ऐसे है- हमारे शिव (Like this - our Shiva)

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       श्री आनन्द किरण "देव"
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श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की कृति नमो शिवाय शांताय ने भगवान‌ के संदर्भ में व्याप्त सभी भ्रांत धारणाओं को साफ करके भगवान शिव के सच्चे एवं अच्छे स्वरूप को दिखारा है। यद्यपि इससे पूर्व भी आदिपुरुष भगवान सदाशिव के संदर्भ बहुत सारी पुस्तकें लिखी गई लेकिन इन्होंने शिव की छवि को उलझा कर रख दिया था। मैंने भी प्रथम पुरुष शिव नामक पुस्तक का लेखन किया है। उसमें शिव को वास्तविक ऐतिहासिक पात्र के रुप एक महानायक की भूमिका दिखाते हुए नमन करने का प्रयास किया गया है। शिव मानव सभ्यता के आदिपिता, आदिगुरु एवं आदि नायक है। इनके बराबर किसी महानायक को नहीं बैठाया गया है। आज हम 'ऐसे है - हमारे शिव' नामक आलेख के माध्यम से शिव को नमन करेंगे। 

शिव के दो रुप दर्शन के शिव एवं ऐतिहासिक शिव में एकरूपता है। दर्शन के शिव सृष्टि के प्राण केन्द्र आदि कारक है। उनके रहने से सृष्टि है। इतिहास के शिव मानव सभ्यता के मुकुटमणि प्रथम पुरुष है। इनके बिना मानव सभ्यता की कल्पना अपूर्ण है। शिव को महेश के रूप में भी दिखाने की कोशिश की गई है लेकिन यह स्वरूप शिव के एकाकी गुण चित्रित करता है। शिव सृजन, पालन एवं संहार से बढ़कर सर्वशक्तिमान सत्ता का नाम है। जिसमें ब्रह्मा, विष्णु व महेश नामक तीनों शक्तियों के साथ सम्पूर्णत्व का समावेश है। शंकर, महादेव, भालेनाथ, भूतनाथ, आदिदेव, महाकाल व‌ देवाधिदेव इत्यादि नाम शिव एक या अधिक भूमिका की गुणात्मक अभिव्यक्ति है। 

हमारे शिव मानव गोष्ठी के पिता है। इनके साथ मनुष्य का संबंध अपनत्व है। पारिवारिक संबंध होने के कारण शिव प्रत्येक मनुष्य के परिवार के सदस्य है। जहाँ शिव के साथ पारिवारिक रिश्ता हो‌‌‌ गया है वहाँ मनुष्य व सृष्टि में दूरियां कम हो गई है। सर्व भवन्तु सुखिनः का सूत्र स्थापित हो जाता है। अत: शिव को वैश्विक एकता के‌ प्रतीक के रूप में स्थापित किया जा सकता है।

शिव विश्व एकता के प्रतीक -

 आज के विश्व में सबसे बड़ा पार्थक्य मजहबीय मान्यता का है। सभी अपनी अपनी मान्यता के रूप में जगत को देखते हैं। शिव सभी मजहब से उपर है, क्योंकि शिव जब सृष्टि में आए‌ थे तब मजहब का जन्म ही नहीं हुआ था। अत: शिव को लेकर मजहब की मान्यताएँ विवाद करती है, तो नादानी है। चूंकि समस्त मानवों का एक ही धर्म है। 'बृहदेषणा प्रणिधानं च धर्म:'‌  बड़ा(विराट) बनने की कामना एवं बड़ा(विराट) बनने का प्रयास दोनों का मिलित नाम धर्म है। बडप्पन हासिल करने की कामना रखना एवं बडप्पन हासिल करने का प्रयास करना एक अच्छी बात है तथा यह मनुष्य धर्म अर्थात कर्तव्य है। मनुष्य इस धर्म को विस्तार, रस‌‌, सेवा एवं तदस्थिति नामक चार स्तंभ स्थापित किया गया है। इसका संस्कृत में भावगत नाम भागवत धर्म है। अरबी फारसी का करीबी नाम रूहानी इंसानियत (ईमान) है। अंग्रेजी इसे Neohuminism विचार से समझ सकते हैं। अरबी फारसी तथा अंग्रेजी में मानव धर्म का कोई perfect शब्द नहीं है। इसलिए इन्हें समझने के निकटवर्ती शब्दों का सहारा लिया गया है। विस्तार, रस, सेवा एवं तदस्थिति प्राप्त करना सभी मनुष्य की चाहत है। अत: धार्मिक मतभेद कहना गलत है। इस विचार के आदि प्रणेता शिव है। अत: शिव को एक आदर्श पुरुष के रूप में स्वीकारने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। वैश्विक एकता के मार्ग में दूसरा व्यवधान जातिय विभिन्नता है, जो बुद्धि की परिपक्वता के साथ क्षीण हो जाती है। तीसरा व्यवधान देश की सीमाएँ है। जो व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा की दूरियां पर टिकी है। जिसका समाधान विश्व बंधुत्व का विकास है। शिव को विश्व एकता के प्रतीक के रूप में रखने से विश्व एकता स्थापित हो जाती है। 

शिव मानव इतिहास के जनक  

विश्व एकता के प्रतीक के रूप शिव स्वीकार हो जाने के बाद मानव इतिहास की नब्ज को पकडते है। मानव इतिहास व्यक्तियों के क्रियाकलाप से बनता है। जिसमें नायक भूमिका महत्वपूर्ण होती है। नायक भी जिनको नमन करते हैं, उस महानायक की सज्ञा दी जाती है। शिव का चिन्तन समस्त सृष्टि के कल्याण के लिए था, उनके कार्य सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय थे। अत: उन्हें इतिहास का प्रथम नायक व महानायक कहा जाता है। उनसे पहले कोई नायक एवं महानायक नहीं हुआ है इसलिए उन्होंने मानव इतिहास का जनक कहना युक्ति सहमत हैं। इतिहास के जनक अंगीकार होते ही। शिव विश्व पिता है। 

        शिव आदिगुरु 
शिव ने मनुष्य को शिक्षा दी है। सुव्यवस्थित ढंग से शिक्षा देने का प्रथम कार्य शिव ने किया है। इसलिए शिव प्रथम या आदिगुरु कहा जाता है। शिव आदिगुरु के स्वीकार होते ही। एक आदर्शपुरुष के सबके लिए आदरणीय है।

     शिव व आज
शिव है तथा सदैव है। उनके आगे थे लगाकर इतिहास के लिए अध्ययन किया जा सकता है। शिव एक महा व्यक्तित्व थे। व्यक्तित्व की कभी मृत्यु नहीं होता है। शिव आज भी है तथा प्रमाणित व प्रासंगिक है। शिव के विचार वैज्ञानिक नीति पर आधारित प्रगतिशील है। अत: आज युग में शिव के विचार आदर्श है। इसके ज्यादा व्याख्या करने से अच्छा पाठकों प्रश्नों का जबाब देना है। इसलिए पाठकों से निवेदन है कि संदेह हो तो प्रश्न अवश्य करें। इसलिए आलेख अधूरा ही प्रकाशित है।

 
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