पत्रकारिता व्यवसाय अथवा दायित्व (Journalistic Profession or Duty)

(आज भारतीय मीडिया गोदी मीडिया, व चापलूस मीडिया की उपमा में झकड़ता देखकर पत्रकारिता का फर्ज अदा करने के लिए कलम चलाई है। मैं उन स्वतंत्र 
पत्रकारों एवं सोसियल मीडिया कार्मिकों को धन्यवाद दूंगा जिनकी बदौलत अंधकार के युग में मीडिया जिंदा है। ) 

खबर को खोजकर सर्वाजनिक प्रसारण करने के कार्य को पत्रकारिता कहते हैं। इसके बदले समाज उन्हें सम्मान एवं आदर देता है लेकिन सच्चा पत्रकार कभी भी इसकी चाहत नहीं रखता है। लोकतंत्र में पत्रकारिता एक व्यवसाय बनकर उभरा है। एक वर्ग इसमें अपना केरियर देखता है। वस्तुतः पत्रकारिता शब्द की परिभाषा में पत्रकारिता का पेशा होने का उल्लेख नहीं है। पत्रकारिता जब व्यवसाय रहेगा तब तक खबरें बनाई जाती रहेगी। वस्तुतः खबर बनती बनती नहीं है, घटित होती है। पत्रकार का कार्य उसे प्रकाश में लाना होता है। ताकि जग उस घटना को देख सके, सजग रह सके तथा उसके प्रति संवेदनशील रहे।

भारतीय पत्रकारिता के पुरोधा बताते है कि नारद विश्व का‌ प्रथम पत्रकार था। नारद‌ भारतीय पौराणिक साहित्य का एक पात्र है। जो देवता, मानव एवं दैत्यों के बीच होने वाली घटनाओं को जन जन तक पहुँचता था तथा तब तक दम नहीं लेता था जब तक संबंधित पात्र तक बात नहीं पहुंचे अथवा संबंधित समस्या का समाधान नहीं निकल जाए। पत्रकारिता का कार्य भी सरकार की बातों को जनता तक पहुँचाना एवं जनता की आवाज को सरकार तक पहुँचाने का है। यदि भारत वर्ष के पत्रकार नारद को अपना पितामह मानते है तो उनसे मुझे एक बात जबाब चाहिए क्या पत्रकारिता नारद का पेशा था? मैंने साहित्य कई भी यह नहीं पढ़ा की पत्रकारिता नारद का पेशा था। फिर भी शोधकरके बताया जा सकता है। 

पत्रकारिता की शुरुआत लेखन पत्रकारिता हुई थी। जो आरंभ के क्षणों में दान एवं अखबार की बिक्री की आय से चलता था। धीरे धीरे इसमें विज्ञापन का प्रवेश होता है तथा सरकारी एवं गैर सरकारी विज्ञापन इसकी आय का मुख्य स्रोत बन‌ गया। इसको लेकर आजकल प्रत्येक समाचार पत्र एवं न्यूज़ चैनल में एक विज्ञापन विभाग होता है। जिसका मुख्य कार्य आय का कलेक्शन करना है। जब तक आय कलेक्शन का यह रास्ता सीधा एवं नियमानुसार चलता रहता है, तब तक मीडिया सही कार्य करता है। जब कभी भी इसमें गड़बड़ी होती है तब‌‌ स्वयं‌ मीडिया सवालों के घेरे में आ जाता है। 

यदि मीडिया सेवा अथवा दायित्व ही रहेगा तो पत्रकार खायेगा क्या? निस्संदेह यह प्रश्न जरुरी एवं वाजिब है। पत्रकार के पेट‌ की चिंता समाज की जिम्मेदारी है। भारतीय पत्रकारिता के पितामह नारद के पेट, वस्त्र एवं आवागमन की व्यवस्था समाज द्वारा प्रदान की गई थी। ठीक उसी प्रकार पत्रकार के रोटी, कपड़ा, मकान एवं आवागमन की चिंता समाज की है।  यदि पत्रकारिता पेशा बन जाता है तो समाज इस जिम्मेदारी से मुक्त है। 

पुनः एक बार समाचार पत्र एवं न्यूज़ चैनल की दुनिया में चलते हैं। समाचार पत्र में मुख्य रूप से पांच विभाग होते हैं। प्रथम संपादन विभाग इसमें संपादक एवं पत्रकार आते हैं। पत्रकार खबर बनाता है तथा संपादक उसे प्रकाशित करता है। दूसरा प्रिंट विभाग संपादक द्वारा तैयार किया गया फार्मेट प्रिंट करने का कार्य यह विभाग करता है। इसके बाद तृतीय विभाग सर्कुलर विभाग जगता है। यह समाचार पत्र को पाठक तक पहुँचाने का कार्य करता है। इसके अलावा एक विभाग विज्ञापन का तथा एक प्रबंधन व लेखा विभाग होता है। इस प्रकार अखबार तैयार होता है। न्यूज़ चैनल के क्षेत्र में संपादकीय विभाग, तकनीक प्रसारण विभाग, विज्ञापन विभाग एवं प्रबंधन विभाग होता है। इस प्रकार प्रथम दृष्टि में यह एक शुद्ध व्यवसायिक चक्र लगता है। लेकिन मीडिया का धर्म एवं दायित्व इसे शुद्ध व्यवसायिक श्रेणी में रखने की इजाजत नहीं देता है। 

अब मीडिया की भूमिका के लोक में लेकर चलता हूँ। लोकतंत्र में मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ बताया गया है। यह जनमत के निर्माण एवं प्रभावित करने में भूमिका निभाता है। लोकतंत्र के प्रथम तीन स्तंभ व्यवस्थापिका, कार्यपालिका एवं न्याय पालिका है। यह तीनों मिलकर सरकार है। इसलिए चौथे स्तम्भ की‌‌ अवधारणा काल्पनिक  है। वस्तुतः मीडिया को सरकार का ऐसा अंग बनाना चाहिए था, जो जनता एवं सरकार की‌ आवाज बनने का कार्य करता है। इनका खर्च सरकार संचय निधि से चलने की व्यवस्था होनी चाहिए थी। ऐसा रहता तो पत्रकार सरकार के समक्ष‌ झुकता नहीं तथा‌ पत्रकारिता व्यवसाय बनकर उभरता नहीं। इस व्यवस्था में एक संदेह अवश्य ही जन्म लेता है कि पत्रकारिता समाज के प्रति जवाबदेही नहीं होता। आज का भी पत्रकार भी समाज के प्रति जवाबदेही कहाँ है? आज का सरकारी कर्मचारी भी समाज के प्रति जवाबदेही नहीं दिखता है। इसके लिए सरकारी क्षेत्र में जनता की अभिभावक व्यवस्था लागू करनी चाहिए। जिसमें जनता सरकार एवं‌ सरकारी कर्मचारी की करेक्टर रिपोर्ट भरे, उसी के आधार पर उनके वेतन एवं प्रमोशन इत्यादि सुविधा का निर्धारण होना चाहिए। आजकल फीडबैक लिया जाता है लेकिन फीडबैक देने वाले का कोई दायित्व नहीं होता है। 

पुनः मूल प्रश्न की‌ ओर चलते हैं। पत्रकारिता व्यवसाय अथवा दायित्व। मुझे लगता है कि शत प्रतिशत उत्तर दायित्व के पक्ष में जाएगा लेकिन वास्तविक स्थिति में आज की पत्रकारिता एक व्यवसाय है। जो नहीं होना चाहिए। 
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करण सिंह की कलम से
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