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Karan Singh
करण सिंह की कलम से
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भारतवर्ष की स्वाधीनता के बाद एक संप्रभुता संपन्न राष्ट्र के रूप में अन्तर्राष्ट्रीय जगत में पहचान मिली। यद्यपि राष्ट्र के विचार है, जिसके आधार पर वहाँ के रहने वाले संगठित होते है तथा अपने सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं धार्मिक हित साधते है। एक ही देश में दो यहाँ इससे अधिक राष्ट्र भी देखे गए हैं। मूलतः राष्ट्र अपना एक विचार एवं उसके विरोध को लेकर बनाता है। चूंकि राष्ट्र आज हमारा आलोच्य विषय नहीं है। इसलिए इस पर चर्चा नही करेंगे।
भारत देश में कानून के समक्ष सभी नागरिक समान है। इसमें भाषा, नस्ल, लिंग, निवास, जाति, सम्प्रदाय आदि किसी भी भेदमूलक तत्व के आधार पर भेदभाव नही किया जाता है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो भारत देश के नागरिकों की एक ही पहचान है - भारतीयता अर्थात भारत का नागरिक। इसलिए समान नागरिक संहिता पर चर्चा आवश्यक है।
समान नागरिक संहिता का अर्थ है कि देश के सभी नागरिकों के लिए सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक एवं धार्मिक जगत के लिए समान कानून। भारतवर्ष राजनैतिक मामले में सभी को समान अधिकार देता है, आर्थिक हित एवं कार्य के लिए सभी समान अवसर सुलभ करने की बात कहता है। धार्मिक मामले में व्यक्ति को स्वतंत्र छोड़ा है तथा राज्य इसके लिए निरपेक्ष है। लेकिन सामाजिक मामले में सभी मजहब के अपना अपना कानून है। अर्थात मुस्लिम लॉ, हिन्दू लॉ इत्यादि इत्यादि अस्तित्व में है। समान नागरिक संहिता इसका विरोध कर कहती है कि सभी के लिए एक समान नागरिक संहिता हो। यह समर्थन योग्य है तथा न्याय संगत है। इसलिए इसका व्यापक अध्ययन एवं समालोचना आवश्यक है।
भारत के संविधान के माथे पर समान नागरिक संहिता का अभाव एवं आरक्षण की व्यवस्था काला धब्बे है। इन दोनों के रहते राष्ट्र में समानता का अधिकार एक सिद्धांत बनकर रह गया है। यद्यपि आर्थिक असमानता इन सबसे बड़ा रोग है तथापि इन रोगों को नजरअंदाज नहीं किया जाता है। इसलिए संविधान निर्माताओं की इन कमजोरियों पर विचार करना आवश्यक है।
देश की आजादी के वक्त मजहब के आधार पर विभाजन का दुखद दृश्य हमने देखा, सुना एवं महसूस किया है। इसके बावजूद समान नागरिक संहिता के निर्माण में चूक एवं आरक्षण व्यवस्था को अंगीकार करना एक ऐतिहासिक भूल है। इसलिए उन्हें पूर्ण श्रद्धा के निंदा का समान करना होगा।
आजकल की राजनीति देश में जितनी कमियों के पंडित जवाहरलाल नेहरू जी को जिम्मेदार ठहराया जाता है तथा उनके विरुद्ध धृणा का महौल तैयार किया गया है। मैं उसका समर्थन नहीं करता हूँ। महात्मा गाँधी जी के प्रति भी एक संगठित अविचार चल रहा है। मेरा उसको भी समर्थन नहीं है। इस प्रकार महत्वपूर्ण स्वतंत्रता सेनानी एवं राष्ट्रीय नेतृत्व की छवि खराब करने का कार्य संगठित रुप से चल रहा है, मैं इसकी कड़े शब्दों में निंदा करता हूँ। इसके साथ देश में रिलिजन नफरत एवं जातिय अविचार चल रहा है उनकी भी भर्त्सना करता हूँ। सच्ची राष्ट्र भक्ति एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की रचना में निहित है। किसी को बलांत अपने ध्वज के निचे लाकर एक समाज निर्माण करने का मैं हिमायती नहीं हूँ। समान व उभयनिष्ठ विचार को प्रोत्साहन एवं असमान एवं भेदमूलक विचार का त्याग ही एक मानव समाज देगा। एक मानव समाज की आधारशिला यदि समान आचार संहिता अथवा समान नागरिक संहिता बनती है तो इसका तुरंत लागू होना ही चाहिए।
समान नागरिक संहिता एक बहुत अच्छा काम है। लेकिन साथ में नफरत एवं वैमनस्य का वातावरण तैयार करने वाली तमाम मानसिकता पर भी लगाम लगानी चाहिए। एक ओर समान नागरिक संहिता के आधार पर राष्ट्र भक्ति का परिचय दिया जाता है वही दूसरी ओर मानव को मानव से दूर करने का अधर्म भी किया जाता है तो उन्हें सज्जनता नहीं बताया जा सकता है।
आरक्षण भेदमूलक व्यवस्था है, इसका भी अंत जरुरी है लेकिन जाति का जहर समाज में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है। अस्पृश्यता, छूआछूत एवं उच्च निच का भाव सृष्ट करने वालों पर नकेल कसने का कार्य मजबूत से करना होगा। समाज में आर्थिक विषमता को दूर करने के लिए सत्ता को ईमानदारी से हस्तक्षेप करना होगा, ऐसी व्यवस्था लानी होगी कि संसाधनों पर सबको न्यायोचित हक मिले।
समान नागरिक संहिता व आरक्षण पर एक सुसभ्य व्यष्टि एवं सभ्य समाज का रुख स्पष्ट होने के बाद, यह किन परिस्थितियों में समाज में प्रवेश की उसका भी अध्ययन जरुरी है। अंग्रेजी दासता मुक्ति मिलते समय भारतीय समाज का विषम दृश्य था। एक ओर मुस्लिम वर्ग अपने मजहबीय मानसिकता को लेकर जीने वाला था, दूसरी ओर समाज में रुढ़िवादी को बोलबाला था। नवोदित राष्ट्र को विकास करने के लिए सामाजिक मामलों में विषमता को एक छत्रछाया में लाने में हजारों किन्तु परन्तु थे। इसलिए इसको काल पर छोड़ा गया होगा। आज भारत की परिस्थितियाँ इतनी विषम नहीं है। अत: राष्ट्र निर्माताओं ने जो कार्य काल के भरोसे छोड़ा था। उन्हें पूर्ण करने का समय आ गया है। उसे कर देना चाहिए।
उपसंहार यह कहता है कि समान नागरिक संहिता अच्छा कार्य लेकिन नफरत एवं वैमनस्य से भी समाज दूर रखना है।
समान नागरिक संहिता का समर्थन है लेकिन देश में नफरत का महौल संगठित रुप से फैलाया जा रहा है। उसका विरोध भी करते हैं। उसे तुरंत बंद करना चाहिए।
एक अखंड मानव समाज की स्थापना किसी के अस्तित्व को मिटाने से नहीं होती है। अपितु अपने छोटे अस्तित्व को विराट अस्तित्व में विलिन करने से होती है।
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