सनातन सभ्यता को खत्म कौन कर रहा है? (Who is destroying the Sanatan civilization?)

सनातन सभ्यता को बचाओ एक आंदोलन प्रगति पर है। उनका कहना है कि सृष्टि एवं मानवता की रक्षा के लिए सनातन सभ्यता का बचना आवश्यक है। इसलिए मुझे ख्याल आया कि सनातन सभ्यता को खत्म कौन कर रहा है? इसकी जानकारी लेनी चाहिए। जो सनातन सभ्यता को खत्म कर रहा है, उस पर सीधा ध्यान दिया जाए। 

उक्त प्रश्न का उत्तर ढुँढने से पूर्व सनातन के बारे समझना आवश्यक है। भारतवर्ष की आदि सभ्यता को सनातन परंपरा कहा जाता है। सनातन शब्द अर्थ परंपरागत है तथा गुढ़ार्थ में यह शास्वत के लिए प्रयोग होता है। यह शब्द सबसे पहले शिवगीति में शिव को सत्य सनातन बताने के लिए प्रयोग में आया था। अर्थात भगवान‌ शिव के लिए सनातन शब्द का प्रयोग हुआ था। सनातन शब्द को‌ विद्वानों ने सना‌ + तन करके भी समझा है। तन का अर्थ शरीर तथा सना का अर्थ श्वास बताया गया है। जिस क्रिया तन क्रियाशील होता है। वह सनातन है। उस क्रिया श्वास, वायु अर्थात प्राण कहा गया है। सनातन को‌ सदैव रहने वाला शब्द भी बताया गया है। वस्तुतः सनातन शब्द‌ हिन्दू सभ्यता के लिए प्रयोग किया जाता है। 

सनातन शब्द का अर्थ स्पष्ट हो जाने के बाद सनातन क्या है? यह समझना आवश्यक है। सनातन संस्कृति, सभ्यता, धर्म अथवा परंपरा है। इसके लिए उक्त शब्दों के अर्थ जानना आवश्यक है। पहला शब्द संस्कृति है। रहन सहन के तौर तरिके को संस्कृति का गया है। यदि किसी के रहन सहन के तौर तरिके मानवीय गुणों से परिपूर्ण है तो उसे सुसंस्कृत कहा जाता है तथा इसके विपरीत को कुसंस्कृत नाम दिया जाता है। मानवीय गुणों से परिपूर्ण जीवन जीने का तरीका संस्कृति है, इसलिए सम्पूर्ण मानव जाति की संस्कृति एक ही रहती है। इसमें पार्थक्य संभव नहीं है। सनातन संस्कृति कहते ही किसी विशेष की ओर इंगित नहीं कर सकते हैं। परंपरा शब्द का अर्थ है - पीढ़ी दर पीढ़ी चलते आने वाले तौर तरिके है। तौर तरिके में युग के आधार पर बदलाव आना स्वभाविक है, इसलिए परंपरा को शास्वत नहीं कहा जा सकता। अब धर्म के संदर्भ में जान लेते हैं। मनुष्य द्वारा धारण किये गए वे गुण जिनके कारण मनुष्य कहलाता है। चूंकि यह सम्पूर्ण मानवों के लिए है। यह भी विशेष को इंगित नहीं कर सकता है। अब अन्तिम शब्द  सभ्यता को समझते है - सभ्यता शब्द वस्तु संस्कृत‌ से जुड़ा हुआ है लेकिन किसी विशेष समय के मानवीय व्यवहार को सभ्यता नाम दिया गया है। भारतवर्ष की आदि से अब तक की सभ्यता को सनातन शब्द से समझा जाता है। इसलिए हमने विषय में सनातन परंपरा, सनातन संस्कृति, सनातन धर्म नहीं लेकर सनातन सभ्यता लिया है। 

सनातन सभ्यता खतरे में की चिंता कुछ हिन्दूवादी एवं तथाकथित राष्ट्रवादी करते हैं। सबसे पहले सनातन को खतरा किससे है? यह समझना आवश्यक है। सबसे सनातन सभ्यता का व्यवहारिक नाम हिन्दू व्यवस्था है। यद्यपि भारत पर हमला हुआ लेकिन हिन्दू व्यवस्था पर आज तक कोई हमला नहीं हुआ। कुछ भारतीय ने इस व्यवस्था में संशोधन के लिए आंदोलन चलाया, वह जैन व‌ बौद्ध बनकर उभरा तथा मुस्लिम व ईसाई ने अपने सिद्धातों के प्रचार के लिए अभियान चलाया। यद्यपि तलवार के बल मनुष्य के मजहब को‌ बदलने के कार्यवाही गलत है लेकिन मृत्यु के भय से जीवन सुरक्षा के तनिक उद्देश्य से जिन्होंने अपनी पीढ़ियों के साथ समझौता कर दिया, उसमें झूकने वाले का कसूर अधिक है। इसलिए किसी ओर पर आरोप लगाना गलत है।  मध्यकाल की मजहबीय प्रचारकों की करतुते गलत है। उनके द्वारा किया गया कार्य निंदनीय है। उस युग में कष्ट सहकर भी लोगों ने अपनी सभ्यता को आबाद रखा। अत: क्रुर ताकत कभी भी मजबूत इरादों को मिटा नहीं सकती है। पुनः विषय पर आते है, सनातन सभ्यता पर हमला कौन बोल रहा है? 

सनातन सभ्यता मनुष्य को सर्वजन हित एवं सर्वजन सुख में जीने के गुण देते हैं। जिन्हें महावीर स्वामी ने जीओ एवं जीने दो में केन्द्रित करके दुनिया को परोसा है। सनातन सभ्यता को कोई बाहरी तत्व नहीं मिटा सकता है। सनातन सभ्यता को कोई मिटाता है तो अंदरूनी सर्जिकल स्ट्राइक है। सनातन सभ्यता मात्र इतिहास नहीं है सनातन सभ्यता वर्तमान व भविष्य भी है। इसलिए सनातन सभ्यता के आदि प्रणेता भगवान सदाशिव के पथ का अनुसरण करो, अनुसरण करो वेद एवं तंत्र के पथ का, फिर देखो परमाणु बम भी तुम्हारी सीने से टकाराकर निस्तेज कैसे नहीं होता है? इसलिए सनातन सभ्यता पर कोई हमला कर रहा है तो सनातन से विमुख तथाकथित नाम सनातनी। वह सनातनी को मानवता में साम्प्रदायिक जहर घोलता है। वह सनातनी जो जाति व्यवस्था के दूषित स्वरूप को ढ़ोहता  हुआ चल रहा है। जिसने सनातन के माथे पर प्रथम अस्पृश्यता की लकीर खींची थी। वह व्यक्ति अथवा व्यक्ति का समुदाय सनातन सभ्यता पर करने वाला प्रथम हमलावर था। किसी ने ठीक ही लिखा है कि खुद की एबो पर किया न गौर मगर गैर की एबो पर है तेरी नापाक नजर। सनातन पर हमला करने वाला वह भी नहीं है, जो सर्वेभवंतु सुखिनः गाते हुए मानवता की मशाल जलाते हैं। यह तो सनातन सभ्यता के वाहक है, इन्हें नमन करना चाहिए। 

सनातन का अर्थ सम्पूर्णत्व जो समाज संपूर्ण सृष्टि को अपने में धारण नहीं कर सकता है। वह विचार कभी भी सनातनी नहीं है। जिसको सृष्टि में अपना पराया नजर आता है, वह दृष्टि सनातनी नहीं है। जहाँ नफरत एवं धृणा की वाणी गाई जाती है, वह कंठ सनातनी नहीं। जिसको भेदभाव, उच्च निच तथा जाति सम्प्रदाय के गीत सुनना अच्छा लगता है, वे कान सनातनी नहीं है। अत: जो आज सनातन को खत्म करने की आशंका जताता है, उन्हें अपने गिरेबान में झांककर आंकना चाहिए। क्या तुम सनातन के साधना, सेवा एवं त्याग से महान बनने के पथ का अनुसरण कर रहे हो। यदि हा तो आप सनातनी हो तो आपको कोई अपना पराय नजर नहीं आएगा क्योंकि तुम वसुधैव कुटुंबकम गाते है। यदि तुम उक्त पथ का अनुसरण नहीं करते हो तो सनातन सभ्यता पर हमला करने वाले आप स्वयं हो। आप ही सनातन सभ्यता को खत्म करने वाले हो तथा आपसे ही सनातन असुरक्षित है।

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  करण सिंह की कलम से
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