श्रीमद्भगवद्गीता के इस अध्याय में 14 श्रीकृष्ण, 33 अर्जुन तथा 8 संजय के उवाच सहित कुल 55 श्लोक है। इसका नामकरण विश्वरूप दर्शन योग किया गया है। इसमें श्रीकृष्ण के विश्व रुप एवं चतुर्भुज के दर्शन अर्जुन द्वारा किया गया है। वास्तव में यह अध्याय सैद्धांतिक नहीं है। इसलिए इसे शब्दों में उरेखित करना प्रभु के विराट रुप के साथ छेड़छाड़ है। इसलिए इस अध्याय में मूल विषय वस्तु से हटकर मार्मिक बातों का उल्लेख करना ही विषय के साथ न्याय है।
अर्जुन के द्वारा श्रीकृष्ण के मुख से परमतत्व का नाम अक्षर ब्रह्म एवं विभूति का वर्णन सुनकर प्रभु का दिव्य रुप देखने की इच्छा हुई। जब साधक की इच्छा होती है तथा प्रभु उसमें ऐसी योग्यता का अनुभव करते है। उस समय साधक क्षमता एवं संस्कार के अनुकुल विराट रुप दिखा सकते है। इस अध्याय में वर्णित विश्वरूप को अर्जुन की नेत्रों ने जो देखा एवं संजय के कानों ने सुना उसका वर्णन है। यहाँ प्रश्न यह है कि विश्व रुप क्या होता तथा परम पुरुष निराकार है तो क्या यह संभव है? विश्व रुप का अर्थ है कि विश्व में जो कुछ है, जो कुछ था तथा जो कुछ होगा वह सब समावेश है। आज कम्प्यूटर, मिसाइल तथा आधुनिक सुविधा है, भूतकाल में बैलगाड़ी, रथ व आदिम जीवन था तथा भविष्य में बहुत कुछ आएगा। वह संपूर्ण परम पुरुष में है। अब निराकार की अवधारणा - निर+ आकार - नि का अर्थ न नहीं होता है, इसका अर्थ निश्चित नहीं , र शब्द से रहना अथवा रखा शब्द लिया गया अर्थात परम पुरुष का आकार निश्चित नहीं रखा जा सकता है। यह साधक, युग एवं समाज के दृष्टि सामर्थ्य पर निर्भर करता है। आज के युग का अपने आराध्य को आयुधों में मिसाइल एवं परमाणु बम धारणा किया देखना चाहता है तो उसके संस्कारों के क्षय के लिए वैसा रुप कृपालु परमेश्वर बना सकते है अथवा मनुष्य का समाज युग अनुसार अपने आराध्य दिखा सकता है। इसमें आध्यात्मिक अनुशासन का उल्लंघन नहीं है। यदि कोई साधक प्रभु को शून्य के रुप में देखना चाहे तो वह भी अनुशासन की परिधि में लेकिन उनके इस कार्य से समाज की नीति व एकता में छेद नहीं हो । अब चतुर्भुज रुप पर अध्ययन करते है। इसका अर्थ चारभुजा है। भुजाओं को हाथ से लिया गया है। अर्थात चार हाथों वाले अर्थात साधारण मनुष्य से काम करने से सामर्थ्य अतिविशिष्ट है अथवा सार्वाधिक अधिक है।
श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण का विश्व रुप के दर्शन करने के लिए श्रीमद्भगवद्गीता का अध्ययन करना चाहिए एवं मनन करना चाहिए।
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