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श्री आनन्द किरण "देव"
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आज एक प्रश्न आया - समाज का निर्माण कैसे होता है? इसी प्रश्न को आधार बनाकर एक शब्दमाला आप तक पहुँचा रहा हूँ।
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यह अपनी उत्पत्ति से लेकर अब तक युथबद्ध जीवन जीता आया है। एकाकी जीवन मनुष्य की कभी भी पहचान नहीं रही है। इसलिए मनुष्य ने मिलकर अपने समाज का निर्माण किया। मनुष्य के समाज निर्माण की लंबी यात्रा में कई उतार चढ़ाव के पड़ाव से होकर गुजरना पड़ा है। जिससे आज एक मानव समाज के निर्माण में कई कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। मनुष्य स्वभाव से साहस एवं पूर्णत्व का राही रहा है। इसलिए वह इन कठिनाइयों का सामना करने में पूर्णतया सक्षम है। मनुष्य की यही सक्षमता समाज निर्माण के लिए पर्याप्त है। चूंकि समाज की गति संकोची विकासी रही है। फैलने एवं सिकुड़ने के क्रम में उतार चढ़ाव आना स्वभाविक है। यह उतार चढ़ाव मनुष्य को विभिन्न जाति, सम्प्रदाय एवं नस्ल में बांधकर रख दिया है। कभी कभी मनुष्य भूल से जाति, सम्प्रदाय एवं नस्ल को समाज कह देता है। लेकिन समाज निर्माण में उक्त तत्व गौण है। इसलिए आज का विषय समाज निर्माण कैसे प्रासंगिक है।
समाज मूलतः इस सृष्टि में रहने वाले मनुष्यों का समूह है, जो नव्य मानवतावादी सोच के आधार पर विश्व बंधुत्व को कायम करता है।मानव समाज में मनुष्य तथा उसका सम्पूर्ण पर्यावरण अर्थात जैविक व अजैविक घटक आ जाते हैं। मानव समाज अथवा समाज कहने से अर्थ है। समस्त सृष्टि। चूंकि इस सृष्टि का अब तक ज्ञात परिणाम के आधार पर सबसे बुद्धिमान एवं समझदार जीव मनुष्य है। इसलिए यह सृष्टि शेष सभी घटकों का अभिभावक है। इसलिए उसे अभिभावक की जिम्मेदारी निभाते हुए बुद्धि के विकास के अभाव में पर्यावरण के जो घटक समाज का निर्माण नहीं कर सकते उन्हें साथ लेकर चलना तथा सुव्यवस्थित अनुशासन में ढ़ालना मनुष्य की जिम्मेदारी है। इसलिए मनुष्य को एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की आवश्यकता है।
अखिल विश्व मानव समाज के निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण बिन्दु सभी को उसका उचित हक मिलना सुनिश्चित करना तथा सभी सेवाओं का अधिकतम एवं सुसंतुलित उपयोग करना है। इसके लिए सर्वत्र प्रगति का होना आवश्यक है। अत: आर्थिक शक्ति के विकेन्द्रीकरण सिद्धांत समाज निर्माण का पहला तत्व है। इसलिए मनुष्य को अपनी धरती को विभिन्न सामाजिक आर्थिक इकाइयों में विभाजित करना चाहिए। प्रत्येक इकाई आत्मनिर्भरता की बढ़ती नजर आनी चाहिए। यद्यपि सामाजिक आर्थिक इकाई के कारण प्रथम दृष्टि में विभाजित मानव समाज दिखाई देता है लेकिन यह सामाजिक आर्थिक इकाइयां एक अखंड अविभाज्य मानव समाज को मजबूत करता है। किसी भी व्यष्टि को अपनी आर्थिक हालात के चलते अपने घर बाहर छोड़कर नहीं जाना पड़े। इससे सामाजिक एवं आर्थिक हितों में टकराव आता है तथा मानव समाज में कडवाहट जन्म लेती है। यह कडवाहट एक दिन मानव समाज में विस्फोट का बीज बोती है।
आर्थिक विकेन्द्रीकरण सिद्धांत के मूल में सामाजिक आर्थिक इकाई निवास करती है। अत: हम कह सकते हैं कि समाज निर्माण की प्रथम कार्यशाला सामाजिक आर्थिक इकाई है। सामाजिक आर्थिक इकाई का निर्माण कैसे? यह प्रश्न ही समाज निर्माण कैसे का उत्तर है। सामाजिक आर्थिक इकाइयां के संगठन में - समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक क्षमता(संभावना), नस्लीय समानता व भावनात्मक समानता (भाषा, साहित्य एवं संस्कृति) तत्वों का समावेश किया जाता है।
समान आर्थिक समस्या सामाजिक आर्थिक इकाई के निर्माण का प्रथम बिन्दु है। यद्यपि मनुष्य स्वभाव से आध्यात्मिक है तथापि भौतिक आवश्यकता के आर्थिक जगत का चिन्तन देता है। इसलिए समाज निर्माण में पहला बिन्दु समान आर्थिक समस्या को रखा गया है। सामाजिक आर्थिक इकाई के सर्जन करते समय एक क्षेत्र की आर्थिक समस्या की सूची तैयार करते हैं। जहाँ तक इन समस्या में समानता दिखती है। उस भूभाग को प्रथम दृष्टि में एक सामाजिक आर्थिक इकाई के लिए चुना जाता है।
समान आर्थिक क्षमता(संभावना) सामाजिक आर्थिक इकाई निर्माण का दूसरा तत्व है। समान आर्थिक समस्या से चिन्हित सामाजिक आर्थिक इकाई को समान आर्थिक क्षमता(संभावना) से होकर गुजरना होता है।समान आर्थिक क्षमता(संभावना) यदि समान आर्थिक समस्या का रास्ता काटती है, तो समाज वहाँ रुक जाता है। इसलिए समान आर्थिक क्षमता(संभावना) का ध्यान रखा जाता है। उस क्षेत्र आर्थिक क्षमता अथवा संभावना को खोजा जाता है तथा उसमें समानता को देखा जाता है।
नस्लीय समानता सामाजिक आर्थिक इकाई निर्माण का तृतीय बिन्दु है। जहाँ आर्थिक जगत से हटकर रक्त संबंध पर आ जाता है। यदि रक्त के संबंध में समानता नहीं है तो एकता सूत्र में पिरोना दुष्कर हो जाता है। आर्थिक समस्या व आर्थिक क्षमता वाले क्षेत्र को उनके निवासियों में नस्लीय समानता की अग्नि परीक्षा देनी होती है। नस्ल का अर्थ जाति अथवा सम्प्रदाय होता है। नहीं नस्ल का अर्थ मनुष्य के प्रजाति होती है, जो रक्त संबंध से जुड़ी होती है। धार्मिक एवं सामाजिक परंपरा से जुड़ी होती है। इस प्रकार नस्लीय समानता भी सामाजिक आर्थिक इकाई के निर्माण में आवश्यक है।
भावनात्मक समानता को सामाजिक आर्थिक इकाई निर्माण का चौथा पाद बताया गया है। जो भाषा, साहित्य एवं संस्कृति नाम तीन तत्वों से निर्मित होता है। यह चौथा तत्व ही सामाजिक आर्थिक इकाई का नामकरण तय करता है। यदि कई यह नामक तय नहीं करता है तो तीसरा तत्व नामकरण तय करता है। भाषा, साहित्य व संस्कृति मनुष्य को अतीत से जोड़ती है। इसलिए जिस जनगोष्ठी का इतिहास नहीं उसका भविष्य भी नहीं है।
प्रश्न का उत्तर
समाज निर्माण के चार स्तंभ है समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक क्षमता, नस्लीय समानता एवं भावनात्मक समानता है।
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