कृष्ण एवं कृष्ण का काम (Krishna and Krishna's work)


'राम से बड़ा राम का नाम' आलेख पढ़ने के बाद एक मित्र ने श्रीकृष्ण पर लिखने का आदेश दिया। यदि उसकी मांग होती तो अस्वीकार कर लेता लेकिन आदेश है इसलिए लिखने का प्रयास कर रहा हूँ। 

श्रीकृष्ण भगवान है। वे न केवल इसलिए भगवान है ही कि लोग उन्हें भगवान कहते हैं। वे इसलिए भी भगवान है कि उनके काम भगवान के है। अब आपका प्रश्न होगा कि भगवान का क्या काम होता है। भगवान के दो काम होते हैं - प्रथम साधुजन का परित्राण एवं दुष्टों का विनाश तथा द्वितीय धर्म की संस्थापना। यह दोनों ही कार्य श्रीकृष्ण द्वारा बड़ी बेखुबी से किये गए। इसलिए मैं तो श्रीकृष्ण के बारे में यही लिख सकता हूँ कि श्रीकृष्ण भगवान है। श्रीकृष्ण को मात्र भगवान लिखने पर आध्यात्मिक शब्दावली के मर्म के ज्ञाता मुझे आडे हाथ ले लेंगे। क्योंकि श्रीकृष्ण तारकब्रह्म एवं महासंभुति भी है। महासंभुति के रूप में उन्होंने द्वापर युग में महाभारत का निर्माण कर एक धर्म राज्य की स्थापना की है। तारकब्रह्म के रूप में उन्होंने हजारों साधरण मनुष्यों को भगवान‌ बना दिए। अत: श्रीकृष्ण के बारे एक बात लिखी जा सकती तुम्हारी उपमा तुम्हीं हो। 

श्रीकृष्ण के काम की ओर चलकर उन्हें नमन करते हैं। 

(1.) श्रीकृष्ण की बाललीलाएँ - युग ने इनको जन्म से पूर्व ही हमसे‌ छिनने के लिए अविद्या प्रकृति को‌ काम पर लगा दिया था, लेकिन श्रीकृष्ण ने युग को हराकर उस पर अपने हस्ताक्षर कर दिए। इन्हें भक्ति शास्त्र में लीलाएँ नाम दिया गया है। जिसको सुनकर भक्त राहत की अनुभूति करता है। राहत की आपने सही पढ़ा। आनन्द की अनुभूति परमपुरुष के प्रचार में नहीं उनके आदर्श पर काम करने में है। उन्होंने जन्म के साथ पाप शक्ति से संग्राम को जीवन व्रत बना दिया था। श्रीकृष्ण ने इसकी शुरुआत अपने घर से की। जो उनकी बाललीलाएँ कहलाई। 

(2.) गोकुल से धर्मयुद्ध की शुरुआत - श्रीकृष्ण ने बचपन ही अपने मामा एवं मथुरा नरेश कंस के विरुद्ध अभियान की शुरुआत कर दी थी। खेल खेल में धर्मयुद्ध का आह्वान था। मख्खन चोरी मथुरा जाने वाले मख्खन को रोकना था, इसके अलावा कंस‌ के गुप्तचरों का पर्दाफाश कर हत्या करना शामिल था। उन्होंने दूध एवं दही गोकुल से मथुरा बंद करवाकर कंस आर्थिक नब्ज को दबा दिया था। कालांतर में 12 वर्ष की अवस्था में ही कंस की हत्या कर अपदस्थ कर दिया था। यह उनका पहला धर्मयुद्ध था। 

(3.) मथुरा की राजनीति में सुधार - कंस के समय मथुरा सैनिक दृष्टि मजबूत राज्य दिखाई देता था लेकिन अंदर से खोखला था। यहाँ के राजा जनता लहू शोषण पर राज्य का दीप जला रहा था। कंस वध के बाद श्रीकृष्ण ने पहला काम मथुरा को आर्थिक दृष्टि से आत्मनिर्भर बनाने का किया। इसके मथुरा की राजनीति में सुधार कर राजनीति मुक्त अर्थव्यवस्था का निर्माण किया। शेष भारतवर्ष के लिए आदर्श मथुरा को अनावश्यक युद्धों से बचाने के लिए राजधानी द्वारिका नगरी को‌ बनाया। उसके उन्हें रणछोड़ भी कहा गया। लेकिन उन्होंने इसे ईगो पाइंट नहीं बनाया। 

(4.) महाभारत की योजना को अंतिम रुप देना - संदीपन ऋषि के आश्रम में शिक्षा के साथ साधुसन्त एवं विद्वानों से मिलकर एक महाभारत निर्माण की योजना बनाई। उसे सांस्कृतिक एकीकरण, आर्थिक एकीकरण  सामाजिक एकीकरण एवं राजनीतिक एकीकरण के रूप में अन्तिम रुप देना था। श्रीकृष्ण अंत में समाज बनाने की योजना नहीं दे पाये। इसलिए श्रीकृष्ण के बहुत समय बाद महाभारत पुनः तीन तेरह हो गया जो आज भी अखंड भारत के रूप अधूरा सपना बनकर घूम रहा है। श्रीकृष्ण का महाभारत आधुनिक राजनीति के अखंड भारत से बड़ा था। 

(5.) महाभारत का निर्माण - श्रीकृष्ण ने अपने योजना के तहत सांस्कृतिक एकता, आर्थिक एकता एवं सामाजिक एकता स्थापित करने के बाद राजनैतिक एकता के लिए धर्मराज युधिष्ठिर को केन्द्र बिंदु बनाया। धर्मराज युधिष्ठिर उस समय अपने अधिकार को पाने के लिए संघर्षरत थे। हस्तिनापुर में उनके विरूद्ध षडयंत्र पर षड्यंत्र हो रहे थे। हस्तिनापुर के महामंत्री उनको असफल करने का भरसक प्रयत्न कर रहे थे। आखिरकार आधा राज्य ही युधिष्ठिर को दिला पाए। श्रीकृष्ण ने उसी युधिष्ठिर को धर्मराज के रूप में दुनिया के सामने प्रोजेक्ट किया। उसके लिए पाण्डवों को वनवास भी स्वीकार करना पड़ा लेकिन आखिरकार सात अक्षरोहिणी सैनिक शक्ति लेकर दुर्योधन की ग्यारह अक्षरोहिणी सेना के समक्ष खड़ा होना पड़ा। श्रीकृष्ण की सफल युद्धनीति के बल पर अधर्म की ग्यारह अक्षरोहिणी सेना को धूल चटावा दी तथा लाशों के ढेर पर नया भारत का निर्माण हुआ। जिसकी योजना श्रीकृष्ण को दुखद अवस्था में करनी पड़ी। श्रीकृष्ण बिना युद्ध का महाभारत बनाना चाहते थे। लेकिन तात्कालिक क्षत्रियों महत्वाकांक्षा के चलते इसका वरण करना पड़ा। 

(6.) महाविश्व दर्शन को समझे - महाभारत के बाद श्रीकृष्ण एक समाज निर्माण का कार्य करना था लेकिन तात्कालिक परिस्थितियां एवं समय का अभाव नहीं करने दिया। लेकिन महाविश्व सपना महाभारत से अवश्य दिखाई देने लगा। महाविश्व का सपना आधुनिक युग की सबसे बड़ी मांग है। यद्यपि युग ने महाविश्व की निर्माण की नींव रख दी लेकिन देश सीमाएं सम्पूर्ण विश्व की एक संस्कृति होने पर भी बलांत लोक संस्कृति में उलझाकर रखा है। आज श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के रूप में महाविश्व की योजना का निर्माण हुआ है। उसे क्रियांवित कर श्रीकृष्ण के धर्म राज्य के सपने को पूर्ण साकार किया जा सकता है। 

श्रीकृष्ण के कामों देखने के बाद श्रीकृष्ण को समझने निकलते हैं। श्रीकृष्ण को यदुवंशी शिरोमणि, गोकुल का ग्वाला, द्वारिकाधीश कहना उनके प्रति सम्पूर्ण समझ को विकसित नहीं करने देता है। आध्यात्मिक एवं सामाजिक कृष्ण को समझने के लिए ब्रज के कृष्ण एवं पार्थसारथी कृष्ण की भूमिका में रखना होता है। इसके बिना श्रीकृष्ण को सम्पूर्ण रूप से नहीं समझा जा सकता है। ब्रज का कृष्ण प्रेम एवं करुणा का कोमल रूप है तो पार्थसारथी युग की आवश्यकता का कठोर रूप है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की नमामि कृष्णं सुन्दरम् नामक पुस्तक एवं उनके श्रीकृष्ण व गीता पर दिये विभिन्न प्रवचन श्रीकृष्ण को समझने के आज के युग के सबसे मजबूत साधन है। 

आओ श्रीकृष्ण एवं उनके कामों को समझकर उनके स्वप्न से फिर विश्व को सजाते है। 

जय महाविश्व दर्शन।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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