क्या देश का प्रधानमंत्रीकरण हो रहा है? (Is the prime ministerization of the country taking place?)


लोकतंत्र को जनता का राज कहा जाता है लेकिन दुर्भाग्य यह जनता राज तक पहुँच नहीं पाती है। सत्ता चतुर नेताओं के हाथ में रहती है। संसदीय लोकतंत्र में संसद को सर्वोच्च माना जाता है। लेकिन संसद सत्तारूढ़ दल के हाथ का खिलौना बनकर रह जाता है। संसदीय लोकतंत्र में देखा गया है कि सम्पूर्ण सत्ता प्रधानमंत्री के इर्दगिर्द घूमती है। इसलिए आज विषय 'देश का प्रधानमंत्रीकरण' लिया है।

नरेंद्र मोदीजी जी प्रधानमंत्री जी बनने के बाद एक ऐतिहासिक घोषणा की थी कि आज से सभी योजनाएं सांसद के नाम से बनेगी। ऐसा लगा कि लोकतंत्र के उद्धार की वेला आ गई। मेरा मन अतिमहत्वाकांक्षी होने के कारण आर्थिक लोकतंत्र का ही सपना देखने लग गया। लेकिन यकायक सम्पूर्ण देश प्रधानमंत्री में ऐसा समा गया जैसा आज दिन तक किसी प्रधानमंत्री के शासनकाल में नहीं हुआ। पहले भारत सरकार हुआ करती थी, उसमें सभी मंत्रियों के काम काज दिखते थे। प्रत्येक सांसद की अपनी गरिमा थी। लेकिन आजकल न भारत सरकार दिखती, न ही उसके मंत्री। सांसद तो‌ केवल है करके है। इस अवस्था को देश का प्रधानमंत्रीकरण कहना क्या अतिशयोक्ति है?

आज कोई नहीं जानता है कि भारत में केबिनेट भी है। स्वयं मंत्री महोदय को भी मंत्री होने का भान कभी कभी होता होगा। क्या ऐसा दृश्य भारत में पहले भी हुआ था? पहले का भारतीय लोकतांत्रिक इतिहास बताता है कि इंदिरा गाँधी सबसे अधिक अलोकतांत्रिक प्रधानमंत्री थी लेकिन आज का इतिहास इंदिरा गाँधी को भी लोकतांत्रिक बताता है। क्योंकि नरेंद्र मोदीजी के काल में लोकतंत्र राजतंत्र में बदलता सा नजर आ रहा है। लोकतंत्र के इस राजा ने बकायदा राजदंड धारण करके अपने आप चोलवंशी राजाओं के समक्ष स्थापित करने का प्रयास किया। इसको देखकर भारत का संविधान, कानून एवं राष्ट्रपति भी कुछ नहीं बोले।


राजतंत्र में राजा के ऐश्वर्य उनकी शक्ति का प्रतिबिम्ब होता था, लोकतंत्र में सबसे अधिक प्रशंसा लालबहादुर शास्त्री जी की होती है। जिसका कारण उनकी सादगी एवं राष्ट्र के प्रति उनका समर्पण था। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो सत्तासीन की सादगी एवं राष्ट्र के लिए समर्पण उनकी महानता का प्रतीक है। भारतीय लोकतंत्र ने तो राष्ट्रपिता महात्मा गॉंधी का त्याग राजनीति के समक्ष आदर्श प्रतिमान में रखा। लेकिन दुख की बात यह है कि स्वयं पंडित जवाहरलाल नेहरु ने भी महात्मा गाँधी जी के त्याग को धारण नहीं किया। इसलिए अन्य प्रधानमंत्रियों से आश रखना भी निपट मुढ़ता है। यद्यपि  वर्तमान प्रधानमंत्री जी दल तथा मातृ संगठन महात्मा गाँधी जी को आदर्श नहीं मानता है तथापि हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री जी के आदर्श में महात्मा गाँधी सदैव दिखाएं गए हैं। फिर भी प्रधानमंत्री जी कभी भी महात्मा गाँधी जी त्याग को जीवन में नहीं उतारा।


बात देश के प्रधानमंत्रीकरण की चल रही है। कतिपय विद्वान कहते है कि भारत देश की सत्ता हिटलर सी तानाशाही को धारण कर रही है, जहाँ प्रधानमंत्री जी किसी नहीं सुनते हैं। हमारे प्रधान आकाशवाणी से मन की बात करते है लेकिन लोग आरोप लगाते हैं कि प्रधानमंत्री जी किसी के मन की बात नहीं सुनते हैं। लोकतंत्र में इस दृश्य को क्या कहते हैं, यह राजनीति विश्लेषक ही बता सकते हैं।


लोकतंत्र में कहा जाता है कि जनता की इच्छा को सामान्य इच्छा माना गया है, उसी के अनुसार राजनीति की चाहत का निर्माण होती है लेकिन अक्सर देखा गया है कि सत्ता की चाहत ही जनता इच्छा बनकर रह जाती है। आज तो बकायदा तथाकथित मीडिया एवं आईटी सेल इस कार्य को करते दिखाई दे रहे हैं। लोकतंत्र में प्रधानमंत्री एवं नेताओं की फेस मेकिंग का कार्य एक योजनाबद्ध तरीके से होना स्वयं लोकतंत्र की तोहीन है। मनोविज्ञान की मोटी पुस्तकें पढ़कर कुछ इस प्रकार इवेंट कर समाज को भूलभुलैया में डालता है तथा धन ऐठने में लगे हुए। आजकी राजनीति भी इसमें डुबकी लगाती दिख रही है।


आदर्श लोकतंत्र में देश का जनताकरण होता है जबकि कमजोर व असहाय लोकतंत्र में देश का‌ प्रधानमंत्रीकरण होता है। वीर व बहादुर लोकतंत्र जनता की ताकत एवं‌ प्रगति देखकर फलता फूलता है, लेकिन इसके विपरीत प्रधानमंत्री की ताकत जनता को दिखा दिखाकर जनता को गुमराह करना कमजोर व कायर लोकतंत्र की निशानी है। प्रधानमंत्री का सीना छप्पन इंच दिखाना लोकतंत्र की परिपाटी नहीं है जनता का सीना छप्पन इंच का बने यह लोकतंत्र का असली काम‌‌ है। इस दशा को नीति शास्त्र‌ देश का‌ प्रधानमंत्रीकरण कह सकता हैं।


प्रधानमंत्रीकरण का अर्थ पूरे के पूरे देश को प्रधानमंत्री में ही दिखाना, ऐसा आभास करना कि प्रधानमंत्री ही‌ सबकुछ करते हैं बाकी सब उनके हेल्पर मात्र है। प्रधानमंत्रीकरण में यह भी आता है कि केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय‌ सब चुनाव प्रधानमंत्री ही लड़ रहा है। उनके अलावा कोई चेहरा नहीं लड़ सकता है। यदि भूल से भी कोई चेहरा कमल‌ के फूल की भांति खिलता दिख जाए तो उसे अपने गले में प्रधानमंत्री अथवा अपने दल के नेता की तश्वीर लेकर चलना होता है। क्या विश्व में किसी देश में ऐसा होता है? यदि हा तो‌ उस देश का प्रधानमंत्रीकरण हो रहा है। किसी भी देश प्रधानमंत्रीकरण होना भयावह तस्वीर है। जो किसी अनर्थ की‌‌ सूचना देता है। पहले‌ कहते थे‌ कि इस स्थिति में या तो वह देश विदेशी लालसा का आहार बन सकता है अथवा गृहयुद्ध का‌‌ सामना कर सकता है। लेकिन आज के युग यह दोनों होना संभव नहीं है तो‌ जन आक्रोश एवं शक्तिशाली जन आंदोलन सम्पूर्ण व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल इत्यादि क्रांतिकारियों के प्रकट होने को नकारा नहीं जा सकता है। सुभाषचंद्र बोस, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय के उदय से इंकार नहीं किया जा सकता है। महात्मा गाँधी, गोखले, नेहरू, पटेल को देखा जाना कल्पनातित नहीं माना जा सकता है।

मैं नहीं कहता हूँ कि देश का प्रधानमंत्रीकरण हो रहा है। मैंने तो‌ देश में जो कुछ हो रहा है तथा जो हो सकता है। इस विषय के माध्यम से‌ समझा है।

देश का आदर्शकरण होने का अर्थ है समाज के प्रगति पर चलना। देश का नागरिक की खुशहाली जग जग में दिखनी। देश में डर का नहीं विश्वास का महौल दिखाई देना। जातियाँ द्वंध नहीं सहयोग के रास्ते चलती दिखनी है। अमीर गरीब में दूरी नहीं नजदीकी दिखनी चाहिए।


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✒ करणसिंह की कलम से

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नोट - यह‌ आलेख किसी की आलोचना अथवा गंदी राजनीति करने के लिए नहीं है। अपितु एक आदर्श राष्ट्र एवं किसी देश भयावह तस्वीर को समझने का‌ प्रयास है। यह आलेख समाज में अशांति अथवा भडकाने के लिए नहीं है। इसलिए इसे ज्यादा सिरियस न ले। अपने विवेक से अच्छा करें।
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