अखिल विश्व मानव समाज की स्थापना कैसे? (How to establish the All World Human Society?)

इस धरा पर मनुष्य सबसे समझदार प्राणी है लेकिन अपनी छंद नासमझी की वजह से पशु से बदतर आचरण कर‌ देता है। धन दौलत, पद प्रतिष्ठा एवं पाक नापाक की कपोल कल्पित धारणा के चलते मनुष्य ने वह काम कर दिए है, जो उसे हिंसक, जंगली, बर्बर पशु से भी निम्न कोटि का बना दिया है। जातिवाद, साम्प्रदायिकता व क्षेत्रवाद की ओट में इंसान इंसानियत को ही भूल गया था एवं भूल रहा है। आशा करता हूँ कि भविष्य में इस प्रकार की गलतियों की पुनरावृत्ति नहीं होगी। 

मनुष्य मनुष्य में भेद पैदा करने वाले तथ्य

१. रंग : - मनुष्य के शरीर का रंग धृणा एवं प्रेम का कारण रहा है। रंग का कारक तत्व पर्यावरणीय कारक तत्व है। इसे मनो मस्तिष्क में पालकर रखना निपट मुढ़ता है। 

२. पद प्रतिष्ठा : - व्यक्ति की योग्यता एवं कार्य करने की क्षमता के आधार पर मनुष्य को पद एवं प्रतिष्ठा मिलती है। यदि यह पद एवं प्रतिष्ठा अंहकार को पालने लग जाए तो वह मानसिक अपनी विशेष समझने लग जाती है तथा जन सामान्य के प्रति उनके आचरण में न्याय दृष्टिगोचर नहीं होता है। कई बार यह रोग बनकर मानव की समरसता के मार्ग में रोड़ा बन जाता है। 

३. जाति व सम्प्रदाय : - मनुष्य को जन्मगत कारणों से जाति एवं सम्प्रदाय रोग के रुप में मिलते है। जिसके चलते उसके सामाजिक ताना बाना उसी तक सीमित रह जाते हैं। इसके चलते उनके मन में जातिवाद का जहर उगलता है तथा उसकी प्रबलता उसे अमानव बना देती है। धार्मिक मान्यता एवं ईश्वर के प्रति उनकी अवधारणा की कमजोर सोच अथवा नासमझी उसे साम्प्रदायिकता की डोर में बांध देती है। इसके चलते मनुष्य पथ भटक कर कुपथ‌ पर चल पड़ता है। सर्वव्यापी ईश्वर एवं धर्म तत्व को संकीर्णता की‌ ओट‌ में देखकर शैतान भी बन जाता है। 

४. क्षेत्रवाद : - भौगोलिक परिवेश से निर्मित यह मानसिकता भी रोग बनकर उभरते देखा गया है। सृष्टि के सभी ग्रह, नक्षत्र, उपग्रह, तारें, निहारिका एवं आकाशगंगाएँ अपने विशिष्ट है। ठीक उसी प्रकार पृथ्वी के सभी जगह विशिष्ट है। यह सबके लिए आदरणीय है। इसको लेकर विवाद को जन्म देने का नाम क्षेत्रवाद है। 

५. नस्ल व लिंग : - गाय, भैस, भेड़ बकरी इत्यादि जानवरों में नस्ल होती है। उसी प्रकार मनुष्य में विभिन्न प्रजातियां हैं। मनुष्य की उत्पत्ति की मूल प्रजातियां निग्रो, आस्ट्रिक, मंगोल एवं आर्य है। इनके शरीर की बनावट अलग-अलग है। ओष्ठ की बनावट के कारण भाषा एवं स्वतंत्र में वैचित्र्य होता है। मनुष्य की इस विशिष्टता को अधिकारों एवं सुविधाओं से वंचित करने का कोई युक्तिपूर्ण कारक नहीं है। ठीक उसी प्रकार स्त्री, पुरुष व तृतीय लिंग के आधार पर भी कोई भेदसृष्ट व्यवस्था होती है तो अयुक्तिकर है। 


अखिल विश्व मानव समाज की स्थापना के कारक

१. उन्नत दर्शन : - जब तक मनुष्य के पास सार्वभौमिक, वैज्ञानिक एवं सर्वांगीण उन्नत दर्शन नहीं होगा तब तक मनुष्य अपने क्षेत्रीय, सेमितीय, रुढ़िवादी, अवांछित विचारों के कारण मिथ्या को प्रश्रय देकर‌ भेद जनित क्रियाकलाप में लिप्त रहेगा। इसलिए मनुष्य का सबसे पहला काम अपने लिए उन्नत दर्शन का निर्माण करना है। मनुष्य का दर्शन खंड पर नहीं टिका होता है, उसे महाविश्व दर्शन होना आवश्यक है। 

२. विश्व प्रेम : - मनुष्य मनुष्य में एकता के लिए‌ विश्व प्रेम का होना आवश्यक तत्व है। विश्व बंधुत्व की भावना ही‌ वह औजार है जो एक अखंड अविभाज्य मानव समाज की स्थापना करता है। 

३. अत्युग्र एकता : - मनुष्य के मन में एकता का भाव अति‌ उग्र होना चाहिए। इसके अभाव में उन्नत दर्शन एवं विश्व प्रेम की साधना अधुरी रह जाती है। कुछ लोग कहते है कि एकता का सृजन अनुशासन से होता है। यह धारणा अच्छी लगती है लेकिन अनुशासन की जननी एकता है। शोषण एवं अयुक्तिकर रास्ते जाती सत्ता को सत्पथ दिखाना अनुशासनहीनता हो‌ सकती है लेकिन एकता विखंडित करने वाला काम नहीं। जिसके मन में एकता का अभाव होता है। वे सुपथ छोड़ कर कुपथ‌ की ओर चले जाते है। 

४. आनन्द पाठशाला : - उन्नत दर्शन, विश्व प्रेम एवं अत्युग्र एकता तत्व होने पर उसको पढ़ाने वाली पाठशाला का होना आवश्यक है। मात्र पाठशाला से ही काम नहीं चलेगा, पाठशाला का आनन्द पाठशाला होना आवश्यक है। जहाँ मनुष्य को उन्नत दर्शन, विश्व प्रेम एवं अत्युग्र एकता नित, निरंतर एवं शास्वत भाव पढ़ाया जाता है। 

५. आनन्द कार्यशाला : - आनन्द पाठशाला में पढ़ा गया पाठ को क्रियांवित करने के लिए मनुष्य के पास एक आनन्द कार्यशाला का होना आवश्यक है। यदि मनुष्य के कार्य स्थल, परिवेश एवं भाव आनन्दमय नहीं हुआ तो सिखा गया पाठ पूर्ण नहीं हो सकता है। 

६. आनन्द परिवार : - आनन्द पाठशाला, आनन्द कार्यशाला के साथ आनन्द परिवार का होना आवश्यक है‌। ‌‌‍इसलिए मनुष्य को आनन्द परिवार बनाने पर जोर देना चाहिए। 

७. आनन्द मार्ग : - अखिल विश्व मानव समाज की संस्थापना आनन्द मार्ग के बिना संभव नहीं है। इसलिए मनुष्य के चलने का पथ आनन्द मार्ग होना चाहिए एवं होना ही होगा। 

अखिल विश्व मानव समाज की संस्थापना कैसे? 

जब मनुष्यों में भेद पैदा करने वाले तत्व नहीं होंगे तथा मानव समाज निर्मित करने वाले तत्व विद्यमान होंगे तब स्वत: ही सर्वव्यापी मानव की रचना हो जाएंगी। इसके मनुष्य को प्रयास करते रहने की आवश्यकता है। जब तक विश्व के सभी मनुष्य इस महान आदर्श को अंगीकार नहीं करे तब तक कोई अवकाश नहीं। यह कार्य प्रणाली ही मनुष्य को एक अखंड अविभाज्य मानव समाज देगा।
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          श्री आनन्द किरण "देव"
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