"भारतवर्ष शब्द का अर्थ भरणपोषण एवं समग्र उन्नति को सुनिश्चित करने वाला भूभाग है।"
- श्री प्रभात रंजन सरकार
हमारे देश की थीम जिन पवित्र शब्दों से लिखी गई है, उतनी पवित्र थीम शायद ही किसी देश की है। यह बात गर्व के साथ जिम्मेदारी वाली भी है। हम लोगो गर्व तो अवश्य करते हैं लेकिन जिम्मेदारी पर ध्यान नहीं देते हैं। देश की आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरु ने गुटनिरपेक्ष की मुहिम के साथ जिम्मेदारी पर कुछ काम किया था लेकिन देश के अंदर का आधारभूत ढ़ाचा सही थीम पर नहीं बनने के कारण हम स्वयं ही समस्याओं से घिर गए तथा हमारी जिम्मेदारी मात्र औपचारिकता रह गए। चूंकि हमारा विषय यह नहीं है इसलिए इस गहराई में नहीं जाकर विषय की ओर चलना ही अच्छा है।
भारतवर्ष काल की यात्रा के क्रम में आर्यावर्त, दक्षिणावर्त, जम्बूद्वीप, हिन्दुस्तान, भारत एवं इंडिया इत्यादि नाम से अनौपचारिक पहचान बनाते हुए मूल थीम से अलग हटकर कुछ बदलता सा नजर आने लगा। लेकिन भारतवर्ष का प्राणधर्म आध्यात्म उसे अपनी मूल थीम ज्यादा दूर नहीं जाने दिया। आज भी भारतीय संस्कार के नाम पर मूल थीम मुख्य पटल पर चलती ही रहती है। भारतवर्ष उपरोक्त नाम को समझना हमारी विषय वस्तु में नहीं है इसलिए इस ओर भी ज्यादा नहीं चलेंगे।
चलों मूल विषय पर चलते हैं। जिसमें भारतवर्ष के संदर्भ में कुछ शब्द है। यह मात्र शब्द नहीं योजना है। उसे समझने के प्रयास करते हैं।
(1) भारत - हमारे राष्ट्र का संवैधानिक नाम भारत है। जिसके बारे संविधान में लिखा है। भारत जो कि इंडिया है। यह हमें अंग्रेजों द्वारा विरासत में मिले भारत एवं देशी रियासतों के एकीकरण से बने भारत की योजना है। दूसरे अर्थ में कहा जाए तो आज हमारे पास जो भूभाग उपलब्ध है तथा विश्व मान्य हमारे मानचित्र में जो भूभाग है, उसका नाम है। भारत के इस चित्र को भारतीय जनता पार्टी को छोड़कर लगभग सभी राजनैतिक पार्टियों ने स्वीकार कर दिया है। यह राष्ट्र अपनी सीमा में रहकर एक सम्प्रभु राष्ट्र के सभी गुण अर्जित करता चल आ रहा है। लेकिन इसके अर्वाचीन एवं गिलगित-बाल्टिस्तान तथा पाक अधिकृत कश्मीर पर अबतक की फिकी पकड़ हमें भारत नामक योजना में कसर नजर आ रही है। इसके अलावा हमारी सीमाओं पर अलगवाद की समय समय उठती मांगे योजना की शिल्पकारी मजबूत करने की आवश्यकता महसूस कराता है।
2. अखंड भारत - यह वीर सावरकर का सपना है जिसमें हिन्दू राष्ट्र भी समाया हुआ है। जिसे भाजपा लेकर चलती है। बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, भूटान, अफगानिस्तान, नेपाल, तिब्बत एवं मालदीव को भारत में मिलाकर हिन्दू राष्ट्र मय अखंड भारत बनाने की योजना है। इसके संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम में संकल्प पत्र लिखे जाते आ रहे है तथा पढ़ पढ़कर संकल्प को मजबूत किया जाता है। मैं भविष्य वक्ता नहीं इसलिए इस संकल्प पत्र की सिद्धि पर कुछ न कहना ही उचित समझता हूँ। लेकिन मुझे अच्छा लगेगा कि ऐसा भारत मुझे मिल रहा है।
(3.) विश्व भारतवर्ष - यह शब्द जयपुर निवासी आचार्य कुलदीप प्रसाद द्वारा बनाया गया है। इसमें देशों की सीमाएँ कुछ भी रहे लेकिन सम्पूर्ण विश्व धरा के समस्त राष्ट्र भारतवर्ष के मूल शब्द को चरितार्थ करने वाली हो। जिन राष्टोंं के अस्तित्व रहने भारतवर्ष का मूल अर्थ नेशन चरितार्थ नहीं कर सकता उन्हें या उस पडौसी राष्ट्र में विलय हो जाना चाहिए अथवा उससे सहभागिता करके चलना चाहिए। आचार्य कुलदीप प्रसाद ने बताया कि जो राष्ट्र भरणपोषण एवं समग्र उन्नति को सुनिश्चित नहीं कर सकता, वह भारतवर्ष नहीं हो सकता है। जो भारतवर्ष के नाम चरितार्थ करने वाला देश नहीं वह राष्ट्र नहीं है। इसलिए उन्होंने एक वैकल्पिक मांग के तहत विश्व भारत शब्द मेरे समक्ष रखा।
(4.) महाभारत - यह श्रीकृष्ण की योजना थी। जिसमें तात्कालिक लगभग सारी पृथ्वी थी जो आपस में सांस्कृतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक कारणों से जुड़ी हुई थी। जिसमें एशिया, अफ्रीका, युरोप व आस्ट्रेलियाई भूभाग समाविष्ट थे। उन्होंने उसे सफल बनाकर धर्मराज्य की स्थापना की। श्रीकृष्ण का धर्मराज्य नीति, न्याय, नैतिकता एवं दायित्व से युक्त जाति एवं साम्प्रदायिक पहचान शून्य राष्ट्र था।
(5) महाविश्व - सम्पूर्ण धरा पर एक अखंड अविभाज्य मानव समाज युक्त विश्व सरकार द्वारा संचालित सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ क्रियाशील नव्य मानवतावादी सोच युक्त संकल्पना है। जिसके योजनाकार श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ( श्री प्रभात रंजन सरकार) है। यह श्रीकृष्ण के महाभारत से बड़ा एवं आचार्य जी वैकल्पिक योजना की कमियों परिपूर्ण विश्व परिवार है। जहाँ एक सेक्टर, रिजनल, डाइसिस, भुक्ति, उपभुक्ति, पंचायत, ग्राम एवं वार्ड अपनी भूमिका रखेंगे । यह संघीय व्यवस्था को मजबूती प्रदान करेंगे तथा अर्थव्यवस्था के विकेन्द्रीकरण को चरितार्थ करेंगे।
विषय यह कहता है सपना ऐसा देखो जो सांस्कृतिक मर्यादा को चरितार्थ करें, योजना ऐसी बनाओ जो महान आदर्श को परिपूर्ण करें, सोच ऐसी बनाओं जिससे मनुष्य होने में शर्मिंदा न होना पड़े तथा काम ऐसा करो जो सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ हो। ऐसा चिन्तन ही भारतवर्ष है।
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श्री आनन्द किरण "देव"
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