नास्तिक पुत्र के शिवोपदेश

--------------------------------
   श्री आनन्द किरण "देव"
--------------------------------
शिव के उपदेश को जब कोई व्यक्ति अपने विचारों को मिलाकर सुनाता है तो शिवोपदेश के आगे उनको नाम अंकित हो जाता है। आजकल कई कथावाचक एवं प्रवचन कर्ता शिव की बातों एवं अपनी बातों को मिलाकर शिवोपदेश देते हैं। इतिकथा में श्रीराम के शिवोपदेश तथा रावण के शिवोपदेश सुने गए हैं। श्रीराम व रावण दोनों के आदर्श शिव थे। श्रीराम आध्यात्मिक नैतिकवान थे जबकि रावण केवल आध्यात्मिक था, वह नैतिकता को अपने जीवन में स्थान नहीं देता था। आध्यात्मिक बल का पलड़ा अवश्य ही श्रीराम का रावण से भारी था फिर भी श्रीराम वंदनीय नैतिकता की बदौलत हुए है। इस प्रकार हमने अलग-अलग मानसिकता के शिवोपदेश सुने है। आज हम नास्तिक पुत्र के शिवोपदेश की चर्चा करेंगे। 

शिव के उपदेश विशुद्ध रूप मनुष्य में देवत्व के उदबोध के लिए थे। श्रीराम के शिवोपदेश में आदर्श समाज एवं आदर्श व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। जबकि रावण के शिवोपदेश में अपना स्वार्थ समाविष्ट कर विनाश के उपदेश शिव के नाम प्रचारित कर दिए। आस्तिक समाज में अच्छे बुरे सभी लोग अपने विचारों को शिवोपदेश का रुप देकर रखते हैं। चूंकि नास्तिक शिव को नहीं मानता है इसलिए वह अपने उपदेश को शिवोपदेश नाम नहीं देता है। लेकिन नास्तिक पुत्र के लिए यह बंधन नहीं रहता है। वह शिव यानि ईश्वर के नाम अपनी कल्पना की दुनिया बनाने के लिए अपने उपदेश शिव के नाम से प्रचारित करता है। 

नास्तिक का अर्थ ईश्वर को नहीं मानने वाला है। इसका अर्थ यह नहीं है कि नास्तिक बुरा व्यक्ति होता है। नास्तिक भी अच्छा इंसान हो सकता तथा हुए भी है। इसलिए नास्तिक पुत्र के शिवोपदेश का अर्थ यह नहीं है कि बुरे इंसान के पुत्र के शिवोपदेश है। नास्तिक पुत्र का अर्थ ईश्वर को नहीं मानने वाले का बेटा। इसका अर्थ यह भी नहीं है कि बेटा आस्तिक नहीं हो सकता है। हिरण्यकश्यप घोर नास्तिक था जबकि प्रहलाद एक तगड़ा भक्त था। अत: नास्तिक पुत्र का अच्छा बुरा, ईश्वर को मानने वाला अथवा ईश्वर को नहीं मानने वाला नहीं होता है। नास्तिक पुत्र का अर्थ अपने पिता के विचारों की दुनिया को समाज में स्थापित करने वाला हो सकता है अथवा पुत्र के आगे नास्तिक विशेषण उसके लिए लगया गया है कि नास्तिक विचारों को उसके पुत्र द्वारा शक्ल देना है। 

नास्तिक पुत्र के शिवोपदेश का अर्थ अपने पिता के अच्छे-बुरे, आधे-अधुरे, कटे-फटे उपदेश को शिव के नाम से प्रचारित करना है। यह आलेख समाज को सावधान करने के लिए है कि शिव के नाम से चल रहा हर उपदेश शिव का नहीं है। भगवान नाम पर बहुत सारी दुकानें चल रही है। उसमें हर वस्तु भगवान बनाने वाली अथवा भगवान को मिलाने वाली नहीं है। यहाँ तक की इंसान बनाने वाली भी नहीं है। भगवान के नाम पर चलने वाले हर वर्कशॉप में सत्य नहीं मिलता है। कई हम ठगे भी जा सकते हैं। नास्तिक पुत्र अपनी होशियार दिखाने के शिव की आरती कर सकता है अथवा किसी ओर सम्मानित से करावा सकता है। उससे वह शिव से अधिक अपनी वाहवाही करवाता है। 

नास्तिक पुत्र की सबसे बड़ी खुबी यह होती है कि वह समाज में गुटबाजी का निर्माण करता है तथा अपने गुट को अच्छा एवं सच्चा दिखाने की कोशिश करता है। अपने गुट के सदस्यों को शिव का गण बताता है तथा दूसरे को तुच्छ दिखाने के सारे यत्न करता है। अपने को तथा अपने गुट को समाज का धर्म मसिहा बनाकर पेश करता है तथा अन्य को लूटेरा, डकैत इत्यादि भी कह‌ सकता है। नास्तिक पुत्र यदि शक्तिहीन है तो शक्तिशाली को नेता बनाकर शिव के अवतार के रूप में पेश कर देता है, लेकिन प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में रखता है। 

नास्तिक पुत्र की दूसरी खासियत यह भी होती है कि वह सदैव विजेता गुट में रहना चाहता है तथा धीरे धीरे उस गुट की शक्ति को अपने वश में कर देता है तथा शिव के स्थान राम का नाम देकर अपने पिता के उपदेश प्रचारित करता है। 

नास्तिक पुत्र इतिहास में भी बहुत सारे हुए हैं, आज भी समाज में बहुत सारे नास्तिक पुत्र विद्यमान है तथा भविष्य में भी ऐसे नास्तिक पुत्र हो‌ सकते हैं। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। 

विषय अंत में लिखना चाहता हूँ कि नास्तिक पुत्र के शिवोपदेश से बचने के लिए शिव के व्यक्तित्व एवं‌ आदर्श को जानकर शिव के नाम प्रचलित उपदेशों में से वास्तविक शिवोपदेश को पहचानना चाहिए। शिव कल्याण के प्रतीक है उनके उपदेशों सभी के कल्याण का चिंतन है। यदि कोई बात शिव के नाम पर दिशाहीन, अयुक्तिसंगत तथा धर्म व सत्य सहमत नहीं है। तो उसे शिवोपदेश नहीं मानना है। यह नास्तिक पुत्र का शिवोपदेश है। जो उसने अपनी अपरिपूर्णता छिपाने के लिए शिव के नाम प्रचारित किये है। शिव को नशाबाज, अघोड़ी, अभद्र एवं असभ्य बताने वाले तथा जातिगत, रिलिजनल इत्यादि विचारों से शिव का कोई संबंध नहीं है। शिव के विचार सार्वभौमिक है। जहाँ भी संकीर्णता एवं विभेदात्मक विचार जन्म लेते हैं, वहाँ शिव अपना आश्रम नहीं बनाते हैं। 
Previous Post
Next Post

post written by:-

0 Comments: