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श्री आनन्द किरण देव
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महाविश्व श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की परिकल्पना का नाम है। विश्व में आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, कला, साहित्य एवं मनोरंजनात्मक दृष्टि से एक सी भावधारा का संचार हो, यह स्थित महाविश्व संज्ञान प्राप्त करती है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने इस संकल्प पत्र पर हस्ताक्षर कर विश्व को दे दिया है तथा विश्व को आस्वासन दिया है कि इस स्थिति में सर्व भवंतु सुखिनः का समीकरण समाज में स्थापित हो जाएगा।
महाविश्व की अभिकल्पना में राजनीति की सीमाएं नहीं समाती तथा यह सीमाएं रोड़ा भी नहीं बनती है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी की परिकल्पना युग धर्म के अनुकूल है। आज का युग वैश्विक दृष्टिकोण की ओर गतिमान की ओर अग्रसर है। प्रत्येक नागरिक, संगठन एवं सोच अंततोगत्वा वैश्विक अभिधारणा में समाने को आतुर है, मात्र उसका चौला व्यक्ति अपने अपने ढंग से गढ़ता एवं मोड़ता है।
वैश्विक दृष्टिकोण एवं महाविश्व एक शब्द नहीं है। महाविश्व में समाज एक की भावधारा में चलता है जबकि वैश्विक दृष्टिकोण में यह शर्त आवश्यक नहीं है। महाविश्व में समाज भेद रहित अवस्था में रहता है जबकि वैश्विक दृष्टिकोण में भेद रहना अथवा नहीं रहना आवश्यक नहीं है। यद्यपि वैश्विक दृष्टिकोण काफी हद तक मनुष्य को महाविश्व के नजदीक ले जाता है लेकिन महाविश्व का संपूर्ण साक्षात्कार तो विश्व परिवार में ही होते है।
परिवार समाज की इकाई है तथा परिवारों का वृहत रुप समाज को बताया जाता है लेकिन समाज परिवार सी जिम्मेदारी का निवहन करता यदाकदा ही दिखाई देता है। महाविश्व के दर्शन करने के लिए विश्व परिवार को परिवार सी जिम्मेदारी धारण करनी होती है। यह विश्व परिवार जिसे मानव समाज कहा जाता है। उसे अपने प्रत्येक नागरिक को बंधुत्व के भाव का आभास करना होता है। अखिल विश्व मानव समाज अपने कार्य एवं दायित्व का सफलतापूर्वक निवहन के लिए के लिए देश, प्रदेश, भुक्ति, जनपद , पंचायत एवं ग्राम इकाइयों में प्रशासनिक व्यवस्था को बांटना प्रतिबंधित नहीं है। लेकिन राजनैतिक सीमा बंधी से उत्पन्न रोग प्रवेश नहीं करते है।
महाविश्व की परिकल्पना का एक अंश विश्व सरकार भी है। विश्व सरकार को की ही महाविश्व समझना अथवा समझाना एक भूल है। विश्व सरकार महाविश्व की परिकल्पना का अति क्षुद्र अंश है।
महाविश्व युग की आवश्यकता एवं मानवता के कल्याण की व्यवस्था है। अतीत में श्रीकृष्ण ने महाभारत की परिकल्पना की थी, उसे पांडवों की मदद से यथार्थ में परिवर्तित किया था। हमने महाभारत को मात्र कौरवों एवं पांडवों के मध्य लड़ा गया युद्ध ही मानकर महाभारत के संकल्प पत्र में महाविश्व की छवि को नहीं देखा। वास्तव में महाभारत की योजना महाविश्व के लिए बननी थी, जिसे युग की मजबूरियों ने आगे नहीं बढ़ने दिया, लेकिन यदाकदा धर्म प्रचारकों एवं व्यापारिक कार्यशैली ने महाविश्व की आवश्यकता का अनुभव कराती रही है। सच यह है कि महाविश्व का लक्ष्य तो मानव सभ्यता के उषाकाल में ही लिख दिया था, इसलिए तो वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा विकसित हुई थी। महाविश्व के संकल्प पत्र को अतिशीघ्र पूर्ण करना आज के युग का मांगपत्र भी है।
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श्री आनन्द किरण देव
Lord Krishna completed Mahabharata. Because those years, only Bharat ( India) was existing, not world...... Now, World is existing, therefore " Mahavishva " is the need of hour.
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