राष्ट्रपति चुनाव 2022 से उत्पन्न एक प्रश्न


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हम देश को इंसान दे रहे  है अथवा वर्गभेद
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✍️करण सिंह 'शिवतलाव' की कलम से
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भारत में राष्ट्रपति के चुनाव की तैयारियाँ चल रही है। इसको लेकर चल रही सभी अटकलें शून्य होकर श्रीमती द्रोपदी मुर्मू के नाम से एक आदिवासी महिला का चेहरा राजनीति करते हुए सामने आया है। मैं जन सामान्य एवं अवहेलित जन के आगे आने का विरोधी नहीं रहा हूँ। इतिहास में गुदड़ी के लाल कहलाने वाली प्रतिभाओं ने समाज व देश का दिशा निर्देशन तथा संचालन किया है तथा भविष्य में बहुत सारी असमान्य प्रतिभाएँ चमकती दिखेंगी। दर्द इस बात को लेकर जन्म लेता है कि उन्हें इंसान नहीं सवर्ण, पिछड़ा, दलित तथा आदिम कहकर परोसा जा रहा है। मनुष्य का जन्म एक लौकिक विज्ञान में संयोग का फल तथा आध्यात्मिक विज्ञान में अभुक्त कर्मफल का परिणाम है। इसका व्यक्ति के कर्म तथा योग्यता पर प्रभाव पड़ने लग जाए तब समझना चाहिए कि हम एक समाज  को नहीं अखाड़े का निर्माण करने जा रहे है। मैं श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को योग्यता के बल पर राष्ट्रपति पद पहूँचने कथा को पढ़ता तो गर्व के साथ इस कथा को जन-जन तक ले जाने सहयोग करता। लेकिन कहानी का वह बिन्दु सबसे अधिक विचमित करता है कि हम देश के ऐसे शूरवीर है जो देश को प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति देने जा रहे है। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, सर्वपल्ली डाँ राधाकृष्णन डॉ. जाकिर हुसैन, ज्ञानी जेल सिंह, के.आर. नारायणन,  ए. पी.जे. अब्दुल कलाम  व प्रतिभा पाटिल इत्यादि किसी न किसी प्रकार से एक सामान्य पृष्ठभूमि से निकल कर आगे आए थे। अत: यह शूरवीरता नहीं, एक राजनीति की चाल है; जिसके बल पर वोट बैंक को तैयार किया जाता है। चलो हम चलते हैं मूल प्रश्न की ओर हम देश को इंसान देने जा रहे है अथवा वर्गभेद? 

भारत की सत्ता पर आसीन वर्तमान विचारधारा से इंसान देने की आश लगाना, बिन बादल बारिश की आश लगाने जैसा है। यह विचारधारा इंसानों का निर्माण करने के लिए बनी ही नहीं है। इसके निर्माण का उद्देश्य ही भारत को एक हिन्दू देने का रहा है। कदाचित इनका एक भी कदम  हिन्दू देने की ओर बढ़ता नजर नहीं आ रहा है। यद्यपि यह असंभव है तथापि संयोगवश इनको एक हिन्दू मिल भी गया तो वह अपने को अहिन्दू से उलझता व झगड़ता हुआ मिलेगा। इंसान बनाने का मुख्य बाधक तत्व जाति शब्द व तत्व है। जब तक जाति शब्द एवं तत्व को शून्य करने की ओर नहीं बढ़ते हैं, तब तक इंसान का निर्माण नहीं कर सकते है। इसलिए मैं कहता हूँ कि वर्तमान सरकार भारत को एक भी हिन्दू नहीं दे सकती है। मैं यह एक ललकार के रुप में सत्ता एवं संगठन के समक्ष रखता हूँ। है कोई शूरमा तो तुम्हारी इस चाल ढ़ाल से कहने का नहीं वास्तव का एक भी हिन्दू बनाकर दिखाओं। हिन्दू शब्द की परिभाषा भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाला इंसान है। इसलिए जब तक इंसान नहीं बनाया जाता तब तक हिन्दू बनाना कहना एक मूर्खता है। लोकतंत्र की हीरक जयंती के ओर बढ़ रहे है तथा हम देश को एक आदिवासी महिला राष्ट्रपति देने को गर्व महसूस कर रहे है। देश की आज़ादी की लड़ाई के साथ डॉ. भीमराव अम्बेडकर रुपी अंधकार की दुनिया से निकला एक इंसान दिया था। लेकिन राजनीति ने उन्हें कभी एक इंसान नहीं बनने दिया। उन्हें सदैव एक दलित बनाकर खड़ा रखा। यदि डॉ अम्बेडकर को अंधकार से आया एक इंसान के रूप में आगे बढ़ाया होता तो आज भारतवर्ष में अंधकार के प्रतीक  पिछड़ा  दलित एवं आदिम तत्व व शब्द दोनों ही नहीं रहते। जिनको कोस-कोसकर राजनीति के शीर्ष पर आसीन हुए हो आज समाज को उसी ओर ले जा रहे हो। तुम हिन्दू ढूँढ़ने निकले हो मिलगा नये रुप में मात्र  जाति एक ढेला अथवा पत्ता। 

राजनीति में प्रतिद्वंदिता एवं चुनौतियां होती है तथा रहेगी। सत्ता इस प्रतिद्वंदिता तथा चुनौतियों में उलझा रहेगा तब तक एक सुदृढ़ समाज का निर्माण नहीं कर सकते है। मैंने महात्मा गांधी जी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू जी की नियत पर कभी शक नहीं किया है। उनकी अल्प अथवा नासमझी की वजह से राष्ट्र का जो नुकसान हुआ है, उस कार्य आलोचना करनी तथा होनी  ही चाहिए। इसकी वजह से उन पर अथवा उनकी नियत पर देशद्रोह का आरोप लगाना महा मूर्खता को छोड़कर कुछ नहीं है। जब नेहरू जी हाथ में देश आया तब एक मानव समाज निर्माण की चुनौतियों को राजनीति के द्वार तक पहुँचने सभी रास्ते बंद कर दिए होते तो आज राष्ट्र के समक्ष यह चुनौतियाँ दैत्य बनकर खडी नहीं होती। आज जिनकी कथनी में हिन्दू बनने में गर्व महसूस हो रहा है उन्हें उनकी भाषा में इंसान बनने में लज्जा महसूस हो रही है। वस्तुतः आज भी एक जाति का गोबर गणेश बनाया जा रहा है। यह प्रक्रिया कल हो सकता हिन्दू कहने लज्जा का अनुभव करने लगेगी। मैं भारतवर्ष को समझने के उद्देश्य से कई जातिगत तथा आडंबर के मंचों पर जाता रहा हूँ। वहाँ एक इंसान नजर नहीं आता है। जन्मगत जाति की डोर से बंधा जीव ही मिलते है। इसलिए मैं एक ही बात कहता हूँ कि यदि यदि हमें भारत को जानना तथा बूझना है तो इंसान बनाने होंगे, वर्गभेद नहीं। 
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करण सिंह शिवतलाव @ राष्ट्रपति चुनाव 2022
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