राजस्थान विधानसभा चुनाव एवं राजनैतिक चिन्तन (Rajasthan assembly elections and political thought)



मेरी रूचि‌ कभी भी राज्यों के चुनाव में  नहीं रही है। क्योंकि भारतीय संघिय व्यवस्था में राज्य इतने ताकवर नहीं है कि वे जनता की दशा एवं दिशा को बदल सकते हैं। राज्य जनता को कुछ सुविधाएं मुहैया करा सकती तथा उनके कुछ काम कर सकते हैं। लेकिन बड़े नीतिगत फैसला नहीं ले सकती है। चूंकि अभी चेहरे अथवा दल की अदला बदली की नहीं व्यवस्था परिवर्तन की आवश्यकता है। यह कार्य राष्ट्र की सरकार ही कर सकती है। चूंकि आज विषय केन्द्र सरकार नहीं है इसलिए इस चर्चा नही करेंगे। 

राजस्थान भारतवर्ष का क्षेत्रफल की दृष्टि से सबसे बड़ा राज्य है। यहाँ का भूगोल मूलतः तीन प्रकार के धरातलीय परिस्थितियों से मिलकर बना है। प्रथम मैदानी भाग - जिसमें पूर्व का मैदान एवं पश्चिम का थार का मरुस्थल आता है, द्वितीय अरावली पर्वत श्रृंखला तथा तृतीय हाड़ौती का‌ पठार है। मैं राजस्थान विधानसभा चुनाव एवं राजनैतिक चिन्तन नाम शीर्षक में भूगोल इसलिए लिख रहा हूँ कि यदि राजनेताओं की नियत राजस्थान के लिए कुछ करने की है तो तीनों भौगोलिक क्षेत्र के लिए परिस्थितियों के अनुकूल सामाजिक आर्थिक योजना बनाकर एक समृद्ध राजस्थान का निर्माण किया जा सकता है। यहाँ आर्थिक योजना को सामाजिक आर्थिक योजना नाम दिया गया है। 

राजस्थान के संदर्भ में कहावत है कि यहाँ खून सस्ता है पर पानी मंहगा है। मुद्दे की बात यही से आरंभ होती है। यहाँ लोग त्याग में सदैव आगे रहते है। लेकिन यहाँ जो संसाधनों कमी को पुरा करने की जिम्मेदारी सरकार को लेनी ही होगी। जैसे ही सरकार की बात आई। राजनैतिक चिन्तन को स्पष्ट करने की आवश्यकता आ पड़ती है। 

राजस्थान का अपना कोई राजनैतिक चिन्तन नहीं है। यह भारत राष्ट्र के राजनैतिक चिन्तन के साथ सदैव वफादार रहा है। यहाँ किसी क्षेत्रीय पार्टी ने अपने पैर नहीं जमाए है। यद्यपि समय-समय पर क्षेत्रीय पार्टियों का उदभव होता आया है। लेकिन वे व्यक्ति तक ही सीमित रहकर काल चारा बन गई। मैं क्षेत्रीय पार्टियों का राष्ट्रीय राजनीति में दखल देने का हिमायती नहीं  हूँ लेकिन क्षेत्र के समूल विकास के लिए एक क्षेत्रीय चिन्तन की आवश्यकता को महसूस करता हूँ। इसलिए राजस्थान का अपना क्षेत्रीय चिन्तन होना आवश्यक है। इस पर चर्चा करने से पूर्व भारत के संघीय व्यवस्था की कमियों पर विचार करना आवश्यक है। 

भारतवर्ष में राजनैतिक संघीय व्यवस्था को अंगीकार किया है। जो एक दोषपूर्ण है तथा जिसके चलते जनता को करों की दोहरी मार सहन करनी पड़ती है तथा विकास के नाम पर लोलीपोप मिलती है। यहाँ एक बात स्पष्ट होनी आवश्यक है कि एकात्मक व्यवस्था से संघीय व्यवस्था अच्छी व सच्ची है। लेकिन संघीय व्यवस्था राजनैतिक नहीं होकर सामाजिक आर्थिक इकाई के रूप में होनी चाहिए। इसका मुख्य कार्य क्षेत्र का सामाजिक एवं आर्थिक उन्नयन करना है न कि राजनीति करना है। राजनीति राष्ट्र मुद्दा जिससे सामाजिक आर्थिक इकाइयों सदैव पृथक रहना चाहिए तथा पृथक रखना चाहिए। यहाँ प्रश्न पैदा हो सकता है। जब सामाजिक आर्थिक इकाइयां राजनैतिक से पृथक रहेगी तो यहाँ प्रशासनिक व्यवस्था कैसे चलेगी? यह पूर्णतया लोकतांत्रिक व्यवस्था से चलेगी, जिसका नाम होगा आर्थिक लोकतंत्र दिया गया है। आर्थिक लोकतंत्र दल विहिन व्यवस्था होती है। यहाँ दल का दल नहीं होता है क्योंकि यहाँ सामाजिक एवं आर्थिक उन्नयन की योजना बनते हैं इसलिए इसकी जिम्मेदारी समाज पर होती है। इसलिए सामाजिक आर्थिक इकाइयों को राज्य न कहकर समाज कहा जाता है। चूंकि हमारा विषय भारतवर्ष नहीं है इसलिए समाज के स्वरूप एवं भूमिका पर अधिक चर्चा नही करेंगे तथा राजस्थान के विधानसभा चुनाव एवं राजनैतिक चिन्तन की ओर लौट चलते हैं। 

राजस्थान की राजनीति में विगत दिनों में कांग्रेस एवं भाजपा की आँखों मिचौली चलती है। इसबार भी इसी आँख मिचौली का खेल दिखाई दे रहा है। एक और भाजपा का तथाकथित हिन्दुत्व है तो दूसरी ओर कांग्रेस का अपनी विचारधारा। दिल्ली की आम आदमी पार्टी के द्वारा अन्य राज्यों में निगलते कांग्रेस के वोट बैंक को देखकर कांग्रेस की राजनीति के जादूगर कहलाने वाले अशोक गहलोत ने राइट टू हैल्थ बिल लाया तथा बिजली बिल में राहत तथा अन्य सुविधा भी प्रदान की गई है। दूसरी ओर भाजपा मोदी नाम की नाव बनाकर अपनी वैतरणी पार करने की कोशिश कर रही है। तीसरी ताकत के रूप में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी तथा दिल्ली के अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की उपस्थिति की संभावना है। तेलंगाना के केसीआर के राजस्थान के अखबारों छपने वाले लंबे विज्ञापन उनकी उपस्थित के संकेत देते हैं। यद्यपि राजनैतिक का तीसरा ध्रुव में ओर भी छोटे मोटे कुकुरमुत्ता पार्टियों के आने की संभावना है। राजस्थान की विधानसभा सभा चुनाव 2023 की तस्वीर दिखाने के बाद में आपको राजस्थान के राजनैतिक चिन्तन की ओर पुनः लेकर चलना चाहूंगा। 

जैसा कि हमने पहली देखा है कि राजस्थान के पास अपना स्वयं का कोई राजनैतिक चिन्तन नहीं है। इसलिए राजस्थान को अपना राजनैतिक चिन्तन देने की आवश्यकता है। आओ राजस्थान के राजनैतिक चिन्तन का निर्माण करते हैं। राजस्थान स्वतंत्रता से पूर्व राजपुताना नाम से जाना जाता था। राजपुताना का अर्थ राजाओं का शासन है न कि राजपूत जाति का प्रदेश। राजस्थान की धरती पर स्वतंत्रता से पूर्व 19 रियासतें एवं तीन ठिकानों का शासन था यद्यपि अधिकांश रियासतों में राजपूत राजा थे तथापि राजपुताना का अर्थ कदापि राजपूतों की शासन व्यवस्था नहीं है। मैं लोकतंत्र के युग में आपको राजतंत्र की कहानी इसलिए कह रहा हूँ कि राजस्थान का समाज मारवाड़ी, मेवाड़ी एवं हाडौती नामक तीन लोक संस्कृति की साझा इकाई है। यहाँ पूर्व में ब्रज तथा हरियाणवी लोक संस्कृति दृष्टिगोचर होती है लेकिन वह नगण्य मात्रा में है तो भी इसका महत्व स्वीकार्य है। राजस्थान का राजनैतिक चिन्तन बनाने के लिए इनका महत्व है। राजपुताना की धरती वीरों, भक्त संतों, स्वतंत्रता सेनानी एवं प्रजामंडल की सोच से लबालब भरी हुई है। इसलिए राजस्थान का अपना राजनैतिक चिन्तन तैयार किया जा सकता है। राजस्थान भारतवर्ष का अभिन्न अंग है तथा सदैव अभिन्न रहेगा। इसलिए राजस्थान के राजनैतिक चिन्तन को राजस्थान के सामाजिक आर्थिक क्षेत्र से‌ लबालब होना आवश्यक है। राजपुताना के वीरों की आन, भक्तों की शान, स्वतंत्रता सेनानी के मान की रक्षा करने वाला राजस्थान चिन्तन मैदानी क्षेत्र थार‌ का मरुस्थल व पूर्व के मैदान को‌ मारवाड़ी समाज, अरावली पर्वतमाला क्षेत्र को मेवाड़ी समाज एवं पठारी क्षेत्र को‌ हाड़ौती समाज के रूप में आत्मनिर्भर सामाजिक आर्थिक इकाई के रुप में विकसित करेगा। राजस्थान को भक्ति एवं वीर रस से भरपूर आध्यात्मिक नैतिकवान व्यक्तियों प्रगतिशील सर्वसमाज पार्टी (राजस्थान) निर्माण कर आदर्श राजस्थान का निर्माण करना होगा।

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करण सिंह की कलम से
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