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श्री आनन्द किरण
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आनन्द मार्ग परिवार की सभी संस्थान एवं इकाइयां एक पिरामिड की भांति कार्य करती है। समाज आंदोलन के परिपेक्ष्य में प्रउत की विभिन्न संस्थानों का अध्ययन एक पिरामिडिय स्वरूप को समझने का प्रयास है।
A. *प्राउटिस्ट सेवादल*
प्राउटिस्ट सेवादल, आनन्द मार्ग परिवार की सेवादल संस्थान द्वारा प्रउत के संगठन को उपलब्ध कराई जाने वाली सेवा संस्थान का नाम है। समाज आंदोलन में यद्यपि यह प्रत्यक्ष रुप से अपनी उपस्थित दर्ज नहीं कराता है लेकिन अपने सेवाएं देने के लिए सदैव तत्पर रहता है। आंदोलनकारियों के साथ यह दल कंधे से कंधा मिलाकर तब तक डटा रहता है, जब तक आंदोलनकारी अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर लेता है। इस दल का कार्य क्षेत्र यद्यपि समाज आंदोलन एवं फैडरेशन आंदोलन में सीमा क्षेत्र में है लेकिन यदि सेवाओं की आवश्यकता पड़ती है तो आंदोलन की तट रेखा के उस पार जाकर भी सेवा देने से नहीं चुकना, इसका स्वभाव है, अर्थात इसमें अपना पराया, शुत्र मित्र का कोई भेद विद्यमान नहीं रहता है। यह आंदोलन स्थल पर पहले जाकर उपस्थित होता तथा आंदोलन समाप्ति उपरांत सबसे बाद में आता है। यद्यपि प्रत्येक आंदोलनकारी स्वयंसेवक है तथा कुछ विशेष काम प्राउटिस्ट सेवादल के जिम्मेदारी में है।
B. *प्राउटिस्ट वाहिनी*
वाहिनी शब्द का अर्थ कुछ लोग भूलवश सशस्त्र सैन्य दल से लगा देते है, जो त्रुटि पूर्ण है। वाहिनी शब्द का मूल अर्थ अपनी उद्देश्य साधना के लिए सबकुछ समर्पित रहने वाले दल का नाम है। प्राउटिस्ट वाहिनी वीएसएस द्वारा उपलब्ध कराई गई सहायता का नाम है। समाज आंदोलन को प्रत्यक्ष रुप इसकी आवश्यकता नहीं है लेकिन अपनी सुरक्षा एवं आपात स्थिति निपटने के लिए इसकी आवश्यकता होती है। विश्व भरके आंदोलन से एक बात सामने आई है कि अपने उद्देश्य के खातीर हसते हसते प्राणोत्सर्ग करने वालों को समाज हमेशा आदर की नजर से देखता तथा जो स्वरूप आंदोलन में त्याग का जज्बा दिखा देता है समाज का आदर्श बन जाता है। प्राउटिस्टों को स्वयं की सुरक्षा एवं आंदोलन तीव्र रुप देने के लिए प्राउटिस्ट वाहिनी से क्षत्रियचित्त स्वरूप प्राप्त करना चाहिए, लेकिन एक बात याद रखनी है कि हिंसा से कोई महान उद्देश्य सफल नहीं होता है। इसलिए बाबा ने चर्याचर्य में प्रकृत सैनिक के गुण बताते लिखा की शस्त्र से देश जीता जा सकता है, मन नहीं। प्रकृत सैनिक मन जीतने वाला तपस्वी है। प्राउटिस्ट वाहिनी भी समाज आंदोलन के उपयोगी होगी इसलिए प्रउत प्रणेता के मन में यह स्थान पा सकी तथा उनकी संकल्पना के रुप में हमारे बीच मौजूद है। यह हमारे सामर्थ्य का सवाल है कि हम इसके कितने नजदीक जा पाते अथवा दूर रह पाते है। जो व्यक्ति अपने सुख एवं प्राणों की चिंता में रहता है, वह कभी भी आंदोलन के काम नहीं आ सकता है, इसलिए प्राउटिस्ट वाहिनी से त्याग तपस्या सिखने की आवश्यकता है।
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