एवं प्राणायाम भी है। 

क्रिया - श्वास तथा शरीर की वे स्थितयाँ जिसका संबंध शरीर एव श्वास से हो उनको क्रियाएँ कहा जाता है, अनुलोम विलोम,  कपाल भारती इत्यादि

नाद - वाक शक्ति एवं शरीर से संबंधित क्रिया को नाद कहा जाता है। जैसे ओमकार, सिंह गर्जना, हास्यनाद, भ्रामरी इत्यादि। 

मुद्रा - जिन स्थितियों का संबंध श्वास, शरीर एवं ग्रंथि  से होता है, मुद्रा की श्रेणी में रखा गया। उडयन मुद्रा इत्यादि

बंध - इसका संबंध भी श्वास, शरीर एवं ग्रंथि से होता है। इसमें विशेष मुद्रा में बंध‌ लगाया जाता है महाबंध इत्यादि। 

प्राणायाम - साधना जगत प्राणायाम को छोड़ साधारण एवं विशेष दो श्रेणी के प्राणायाम होते हैं। इसका संबंध श्वास, चित्त एवं एकाग्रता से होता है। 

सामान्य यौगिक क्रियाएँ - सामान्य स्वास्थ्य के लिए की जाने वाली योगिक क्रियाओं को इस श्रेणी में रखा गया। इनका संबंध उपरोक्त योगिक विषयों से होता है। 

मानव शरीर का संचालन में ग्रंथि एवं हार्मोंस (ग्रंथि रस) महत्व होता है तथा तंत्रिका तंत्र एवं चित्त की क्रियाएँ इससे सीधी प्रभावित होती है। इसलिए आसन के द्वारा ग्रंथि एवं ग्रंथि रस (हार्मोंस) को मूल अवस्था में बनाया रखा जाता है। इसके साथ दृष्टि एवं चित्त का संबंध जुड़ जाने से  आध्यात्मिक यात्रा में सहायक होता है। नियमित आसन अभ्यार्थियों के आध्यात्मिक यात्रा सुगम रहती तथा स्वास्थ्य भी अच्छा रहने से आनन्द का रसास्वादन करते रहते हैं। 

यम नियम मनुष्य को साधना के तैयार करते तथा आसन मनुष्य साधना में रुचि पैदा करते हैं। इसलिए साधक के लिए यम नियम पालना एवं आसन का अभ्यास अनिवार्य कर दिया गया है।
------------------------------
श्री आनन्द किरण "देव"
Previous Post
Next Post

post written by:-

0 Comments: