धर्म महा सम्मेलन के पांच विषय (Five topics of D. M. S. )

धर्म महा सम्मेलन के मुख्य पांच विषय है। प्रथम - आध्यात्मिक भावधारा का प्रवाह, द्वितीय - कार्यकर्ताओं के दायित्व की समालोचना, तृतीय - स्मृति शास्त्र, धर्म शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र की विवेचना, चतुर्थ - आय-व्यय का लेखाजोखा तथा पंचम - महा मिलन का अनुभव। इन्हें विषय के प्रति निभाई गई व्यष्टि की जिम्मेदारी एवं समष्टि का कार्य धर्म महा सम्मेलन की सफलता की कुंजी है। 


🎯     धर्म महा सम्मेलन        🎯
               (D.M.S.) 
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आनन्द मार्ग प्रचारक संघ में साप्ताहिक ईश्वर प्रणिधान, धर्म चर्चा एवं कार्यकर्ताओं के साप्ताहिक अनुरेखण को धर्म चक्र(D.C.)कहा गया है। धर्म चक्र का वृहद रुप धर्म महा चक्र (D.M.C.) कहा जाता है। इससे पूर्व महात्मा बुद्ध द्वारा धर्म चक्र का आयोजन किया गया था। जिसमें महात्मा बुद्ध मार्मिक विषय पर विश्लेषण देते थे। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ में आरंभ के दिनों में मासिक धर्म महा चक्र होते थे। प्रत्येक पूर्णिमा के दिन ऐसे आयोजन होते हैं। कालांतर में द्विमासिक, त्रैमासिक एवं अर्द्ध वर्ष का रुप ले लिया। वैसे धर्म महा चक्र आवश्यकता पड़ने पर आयोजित करते आए हैं। आनन्द मार्ग के सार्वभौमिक प्रचार के उद्देश्य से मार्ग गुरुदेव द्वारा कई धर्म महा चक्र आयोजित करवाए गए। कालांतर में मार्ग की अति व्यस्तता अथवा अन्य किसी कारण से धर्म महा चक्र का एक वैकल्पिक रूप धर्म महा सम्मेलन (D.M.S) के रूप में अस्तित्व में आया। इसमें मार्ग गुरुदेव की भौतिक उपस्थित के अभाव में उनके प्रतिनिधि द्वारा धर्म महा सम्मेलन किया जाता था। मार्ग गुरुदेव के भौतिक शरीर के परित्याग के बाद  धर्म महा चक्र इतिहास बन गया तथा धर्म महा सम्मेलन आनन्द मार्ग प्रचारक संघ का सबसे बड़ा कार्यक्रम बन गया। धर्म महा सम्मेलन के इस रुप को आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के पुरोधा प्रमुख द्वारा संबोधित किया जाता है। यह धर्म महा सम्मेलन में मार्ग गुरुदेव के प्रतिनिधि होते हैं। उनकी अनुपस्थिति में उनके प्रतिनिधि के रूप में कोई अन्य कार्यकर्ता संबोधित करता है। वास्तव में धर्म महा सम्मेलन को संबोधित करने वाला कोई भी कार्यकर्ता मार्ग गुरुदेव का ही प्रतिनिधि होता है। वैसे तो आवश्यकता अनुसार एवं सार्वभौमिक प्रचार के उद्देश्य संसार में सर्वत्र धर्म महा सम्मेलन आयोजित किये जाते हैं लेकिन आनन्द नगर में आयोग होने वाली आनन्द पूर्णिमा एवं नववर्ष के धर्म महा सम्मेलन का महत्व अद्वितीय है।

धर्म महा सम्मेलन के मुख्य पांच विषय है। प्रथम - आध्यात्मिक भावधारा का प्रवाह, द्वितीय - कार्यकर्ताओं के दायित्व की समालोचना, तृतीय - स्मृति शास्त्र, धर्म शास्त्र एवं दर्शन शास्त्र की विवेचना, चतुर्थ - आय-व्यय का लेखाजोखा तथा पंचम - महा मिलन का अनुभव। हम धर्म महा सम्मेलन पर होने वाली चर्चा को सार्थक बनाने के लिए  सभी विषयों पर गहनता से अध्ययन करेंगे। 

(१) कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक भावधारा का प्रवाह - आनन्द मार्ग प्रचारक संघ एक प्रचारकों का संघ है, जो आनन्द मार्ग दर्शन एवं आदर्श का प्रचार करता है। अतः यहा सभी एक कार्यकर्ता हैं। आनन्द मार्ग में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होता, जिसके पास कोई दायित्व न हो। अतः धर्म महा सम्मेलन का पहला उद्देश्य ही आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के कार्यकर्ताओं में आध्यात्मिक भावधारा का प्रकाश करना है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी इस‌ धरा पर भक्ति की धारा बहाने के मुख्य उद्देश्य से आए थे। अतः धर्म महा सम्मेलन साधना, सेवा एवं त्याग का पाठ पढ़ाकर आध्यात्मिक भावधारा का प्रवाह करता है। इसके लिए धर्म महा सम्मेलन अपने कार्यकर्ता को धर्मचक्र, आवर्त कीर्तन, साधना, कीर्तन, व्यक्तिगत ईश्वर प्रणिधान, सामूहिक ईश्वर प्रणिधान, अखंड कीर्तन एवं सत्संग देता है। जिसके बल पर आध्यात्मिक भावधारा का निरंतर प्रवाह होता रहता है। 

(२) कार्यकर्ताओं दायित्वों की समालोचना - धर्म महा सम्मेलन का द्वितीय विषय आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के कार्यकर्ताओं के दायित्वों की विवेचना एवं समालोचना करना है। इसमें प्रत्येक कार्यकर्ता, इकाई, भुक्ति, डाइसिस, रिजनल, सेक्टर एवं विभाग व अनुभाग अपने एक अर्द्ध वर्ष के दायित्वों को संघ के पटल पर रखता है तथा आगामी दायित्व का संकल्प लेता है। संघ कार्यकर्ता के दायित्व में परिवर्तन, वृद्धि एवं कमी कर एक नूतन साहस भरता है। यदि हम धर्म महा सम्मेलन गए तथा द्वितीय विषय पर कार्य नहीं किया तो संगच्छध्वम् की परिभाषा भूल गए हो। अतः धर्म महा सम्मेलन में जाने का उद्देश्य सिद्ध होने में बड़ी चूक कर आए हो। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ की भाषा में इसे रिपोर्टिंग एवं टारगेट लेना कहते हैं। 

(३) धर्म शास्त्र,दर्शन शास्त्र एवं स्मृति शास्त्र की विवेचना - धर्म महा सम्मेलन का तीसरा उद्देश्य धर्म शास्त्र,दर्शन शास्त्र एवं स्मृति शास्त्र की विवेचना करना होता है। आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के एक कार्यकर्ता को धर्म शास्त्र, दर्शन शास्त्र एवं स्मृति शास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है। इसलिए संघ पुरोधा प्रमुख विभिन्न विषयों की विवेचना करते हैं। धर्म महा सम्मेलन में प्रवचन नहीं शास्त्र की विवेचना एवं व्याख्या होती है। अतः प्रत्येक कार्यकर्ता को इस अवसर पर अपने मन उठने वाले सभी प्रश्नों के उत्तर जान लेना चाहिए तथा नूतन विषय को जानने की जिज्ञासा बढ़ानी चाहिए। धर्म महा चक्र के संदर्भ में अनुभवी बताते हैं कि बाबा के आलोच्य विषय  में हमारे मन में चलने वाले प्रश्नों के उत्तर मिल जाते थे। धर्म महा सम्मेलन शायद ऐसा संभव न हो इसलिए अपने मन में चलने वाली प्रश्नावली लेकर आना चाहिए तथा उन्हें वरिष्ठ कार्यकर्ता, तात्विक, आचार्य एवं पुरोधा की मदद से सरल कर देना चाहिए। इसके अलावा नए ज्ञान के अपने मन एवं हृदय द्वारा खुले रखना भी धर्म महा सम्मेलन के तीसरे उद्देश्य में शामिल हैं। धर्म महा सम्मेलन में यदि हम यह कार्य नहीं किया तो भी अधूरा कार्य करके ही आए हैं। 

(४) आय-व्यय का लेखाजोखा - धर्म महा सम्मेलन संघ तथा उसकी प्रत्येक शाखा का आय-व्यय का लेखाजोखा देखने के उद्देश्य को भी देता है। बिना वित्त के संगठन नहीं चल सकता है। इसलिए इस‌ अवसर पर प्रत्येक कार्यकर्ता को आय-व्यय का लेखाजोखा रखने, देखने एवं जानने का हक है तथा सभी को समय समय पर तथा धर्म महा सम्मेलन अपना अंशदान देने जिम्मेदारी भी धर्म महा सम्मेलन के चोथे विषय में शामिल हैं। इस अवसर संघ का वित्त सचिव अपनी रिपोर्ट भी पेश करता है। चूंकि आनन्द मार्ग प्रचारक संघ विकेन्द्रत अर्थव्यवस्था की नीति पर चलता है। इसलिए सभी विभाग, अनुभाग एवं प्रभागों का लेखाजोखा भी प्रस्तुत करता है। हम धर्म महा सम्मेलन गए तथा चौथे विषय को अछूता छोड़ आए तो हरिद्वार गए लेकिन गंगा नहाए बिना ही आ गए समान है। यह अंशदान हमें अच्छा अनुभव करता है तथा लेखाजोखा का ज्ञान रखना हमे जिम्मेदार बनाता है। एक कार्यकर्ता को अच्छा एवं जिम्मेदार बनना ही चाहिए। 

(५) महा मिलन का अनुभव - धर्म महा सम्मेलन में पुराने, नये तथा सभी प्रकार के कार्यकर्ताओं का मिलन होता है। जिससे उनकी जीवन शैली, कार्यशैली एवं कर्तव्य निवहन के तरीकों का आदान-प्रदान होता है। यह कार्य एक कार्यकर्ता को स्वयं को गढ़ने में मदद देता है। इस अवसर पर आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के उन कार्यकर्ताओं से मिलने का अवसर मिलता है, जो भौतिक दृष्टि से अदृश्य हैं लेकिन संघ के महान आदर्श को मूर्त रुप देने में लगे हुए हैं अथवा थे। जब भी कार्यकर्ता मिलते हैं तब अपने पुराने महान कार्यकर्ताओं की चर्चा करनी चाहिए तथा अच्छे कार्यकर्ताओं का जिक्र होना चाहिए। इससे आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के अदृश्य कार्यकर्ताओं से रुबरु होते हैं। कार्यकर्ताओं के मिलन का यह कार्य भावी कार्यकर्ताओं के मिलन की तस्वीर भी उरेखित करता है। हम सफल एवं योग्य कार्यकर्ता द्वारा प्रचार की शैली को सिखने को मिलती है, जो हमारे प्रचार के कौशल में वृद्धि करता है, जो भावी कार्यकर्ता के मिलन की तस्वीर बनाता है। भूतकाल, वर्तमान काल एवं भविष्य के कार्यकर्ता के मिलन का यह त्रिवेणी संगम हमें महा मिलन की ओर ले चलता है तथा हम बाबा से प्रत्यक्ष  मिलन का अनुभव करता है। धर्म महा चक्र में जो उत्साह दिखता था, वो बाबा के दर्शन एवं मिलन का होता था। धर्म महा सम्मेलन में यह उत्साह कम नहीं हो इसलिए आनन्द मार्ग से मिलना आवश्यक है क्योंकि कि बाबा कहते थे कि मैंने अपने आप को अपने मिशन में समाहित कर दिया है। आनन्द मार्ग के धर्म महा सम्मेलन पांच प्रमुख उद्देश्य को सिद्ध करने से होता है। आनन्द मार्ग से मिलना एवं आनन्द मार्ग के कार्यकर्ताओं द्वारा अनुभव एवं अनुभूतियों का साझा करना महा मिलन के उद्देश्य को सिद्धि प्रदान करते हैं। 

धर्म महा सम्मेलन में पांच उद्देश्य को सिद्ध करके लौटता है। उसका धर्म महा सम्मेलन में जाने का उद्देश्य सफल होता है। रूढ़ मान्यता को प्रश्रय नहीं देने के लिए तीर्थ यात्रा करना चरितार्थ करना नहीं लिख सकता हूँ। लेकिन यदि हम धर्म महा सम्मेलन में अपने समय, श्रम, धन, आस्था, विश्वास, श्रद्धा एवं जिम्मेदारी का योगदान करते हैं तो इसको फलिभूत करने के धर्म महा सम्मेलन का सम्पूर्ण आनन्द लेना आवश्यक है। यह सम्पूर्ण आनन्द सभी विषय पर किया गया कार्य ही है। 

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व्याख्या‌ - [श्री] आनन्द किरण "देव"
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