प्रउत प्रणेता ने प्रउत को स्थापित करने का सबसे महत्वपूर्ण एवं सफल तरीका समाज आंदोलन बताया है। इस समाज आंदोलन के साथ पंच फैडरेशन का सूत्र भी बाबा द्वारा ही दिया गया है तथा इस समाज आंदोलन के सामाजिक आर्थिक इकाई गठन में पंच शाखा के माध्यम से इसे बैठाया है, यह प्रमाण प्रमाणित करता है कि समाज आंदोलन में पांच फैडरेशन की भूमिका है तथा यह समाज आंदोलन में सहयोग एवं योगदान देते है। अतः समाज आंदोलन करने की आकांक्षा रखने वालों को पांच फैडरेशन का सहयोग लेते हुए एवं करते हुए चलना होगा।
समाज आंदोलन एक रचनात्मक आंदोलन है, जो समाज इकाई क्षेत्र के नागरिकों की जीवन मूल्यों एवं जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन कर मनुष्य अपना जीवन चरितार्थ कर सके, ऐसी सभी प्रकार की व्यवस्था उपलब्ध कराता है। इस कार्य को रचनात्मक ढंग से आगे बढ़ाने के क्रम में व्यवस्था से इसका टकराव होता है तथा होना स्वाभाविक भी है। अतः यहाँ समझने वाली बात यह है कि समाज आंदोलन अपनी रचनात्मक भूमिका के निवहन करते हुए वर्तमान व्यवस्था की सरकारी, गैरी सरकारी एवं स्वतंत्र निकायों के कार्यालय में नहीं घुस पाता है। इसलिए इन संस्थान में कार्यरत कर्मचारी, स्वयंसेवक, नियोक्ता एवं इसके अंग को व्यवस्था से प्रश्न करने तथा उसका उत्तर पाने नैतिक एवं जन्मजात (प्राकृतिक - किसी को होने के नाते जो अधिकार प्राप्त हो) है। यह कार्य प्रउत व समाज की पंच शाखाओं करती है। अन्य शब्दों में कहा जाए तो समाज आंदोलन समग्र व्यवस्था परिवर्तन का आंदोलन है तथा सामाजिक आर्थिक इकाइयों द्वारा किया जाने वाला सीधा व सरल रेखा में चलता हुआ आगे बढ़ता है जबकि समाज में बहुत सी वक्र रेखाएँ भी है, उनको सहीं पथ पर लाने के लिए उस रेखाओं के बिन्दुओं को ठीक करने की आवश्यकता है, यह कार्य उस रेखा के हिस्से ही कर सकते है।
1. उदाहरण पहला - शिक्षा व्यवस्था को ठीक करने के विद्यार्थी, शिक्षक मिलकर अथवा पृथक प्रयास से शिक्षा की नीति निर्माताओं सहीं कार्य करने हेतु लगा सकते है। यहाँ सामाजिक आर्थिक इकाई अपने द्वारा संचालित विद्यालय में तो कुछ ठीक कर सकती है लेकिन नीतिगत मामलों में वह चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती है, इसलिए यहाँ छात्र एवं अध्यापक संगठन का सहयोग आवश्यक है।
2. उदाहरण दूसरा - कृषि को सामाजिक इकाई के सदस्य मिलकर अपने स्तर पर प्रउत के अनुकूल चलाने का सफलतम प्रयास कर सकती है, लेकिन कृषिगत नीतियों के लिए तो किसानों को ही व्यवस्था के विरुद्ध लड़ना होता है।
3. उदाहरण तीसरा - प्रउत की सामाजिक आर्थिक इकाई अपने यहाँ कार्य करने वाले सहायकों व श्रमिकों का शोषण नहीं करती है जबकि व्यवस्था के हाथों पीड़ित एवं सताएं गए मजदूरों को संगठित होकर आदर्श प्रतिमान के साथ हूंकार भरनी होती है।
4. उदाहरण चौथा - युवक रोजगार एवं भविष्य निर्माण को लेकर चलता है, यहाँ सामाजिक आर्थिक इकाई अपने सामर्थ्य एवं प्रयास से युवकों अधिकतम हित उपलब्ध करा सकती है लेकिन व्यवस्था की त्रुटियों को बैनकाब करने के लिए युवाओं को ही कमर कसनी पड़ेगी।
5 उदाहरण पांचवा - युग संधि में सबसे अधिक युग की मार बुद्धिजीवी वर्ग भुगतता है, उस समाज इकाई अपने साथ जोड़ अधिकतम कल्याण उपलब्ध करा सकता है समग्र कल्याण के लिए समाज आंदोलन के साथ एवं इससे प्रेरित होकर स्वयं अपने भाग्य का निर्माण करते हुए चलना होता है।
उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से सिद्ध करने का प्रयास किया गया है कि समाज आंदोलन एवं फैडरेशन आंदोलन दोनों एक दूसरे के पूरक है। इसको सरल शब्दों में समझने के लिए जहाँ समाज आंदोलन से कोई छुट जाता है वह फैडरेशन आंदोलन पुरा करता तथा जहाँ फैडरेशन आंदोलन असहाय महसूस करता है, वहाँ समाज आंदोलन उसे सहयोग देता है। दृष्टांत के तौर पर मारवाड़ी समाज आंदोलन एवं मारवाड़ी पंच शाखा (मारवाड़ी छात्र संघ, मारवाड़ी युथ संघ, मारवाड़ी किसान संघ, मार वाड़ी मजदूर संघ व मारवाड़ी बुद्धिजीवी संघ) एक साथ मिलकर मारवाड़ी समाज क्षेत्र में प्रउत स्थापित करेंगे। फैडरेशन आंदोलन के बिना समाज आंदोलन अधुरा तथा समाज आंदोलन के बिना फैडरेशन आंदोलन। चलो दोनों साथ मिलकर समाज इकाई में सर्वजन हितार्थ, सर्वजन सुखार्थ का आदर्श स्थापित किया करते हैं।
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