भारतीय राजनैतिक पटल पर प्रउत दर्शन को सार्वभौमिक सत्य सिद्ध करने के लिए प्राउटिस्ट ब्लॉक इंडिया, विभिन्न प्रगतिशील समाज संगठन एवं प्राउटिस्ट सर्व समाज नामक राजनैतिक दल क्रियाशील है, इनमें से प्राउटिस्ट ब्लॉक इंडिया सहित कतिपय समाज दल प्रउत प्रणेता भौतिक जीवन काल में क्रियाशील थे, जबकि प्राउटिस्ट सर्व समाज सहित कुछ समाज के राजनैतिक दल बाद में अस्तित्व में आए। इसलिए आज की चर्चा का विषय प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति का राजनैतिक दल के रुप रहना समाज आंदोलन के दृष्टिकोण से सही है अथवा पुनः विचार की आवश्यकता है।
प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति के नाम से दल का पंजीकरण प्रउत प्रणेता के भौतिक शरीर छोड़ने के बाद आदरणीय जयप्रकाश भैया जी अथक प्रयास से हुआ, इस दल का प्रधान कार्यालय एटा उत्तर प्रदेश में है, इसे बिना मान्यता प्राप्त पंजीकृत राजनैतिक दल के रुप में भारतीय चुनाव आयोग द्वारा स्वीकृति मिली थी, आज जिसका नाम प्राउटिस्ट सर्व समाज है, इसमें समिति शब्द विलोपित है। इस प्रकार कुछ समाज भी राजनैतिक दल के रुप में मान्यता प्राप्त है तथा कुछ समाज में यह प्रक्रिया चल रही है। भारतीय राजनैतिक दल सदस्यता कानून के अनुसार एक दल के सदस्य रहते हुए, अन्य दल का सदस्य नहीं बन सकता है, अर्थात एक दल की सदस्यता त्यागनी पड़ती है अथवा स्वत: ही खत्म हो जाती है। इसका अर्थ आमरा बंगाली दल का सदस्य, प्राउटिस्ट सर्व समाज का कानूनन सदस्य नहीं हो सकता है।
प्रउत प्रणेता ने आदरणीय श्री शशिरंजन के माध्यम से प्राउटिस्ट ब्लॉक अॉफ इंडिया, जिसका नामकरण स्वयं प्रउत प्रणेता ने तकनीक खुबि की वजह से प्राउटिस्ट ब्लॉक, इंडिया करवाया था को प्रउत का भारतीय राजनीति को अपना परिचय देने के लिए भेजा था। कहते है प्रउत के राजनीति से परिचय करवाने के क्रम में किसी विशेष कमी की वजह दोस्त से ज्यादा दुश्मन उबरकर आ गए। तत्पश्चात प्रउत प्रणेता ने प्रउत का विश्व समाज से परिचय करवाने की जिम्मेदारी समाज आंदोलन को दी, उसकी सहायता एवं सहयोग करने के लिए पांच फैडरेशन की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। प्राउटिस्ट सर्व समाज अथवा प्राउटिस्ट सर्व समाज समिति को इन समाजों के संयोजन का उत्तरदायित्व देकर एक मंच के रुप में अस्तित्व में लाया गया है। समाज आंदोलन के राजनैतिक स्वरूप का अध्ययन करते समय पाया कि एक समाज इकाई को संपूर्ण रुपेण राजनैतिक भूमिका में रखना, उसके संपूर्ण उद्देश्य के साथ न्याय नहीं तथा राजनीति पूर्णतया पृथक रखना भी उनके उद्देश्यों से दूर रखना है।
अब कुछ प्रश्न सामने रखकर में पाठकों से पुछना चाहूँगा कि क्या पीएसएस राजनैतिक दल की राजनैतिक दल के रुप में पहचान देना आवश्यक है?
1. जब समाज इकाई राजनैतिक दल के रुप में पंजीकृत है अथवा करवाना जरुरी है, तो पीएसएस की राजनैतिक पहचान की आवश्यकता क्या है?
2. बाबा ने अपने भौतिक जीवन काल में पीएसएस को राजनैतिक दल के रुप पहचान देने की आवश्यकता क्यों नहीं समझी?
3. भारतीय राजनैतिक कानून के दायरे में रह कर पीएसएस जो एक राजनैतिक दल है, वह अन्य दल (मान्यता प्राप्त समाज, जो राजनैतिक दल के रुप में पंजीकृत है) का नेतृत्व कैसे कर सकता है?
4. राजनैतिक दलों को मोर्चे वाला सूत्र यदि लगाया जाए तो पीएसएस भी अन्य समाज दलों की भांति मोर्चा का सदस्य हुआ अध्यक्षीय अथवा जनक मंच अथवा संयोजन मंच की भूमिका में कैसे रह सकता है?
5. पीएसएस एक भारतीय राजनैतिक दल है, फिर पीएसएस ग्लोबल प्रतिनिधित्व कैसे कर सकता है?
6. प्रउत का लक्ष्य दल विहीन आर्थिक लोकतंत्र है, तो फिर दलों के दलदल में प्रउत का ध्वज क्या कर रहा है?
7. राजनैतिक दल के रुप में चिन्हित होने पर सरकारी कर्मचारी एवं अराजनीतिक प्रिय लोग अपना परिचय समाज इकाई के सदस्य के रुप में परिचय कैसे दे पाएंगे?
अंत में यक्ष प्रश्न की ओर
*PBI को समाज आंदोलन से कोई मतलब नहीं है, PSS समाज आंदोलन करने की इच्छुक नहीं है और प्रउत कार्यकर्ता भी अपना Comfort छोड़कर सड़क पर उतरने को राजी नहीं हैं, तो समाज आंदोलन होगा कैसे?'*
समाज आंदोलन के परिपेक्ष्य में पीएसएस का राजनैतिक दल के रुप में अस्तित्व साधारण समझ से परे है लेकिन विशेषज्ञ अपनी गहन एवं विशेष समझ से इसे समझा सकते है तो हम नतमस्तक है।
फिर वही यक्ष प्रश्न
आपसे *PBI को समाज आंदोलन से कोई मतलब नहीं है, PSS समाज आंदोलन करने की इच्छुक नहीं है और प्रउत कार्यकर्ता भी अपना Comfort छोड़कर सड़क पर उतरने को राजी नहीं हैं, तो समाज आंदोलन कैसे होगा.................?'*
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