भारत देश हिन्दू राष्ट्र बनने की ओर बढ़ रहा है। हिन्दू राष्ट्र देखन युवाओं में जोश है। राजनीति का यह लंबित अध्याय देश की छवि गढ़ने काम करेगा। पूर्ण बहुमत की सरकार के लिए यह काम करना इतना मुश्किल नहीं है। बहुसंख्यक हिन्दु आबादी वाले देश में यह मुश्किल भी नहीं है। सिर्फ वोटों की राजनीति इसे मुश्किल दिखाती है। हिन्दू राष्ट्र बनने का उत्सव कैसा होगा, यह आलेख का विषय नहीं है। आलेख अपना ध्यान भारतवर्ष एवं हिन्दू राष्ट्र सिद्धांत पर देने जा रहा है।
हमारे देश का शास्त्रों द्वारा प्रमाणित नाम भारतवर्ष है। भारत शब्द गहन होते हुए होते हुए भी भारतवर्ष शब्द के साथ परिपूर्ण होता है। भर, त व वर्ष तीन शब्दों से युक्त भारतवर्ष शब्द का भरणपोषण एवं समग्र उन्नति सुनिश्चित करने वाली भूमि है। भर से भरणपोषण, त से विस्तार या उन्नति तथा वर्ष एक अर्थ भूभाग अथवा भूमि है।
भर (भरणपोषण) - भारतवर्ष का पहला दायित्व नागरिकों की न्यूनतम आवश्यकता रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा एवं शिक्षा है। यदि किसी देश का नागरिक इन पांच आवश्यकताओं के लिए दर दर की ठोकरें खाता हो तो वह राष्ट्र भारतवर्ष नहीं है। भारतवर्ष का पहला गुण, लक्षण, विशेषता अथवा धर्म है कि व्यक्ति को आदर्श जीवन जीने के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा व शिक्षा का अभाव नहीं झेलना पड़े। इसके संविधान को क्रयशक्ति का मूल अधिकार देना होगा। एक नागरिक की क्रय क्षमता कम से उतनी होनी चाहिए कि वह न्यूनतम आवश्यक पूर्ण कर सके।
त (समग्र उन्नति) - भारतवर्ष का प्रथम शब्द भर चरितार्थ होते ही दूसरा शब्द त सिद्धि चाहता है। किसी भी देश में मनुष्य को भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक उन्नति करने के सभी साधन सहज उपलब्ध हो की व्यवस्था होनी चाहिए। केवल न्यूनतम आवश्यकता को पूर्ण करने से नागरिक को भौतिक सुरक्षा उपलब्ध हो जाती है लेकिन त के अभाव नागरिक मनुष्य होने का गौरव प्राप्त नहीं कर सकता है। इसलिए समग्र उन्नति के लिए वातावरण एवं व्यवस्था तैयार करना राष्ट्र एवं समाज का कर्तव्य है। इसके सामाजिक न्याय को आदर्श व्यवस्था में स्थापित करने की आवश्यकता है।
वर्ष (भूभाग) - वर्ष शब्द कालगणना के साथ भूमाप का भी द्योतक है। देश, काल एवं पात्र तीन आपेक्षिक मापदंड ब्रह्माण्ड की गतिविधियों को समझने के साधन है। तीन मिलकर ही आपेक्षिक जगत सही परिणाम के अवलोकन में सहायक है। वर्ष का भूमि के अर्थ में लिया गया है। इसे मातृभूमि, जन्मभूमि, भारतमाता, धरती माता इत्यादि शब्दावली से समझा जा सकता है। जिस देश अथवा राष्ट्र परिवार में भर एवं त सिद्ध होता है। वह देश अथवा राष्ट्र परिवार वर्ष अर्थात भारतवर्ष की उपमा पाता है। भारत भूमि भारतवर्ष है।
हिन्दू राष्ट्र सिद्धांत - इसका शाब्दिक अर्थ है हिन्दूओं का देश इति हिन्दू राष्ट्र। अन्य शब्दों में राष्ट्र का राजकीय पहचान हिन्दू हो। हिन्दू शब्द की शाब्दिक व्याख्या भारत के निवासियों के राष्ट्र से है। लेकिन हिन्दू का व्यवहारिक अर्थ एक जाति विशेष से है, जो वेद, उपनिषद, तंत्र इत्यादि भारत भूमि पर जनमी भारतीय मान्यताओं को मानता हो। इसमें जैन, बौद्ध एवं सिख मान्यता से ऐतराज नहीं है। इसमें जाति एवं जातिव्यवस्था भी उन्हें स्वीकार्य है। यद्यपि बौद्ध इत्यादि अपने हिन्दू नहीं मानते हैं तथापि हिन्दू राष्ट्र उन्हें हिन्दू के रूप में स्वीकार करता है। मुस्लिम, ईसाई, यहुदी, पारसी मान्यताएँ भारतीय नहीं है इसलिए यह हिन्दू राष्ट्र में स्वीकार्य नहीं है। लेकिन हिन्दू राष्ट्र में इनका अस्तित्व एवं अस्मिता सुरक्षित रहने का आश्वासन है। इनके मूल अधिकार सभी के बराबर मिलेंगे अथवा दूसरे नागरिक के रूप में होंगे अभी स्पष्ट नहीं है। इनको बहुसंख्यक समुदाय के द्वारा निगले जाने की संभावना पर हिन्दू राष्ट्र का विधान सुस्पष्ट नहीं है। इसलिए इसके संदर्भ में अधिक नहीं लिख सकता है।
क्या हिन्दू राष्ट्र भारतवर्ष नाम चरितार्थ करेगा?
भारतवर्ष शब्द आध्यात्मिकता पर आधारित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था का नाम है लेकिन हिन्दू राष्ट्र एक जाति का द्योतक है। अत: यह निश्चित नहीं कहा जा सकता कि हिन्दू राष्ट्र सिद्धांत भारतवर्ष के नाम को चरितार्थ करेगा। हिन्दू राष्ट्र सिद्धांत में मनुष्य की भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि का अध्याय लिखे जाने की व्यवस्था की भी योजना स्पष्ट नहीं है। लेकिन एक बात है कि भारतवर्ष शब्द जातियता का द्योतक नहीं है। हिन्दू राष्ट्र सिद्धांत एवं भारतवर्ष के विचार में एकरूपता नहीं तथा विरोधाभास भी दिखाई दे रहा है। इसलिए इसका उत्तर भविष्य पर छोड़ता हूँ। जिस सिद्धांत में भारतवर्ष शब्द व विचार चरितार्थ होने में संदेह वहाँ भारतवर्ष की आत्मा सर्व भवन्तु सुखिनः तथा सर्वजन हित एवं सुख की आश रखना भी गलत है। लेकिन मैं आशावादी हूँ भारतवर्ष का विचार सफल होगा एवं विश्व मंच पर स्थापित होगा।
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करण सिंह की कलम से
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