श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने हमें राम शब्द का गुढ़ार्थ समझाते हुए बताया कि योगी के हृदय में रमणे वाली सत्ता राम है। यद्यपि राम शब्द के अन्य अर्थ भी बताये है लेकिन हमारा विषय 'राम से बड़ा राम का नाम' एक प्रश्न में है। इसलिए उपरोक्त अर्थ लेकर ही विषय की ओर बढ़ेंगे। योगी के हृदय में सदा रमण करने वाली सत्ता राम है। तो हमें हमें योगी के हृदय झांकना पडेगा। एक ओर परमपुरुष तो यह भी कहते है कि मैं योगी के हृदय में नहीं रहता हूँ। योगी का हृदय चित्त वृत्ति के निरोध से बना होगा तो परमपुरुष वहाँ नहीं रह पायेंगे। इसके विपरीत यदि योगी का हृदय जीवात्मा के परमात्मा की संयुक्तिकरण से बना होगा तो परमपुरुष उस हृदय को छोड़कर कई नहीं जा सकते हैं। अब यह योगी पर निर्भर करता है, उसे बिना परमपुरुष को लक्ष्य बनाकर चलना है अथवा परमपुरुष की ओर ही चलना है। यदि योगी तथाकथित पथभ्रमित अथवा पथभ्रष्ट होकर परमपुरुष की अवहेलना करके चलता है, तो वह अविद्या तंत्र की चपेट में अपने को राक्षस राज में ले चलता है। जहाँ काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद व मात्सर्य नाम षड़रिपु उसके सैनिक होंगे। ऐसा योगी यदि चित्त वृत्ति का निरोध कर भी देते हैं तो क्या हुआ। वह तो मरुभूमि है। यहाँ दूर दूर तक पानी नहीं है। सच तो यह है, उसका योग हुआ ही नहीं क्योंकि शैतानी खुदा करके कोई परमपुरुष नहीं है। यह अविद्या तांत्रिक की गलत धारणा है। इसलिए इन्हें योगी कहना उचित नहीं है। परमपुरुष इस प्रकार के नाम के योगी के हृदय में नहीं रहते है। यद्यपि परमपुरुष सर्वत्र हैं लेकिन उनका न्युक्लियस ऐसे स्थान पर नहीं होता है। परमपुरुष का न्युक्लियस उस हृदय में अवश्य है, जहाँ जीवात्मा व परमात्मा में एकरूपता है। राम इन्हीं योगियों के हृदय में रमण करते हैं। अत: राम जानने के लिए ऐसा योगी बनना पडेगा। ऐसा योगी बने बिना राम से बड़ा राम का नाम एक प्रश्न बनकर रह जाएगा।
क्या राम एवं राम के नाम कोई भेद है ? इस प्रश्न का उत्तर पाएं बिना हम राम से बड़ा राम का नाम नामक पहेली को कैसे हल कर पाएंगे। राम एक सत्ता है। जिसको रावणस्य मरणं नाम से जाना जाता है। जो परमपुरुष रावण की मृत्यु बनकर आए थे - वह राम है। अर्थात रावण का नाश करने के लिए आए परमपुरुष राम है। प्रश्न पैदा होता है कि रावण कौन? - रात सदृश्य वर्ण ही रावण है। रावण का अर्थ अंधकार, अज्ञान, अविद्या, पतन, बुराई का चरम बिन्दु। दर्शन कहता है कि जब तमोगुण उसकी चरम अवस्था में पहुँचता है तब जड विस्फोट होता है तथा ऋणात्मक संचर पथ चलने लगता है। चूंकि दर्शन हमारा विषय नहीं है, इसलिए इस ओर ज्यादा नहीं बढ़ेंगे। प्रत्येक मनुष्य में रावण किसी न किसी रुप में रहता है। जहाँ शतप्रतिशत रावण है, वहाँ के दर्शन नहीं हो सकते हैं लेकिन वहाँ राम का नाम घुस सकता है। इसलिए राम से बड़ा राम का नाम कहा गया है। जहाँ रावण शून्य है, वहाँ राम है तथा यहाँ राम का नाम भी है। राम से मनुष्य का सीधा साक्षात्कार यही पर हो जाता है। राम व रावण का संघर्ष मनुष्य के तन, मन व हृदय में सतत चलता रहता है। राम की जीत ही मनुष्य की सदगति है। जबकि रावण की प्रबलता दुर्गति है। जहाँ रावण की प्रबलता है, वहाँ राम के दर्शन नहीं हो सकते हैं। इसको साधारण भाषा में समझाने के लिए लिख दिया गया है कि जहाँ रावण रहता है वहाँ राम नहीं रहते हैं। यद्यपि दर्शनगत रुप से यह बात गलत होने पर भी शिक्षागत रुप स्वीकार की जा सकती है। जहाँ राम के दर्शन दुर्लभ है वहाँ भी मनुष्य जीने की आश देने के लिए राम नाम दिया जा सकता है। इसलिए संत गण करके कहते हैं कि राम से बड़ा राम का नाम। वस्तुतः राम एवं राम के नाम कोई भेद नहीं है। जहाँ राम है वहाँ राम का नाम है तथा जहाँ राम का नाम है वहाँ भी राम अदृश्य रुप में है। इसके बिना परमपुरुष का सर्वत्र नाम सिद्ध नहीं हो सकता है।
रावण शब्द के अर्थ में एक शब्द अज्ञान आया था, उसने ज्ञानियों की चाय की प्याली में तुफान ला दिया होगा। इसलिए इस पर भी लिखना आवश्यक है। स्वयं राम ने लक्ष्मण को रावण के पास उस समय शिक्षा लेने भेजा था, जब रावण मरने वाला था तथा राम ने रावण को ज्ञानी कहकर संबोधित किया था। ज्ञानी लोग का भविष्य बड़ा निराला होता है। उन्हें ज्ञान का जब अहंकार हो जाता है तब उसके प्रगति के सभी द्वार बंद हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में उसे अन्य की ज्ञान एवं विवेक की शक्ति नहीं सुहाती है। वह अज्ञानियों के बीच में रहना पसंद करता है, वहाँ सभी उनकी सुनते हैं, उससे उसे अच्छा लगता है तथा खुशी की अनुभूति मिलती है। अज्ञानियों का ज्ञानी राजा बिना आँखों वाला ही होता है। इसलिए रावण राज को अज्ञान कहा गया है। रावण में ज्ञान होते हुए वह अज्ञान है, उसका ज्ञान मृत्यु की वेला पर जगता है। जिसको लक्ष्य की ओर बढ़ते प्राणी को ग्रहण कर लेना चाहिए।
'राम से बड़ा राम का नाम' विषय समाप्ति की ओर है। राम व राम के नाम में कोई भेद नहीं इसलिए इसको विवाद का विषय बनना उचित नहीं है। वस्तु राम शब्द एक नाम के रूप में जन्मा था। साधकों मरा से राम बनाने के लिए राम नाम आया था। आज भी जो आलसी तथा निक्कमे है, उन्हें राम नाम सुनाने जान आ जाती है - ऐसी मान्यता है। राम नाम का अर्थ प्रभु का नाम। उसे अल्लाह, गोड़, भगवान इत्यादि किसी भी नाम में लिया जाता है। एक निराश पड़े क्रिश्चियन को प्रभु यशु का नाम सुनाई दे तो जान आ जाती है। क्योंकि वह भी प्रभु का नाम है। इसी प्रकार मुसलमान के लिए अल्लाह, जैन के लिए जय जिनेन्द्र, बौद्ध के बुद्धम् शरणं गच्छामि, सिख के लिए वाहेगुरु तथा हिन्दू के लिए राम, कृष्ण शिव इत्यादि संस्कार के अनुसार कोई नाम है। जो मनुष्य हिन्दू, मुस्लिम, सिख ईसाई के भाव उपर है, उसके लिए सब नाम सम है। अल्लाह एवं ईश्वर में कोई भेद नहीं। उसके लिए सभी नाम एक जैसे है। इसलिए वह मनुष्य किसी नाम से धृणा नहीं करता है। सभी नाम में अपने परमपिता को पाता है तथा अपने परमात्मा पिता को बाबा कहना आरंभ कर देता है तथा बाबा उसके लिए नाम बन जाता है। इसलिए वह जोर जोर से भगवान को बाबानाम केवलम कह कर पुकारता है। सबकुछ एक ही है। हर रुप में वे मेरे तारक, पालक एवं जनक पिता है। इसलिए वह बाबानाम केवलम है।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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