आनन्द पूर्णिमा पर एक समझ

आनन्द पूर्णिमा के संदर्भ में मेरी समझ

                    श्री आनन्द किरण 'देव'


आनन्द पूर्णिमा आनन्द मार्गियों का बड़ा उत्सव है। यदि आनन्द मार्गी मन‌ कर्म एवं वचन से अपना जीवन गुरु के निर्देशन में चलने के लिए समर्पित कर चुके है तो आनन्द पूर्णिमा का आनन्दोत्सव मनाने चाहिए। आनन्दोत्सव मिलित रुप से मनाने का प्रावधान है। इसलिए आसपास के आनन्द मार्गी एक जगह एकत्रित होकर चर्याचर्य के अनुसार मनाने का विधान है। यदि कोई आवश्यक राजकीय कार्य अथवा रोगी सेवा के निमित्त मिलित कार्यक्रम में नहीं जा सकता है। उसकी वैकल्पिक व्यवस्था का‌ प्रावधान चर्याचर्य में नहीं है। लेकिन धर्म चक्र के संदर्भ में होने वाली चूक की वैकल्पिक व्यवस्था पर अमल कर सकते हैं। 

आनन्द पूर्णिमा न केवल इसलिए ही महत्वपूर्ण है कि इस दिन हमारे गुरुदेव इस धरातल को आलोकित करने के लिए आये थे अपितु इसलिए महत्वपूर्ण है कि यह चर्याचर्य में वर्णित एक आनन्दोत्सव है। वैशाखी पूर्णिमा का महत्व सृष्टि के उषाकाल से ही है। बीच मत मतान्तर के चलते कुछ कम हो गया था। परमपुरुष की अहैतुकी कृपा ने इस दिन के महत्व को फिर से चित्रित किया। आनन्द पूर्णिमा एक वर्ष के परिवर्तन का वैज्ञानिक विधान‌ है। आनन्द मार्ग में आनन्द पूर्णिमा के दिन एक अर्द्धवर्ष का‌ परिवर्तन होता है। भविष्य में जब‌ आनन्द मार्ग अपना पंचाग निर्धारित करेगा, तब यह दिन पंचाग का गुरुत्व दिन होगा। 

हम सब जानते हैं कि आनन्द मार्ग न केवल एक संगठन अथवा जीवन शैली है। आनन्द पूर्णिमा युग की नये रोशनी है, जो युग‌ को आनन्द से विभोर करने के लिए आया है। इसलिए आनन्द मार्ग के महात्म्य को हम सभी को समझना ही होगा। जब तक हमारी समझ दुरस्त नहीं होती तब तक हम युग की रोशनी नहीं बन सकते हैं। जब तक हम युग की रोशनी नहीं बनेंगे तब तक हम दुनिया को आनन्द मार्ग का वास्तविक पैगाम जन जन तक नहीं पहुंचा सकते है। आनन्द मार्ग अमर है एक नारा नहीं है, यह परम पुरुष का संकल्प है। हम लोगों के लिए परम पुरुष की दिव्य आशीष है। उसको संभाल कर रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। 

बाबा के आदेश की पालना यदि हम सच्चे मन से कर ले तो आनन्द मार्ग को जग जान जाएगा। वह है‌- "मेरा नहीं मेरे आदर्श का प्रचार करो", श्री श्री आनन्दमूर्ति जी क्या थे तथा कौन थे। यह परिभाषित करने के दायित्व आनन्द मार्ग का नहीं है। आनन्द मार्ग का दायित्व है। आनन्द मार्ग क्यों आया है तथा आनन्द मार्ग क्या है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी महासंभूति है, यह प्रचार करने की आवश्यकता नहीं है, यह अनुभव करने की आवश्यकता है। जो व्यक्ति के श्री श्री आनन्दमूर्ति जी अन्तर्यामी होने की कथा कहानी सुनाता रहेगा मेरे विचार से वह आनन्द मार्ग के बड़ा कार्य नहीं कर सकता है। इसके स्थान पर जो आनन्द मार्ग के आदर्श को दृढ़ता से पालन करते हुए आनन्द मार्ग के आदर्श जग में स्थापित करने की कोशिश की जाएगी तो सुफल देंगी। 

आनन्द मार्ग के प्रति हमारे कर्तव्य को समझने के बाद पुनः आनन्द पूर्णिमा की ओर चलते हैं। आनन्द पूर्णिमा के धर्म चक्र में प्रवक्ता द्वारा पुछा गया कि आनन्द मार्गियों के सबसे बड़ा उत्सव कौनसा है? एक बच्चे ने तपाक से जबाब दिया दीपावली, उसकी माँ उसे रोकने लगी, मैं संयोग से उस बच्चे के पास वाली पंक्ति में बैठा था, मैंने उसकी माँ को कहा बच्चे की कोई गलती नहीं है, गलती आप व हम सबकी है, हमने इसके बालमन को आनन्द मार्ग क्या है, सही नहीं समझा पाएं। हमने अक्सर समाज को समझाया कि श्री श्री आनन्दमूर्ति जी हमारे की गुरु हैं, जो कि भगवान है तथा आनन्द पूर्णिमा उनका जन्म दिवस है। मेरा प्रश्न संपूर्ण आनन्द मार्ग समाज से है - आनन्द मार्ग चर्याचर्य में आनन्द पूर्णिमा उत्सव का वर्णन करने के क्रम में गुरुदेव का जन्म दिन शब्द क्यों नहीं लिखा गया है। यह कहकर मैं कभी भी इस बात की‌ पुष्टि नहीं कर रहा हूँ कि आनन्द पूर्णिमा बाबा का जन्म दिवस नहीं है तथा इसे जन्मोत्सव के रूप में नहीं मनाना चाहिए। मैं इस बात की ओर ध्यान आकर्षित करने के कोशिश कर रहा हूँ कि परम पुरुष आदि अनादि है। उसे जन्म दिवस की डोर से कैसे तथा कब तक बांधा जा सकता है। आनन्द पूर्णिमा का उत्सव मिलित ईश्वर प्रणिधान, नारायण सेवा, मिलित भोज, मिलित स्नान, तत्व सभा, कार्यकर्ताओं का वार्षिक सम्मेलन तथा अन्य कार्यक्रम के साथ मानाने का प्रावधान है। इसमें सब बातें रेखांकित करने योग्य है। इसलिए एक एक को समझने की कोशिश करते हैं। 

१. मिलित ईश्वर प्रणिधान - आनन्द मार्ग में मिलित ईश्वर प्रणिधान की विधि को धर्म चक्र भी कहा जाता है। साप्ताहिक धर्म चक्र के साथ विशेष अवसर पर धर्म चक्र करने का विधान है। धर्म चक्र में मिलित ईश्वर प्रणिधान के साथ धर्म के गुढ़ रहस्य को समझना होता है। इसलिए धर्म चक्र में स्वाध्याय होता है तथा स्वाध्याय को वरिष्ठ साधक अथवा आचार्य इत्यादि के द्वारा समझाया जाता है। जब धर्म के गुढ़ भाव को नहीं समझेंगे तब तक धर्म चक्र अधूरा है। चूंकि बात मिलित ईश्वर प्रणिधान की चल रही है। तो इसके रहस्य को समझना हमारा दायित्व है। व्यक्तिगत ईश्वर प्रणिधान को मजबूत करने के मिलित ईश्वर प्रणिधान की आवश्यकता है। ईश्वर प्रणिधान शब्द का अर्थ है। ईश्वर का प्रणिधान करना है। स्वयं को ब्रह्म भाव में प्रतिष्ठित करना है। आप्त वाक्य में कहा गया है कि उत्तमोब्रह्मसद्भावना अर्थात सबसे उत्तम साधना ब्रह्म भाव में प्रतिष्ठित होना। ध्यान को मध्यम में रखा गया है। मिलित ईश्वर प्रणिधान में ब्रह्म भाव की तरंग आपस में एक दूसरे से मिलकर कमजोर मन को मजबूत करती तथा मजबूत मन को‌ प्रगाढ़ करती है। 

२. मिलित स्नान - संभवतः यह व्यवस्था मात्र आनन्द पूर्णिमा के लिए है। स्नान शारीरिक स्वस्थता के साथ मन को आनन्दित करती है तथा आध्यात्मिक कर्म पितृ यज्ञ की पूर्ति होती है। इसलिए आनन्द मार्गियों का स्नान साधारण एवं आम नहीं है, यह विशेष है। मिलित स्नान के माध्यम से एक साथ पितृ यज्ञ का संपन्न होगा। पितृयज्ञ पूर्व पुरुष एवं ऋषिदेव के प्रति श्रद्धा ब्रह्ममय बनकर प्रकट करनी होती है। इसमें भी मिलित ईश्वर प्रणिधान के जैसी सिद्धि मिलती है। 

३. मिलित भोज - आनन्द पूर्णिमा के दोनों वेला मिलित भोज का प्रावधान है। वह आनन्द पूर्णिमा के दिन ही होना चाहिए। आनन्द मार्गियों का भोजन भी एक ब्रह्म भाव की साधना है। 

४. कार्यकर्ताओं का वार्षिक सम्मेलन - यह कार्यक्रम आनन्द पूर्णिमा के अवसर पर ही होता है। यह वर्षभर युनिट सैक्ट्री द्वारा अपनी युनिट में एक एक कार्यकर्ता को दी गई जिम्मेदारी का मूल्यांकन एवं परीक्षण का कार्यक्रम है। जिसको जो जिम्मेदारी दी गई है, उसी क्षेत्र में उसका मूल्यांकन एवं परीक्षण होता है। अन्य कार्य सामूहिक खाते में होते हैं। उदाहरण स्वरूप पीयू को व्यक्ति कीर्तन करता है अथवा धर्म सम्मेलन करता है तो उसकी परीक्षण में यह अंक नहीं जुड़ते है। 

५. तत्व सभा - आनन्द मार्ग के आदर्श के प्रचार का सबसे बड़ा दिव्यास्त्र तत्व सभा है। जिसमें आनन्द मार्ग के विभिन्न विषयों को एक अथवा अलग अलग विषय विशेषज्ञ द्वारा रखा जाता है तथा अंत में श्रोताओं से प्रश्न उत्तर लिए जाते हैं। आनन्द मार्ग आदर्श एवं दर्शन का विशेषज्ञ इस उत्तरदायित्व का निवहन करता है। 

६. अन्य कार्यक्रम - यह सामूहिक उत्साह बनाए रखने के लिए किये जाते हैं। 

७. नारायण सेवा - व्यक्ति की समाज का प्रति दायित्व निवहन होता है। 

८. वर्णाध्यान - अपने जीवन के अच्छे बुरे सभी रंग गुरु की शरण में समर्पित करने के व्यक्ति प्रयास को उत्सव, धर्म चक्र एवं विशेष अवसर पर सामूहिक प्रयास होता है। 

आनन्द पूर्णिमा के दिन तथा किसी विशेष उत्सव के दिन उपरोक्त कार्य नहीं होते है तो कार्य सम्पूर्ण सिद्ध नहीं होता है। 

आनन्द पूर्णिमा इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है कि इस दिन कार्यकर्ताओं का वार्षिक सम्मेलन होता है, चूंकि प्रत्येक आनन्द मार्गी एक कार्यकर्ता इसलिए व्यक्तिगत एवं सामूहिक वार्षिक योजना भी तैयार होती है। 

मेरी इतनी सी समझ आनन्द पूर्णिमा के प्रति है। 
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