नमस्कार विषय है
*प्रउत जगत की सर्वश्रेष्ठ अर्थव्यवस्था है।*
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युग पुरुष श्री प्रभात रंजन सरकार ने सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ प्रगतिशील उपयोग तत्व को प्रचारित किया है, इसके साथ ही प्रउत के प्रचारक दावा करते है कि प्रउत अर्थव्यवस्था जगत में सर्वश्रेष्ठ अर्थव्यवस्था है, यह भी कहा जाता है कि यह व्यवस्था ही वसुंधरा पर खुशहाली की गंगा बहाएंगी। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम अध्ययन करें कि प्रउत अर्थव्यवस्था में ऐसा क्या खास है, जो मनुष्य को सामाजिक आर्थिक जगत के दु:ख दर्द का सटीक निदान प्रस्तुत करती है।
प्रउत अर्थव्यवस्था पर अध्ययन करने से पूर्व दुनिया में प्रचलित विभिन्न अर्थव्यवस्था के बारे में अध्ययन करते है। इस श्रेणी में प्रथम अर्थव्यवस्था है - पूंजीवादी अर्थव्यवस्था। इसका जन्म सामंतवाद व चर्च की प्रभुसत्ता के प्रतिउत्तर में युरोप में हुआ। इसने विश्व को अंधकार युग से उजियारा में लाने में सहयोग किया, लेकिन उसके उजियारे की चकाचौंध भौतिक जगत में कतिपय घरानों को चमकाने के क्रम में मानव मानव में एक आर्थिक विषमता की दरार खड़ी कर दी है। कुछेक को यह दरार स्पष्ट दिखाई देती है, तो कुछेक को धुंधली।आधुनिकता की चकाचौंध में अंधे हुए तथाकथित संपन्न लोगों को यह दिखाई ही नहीं देती है। मानसिक जगत में पूंजीवाद के कारण कुछ खुलापन एवं स्वतंत्र सोच आई है लेकिन यह सोच स्वच्छंता की ओठ में इंसान के स्थान पर हैवान का निर्माण कर दिया है। अपरिपक्व हैवान जल्दीबाजी में भौतिक जगत में कुछ अवैधानिक कर देते है, जिसकी वजह से कानून की पकड़ में आ जाते है। इनके कानून की पकड़ में आने के बावजूद भी कुछ ऐसा हो जाता है कि गुनाह कर भी न्यायपालिका को ठेंगा दिखा देते है। परिपक्व एवं मंझे हुए शातिर कानून सहमत ठगने एवं लूटने की राह ढुढ़ लेते है, जिसकी वजह से यह कानून की पकड़ से बाहर बेदाग घूमते है। पूंजीवादी अर्थव्यवस्था ने आध्यात्मिक जगत में व्यापारियों की एक टीम तैयार कर दी है, जो धर्म का चौला ओढ़कर अपनी दुकानदारी चलाते है। अत: सप्रमाण कह सकते है कि पूंजीवाद मानवता के आंसू पोछने में असफल सिद्ध हुआ है।
पूंजीवाद के भौतिक जगत के दुष्परिणाम के कारण कार्ल माक्स लेकर आए साम्यवाद को। साम्यवाद स्वप्नों का सुन्दर महल है, जिसका कंगूरा देखते ही विचारक वाहवाह कह देता है लेकिन इसकी नींव उतनी ही खोखली है जितना कंगूरा सुंदर दिखाई देता है। साम्यवाद का जन्म पूंजीवाद की भीषण स्वरूप तथा रिलिजन की दूषित सोच के परिणाम स्वरूप हुआ था, इसलिए इसकी सोच अमीरों एवं धर्म के प्रति नकारात्मक हो गई। इसकी धार को थोड़ा धीमा करने के लिए तथाकथित समाजवाद नामक साम्यवाद के नये स्वरूप का जन्म हुआ लेकिन समाजवाद ने भी मानवता के आंसू नहीं पोछे।
भारतवर्ष की धरा पर राष्ट्रवाद, स्वदेशी एवं एकात्मक मानववाद के नाम पर अलग किस्म का पूंजीवाद पुनः आने को आतुर है। यह भावजड़ता की ओठ में मानव समाज का लहू चूसने के अपना छदम रुप दिखा रहा है। यह जैसे ही प्रबल होगा पूंजीवाद के मूल स्वरूप में आ जाता है।
सामंतवाद एवं राजतंत्र की अर्थव्यवस्था ने भी मानवता को लहू के आंसू रूलाया था, इसलिए सभी ने इसकी निंदा की है लेकिन पूंजीवाद, साम्यवाद समाजवाद व एकात्मक मानववाद भी नये किस्म का सामंतवाद ही तैयार करते है, इसके अतिरिक्त इन सभी अर्थव्यवस्था में कुछ नहीं है। जिन तिलों में तेल नहीं उनसे आश लगाना ही व्यर्थ है। इसलिए प्रगतिशील उपयोग तत्व की दृष्टिपात कर मानवता की सेवा करते है।
*प्रगतिशील उपयोग तत्व अर्थात प्रउत दर्शन*
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प्रउत दर्शन में समाज के निर्माण, गति एवं विकास के विज्ञान के दर्शन होते है। समाज शब्द का अर्थ (रुढ़, भावगत एवं शब्दार्थ ) में एक अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज में निहित है, इसे जाति, सम्प्रदाय व खंड़ों में देखना अज्ञानता की निशानी है। प्रउत अर्थव्यवस्था इसलिए महान है कि यह अखिल विश्व मानव समाज के बंधुत्व की अवधारणा को लेकर आई है। इसमें देश, जाति व सम्प्रदाय की सीमा नहीं है तथाकथित भाषा एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए सामाजिक आर्थिक इकाई का निर्माण कर संपूर्ण विश्व के समग्र विकास करने की योजना का निर्माण किया गया है, जो अन्ततोगत्वा अखिल विश्व स्वरूप को प्राप्त करती है।
प्रउत व्यवस्था विश्व की सर्वश्रेष्ठ अर्थव्यवस्था इसलिए है कि यह सर्वजन हितार्थ एवं सर्वजन सुखार्थ काम करने वाली प्रगतिशील एवं उपयोगी अर्थव्यवस्था है। यह विचित्रता को प्रकृति का धर्म सिद्ध कर व्यक्ति-व्यक्ति परिवार-परिवार के उद्धार की व्यवस्था देती है। इसके साथ अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा व शिक्षा की ग्रारंटी उपलब्ध कराकर अपने समाज धर्म का निवहन करती है। एक संगठन को तब तक समाज नहीं कहा जा सकता जब तक वह अपने नागरिकों की न्यूनतम आवश्यक को सुनिश्चित नहीं करती है। सार्वजनिक सत्ता द्वारा व्यक्ति को न्यूनतम आवश्यक पूर्ण करने की व्यवस्था उपलब्ध कराना एक युगांतरकारी एवं प्रगतिशील कदम है। प्रगति की राह चलयमान मानव समाज में व्यक्ति की गरिमा एवं योग्यता का आदर करने के लिए प्रउत गुणीजन को अतिरिक्त देने की सिफारिश करता है। यह सिफारिश अर्थव्यवस्था व्यक्ति की कार्य क्षमता में विकास करती है तथा सभी उच्च कार्य क्षमता के विकास का प्रयत्न करते है। जिससे समाज के मानदंड में वृद्धि की संभावनाएं दिखाई देती है। इसलिए प्रउत अपने एकादश सूत्र में व्यक्ति एवं समाज जीवन स्तर के मापक मानदंड में वृद्धि को समाज का जीवन लक्षण प्रमाणित करता है। साम्यवाद इसी कमी वजह से मृत्यु का निवाला बन गया जबकि पूंजीवाद में यह व्यवस्था स्वत: ही निर्मित होने कारण अपने रुग्ण शरीर को ढोहता चल रहा है। चूंकि प्रउत व्यवस्था न्यूनतम आवश्यक की ग्रारंटी प्रदान करता है, इसलिए यह व्यवस्था किसी भी स्थित में रुग्णता को प्राप्त नहीं हो सकती है इसलिए प्रउत व्यवस्था को अमर अर्थव्यवस्था भी कह सकते है।
प्रउत अर्थव्यवस्था चिरंजीवी अर्थव्यवस्था इसलिए है कि यह अर्थव्यवस्था व्यक्ति परिवार की न्यूनतम आय सीमा तय करने के साथ अधिकतम आय पर भी लगाम लगाता है। इसके अभाव में योग्यता कुपथ गामी हो जाती है तथा समाज को अपने हाथ की कठपुतली बनाने के सारे यत्न करती है। चूंकि प्रउत अर्थव्यवस्था एक प्रगतिशील उपयोग तत्व है इसलिए उनके नागरिकों अधिकतम सुविधा मुहैया कराने के लिए स्थूल, सूक्ष्म एवं कारण जगत चरमोत्कर्ष अर्थात चरम उपयोग की व्यवस्था देती है तथा इस उत्कर्ष को विवेकपूर्ण वितरण के द्वारा समाज में न्याय व्यवस्था स्थापित करने व्यवस्था प्रदान करती है। प्रउत व्यवस्था एक कल्याण मूलक अर्थव्यवस्था है इसलिए यह व्यष्टि एवं समष्टि की शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक शक्ति के चरम उपयोग एवं इसमें संतुलन बनाये रखने की व्यवस्था प्रदान करती है। प्रउत दर्शन के प्रगतिशील होने का प्रमाण यह कि यह देश, काल पात्र के अनुसार परिवर्तन होने व्यवस्था लेकर चल रही है।
प्रउत दर्शन वैज्ञानिक एवं आदर्शात्मक इसलिए है कि इसमें समाज चक्र का वर्णन है। प्रउत का समाज चक्र व्यक्ति में भेद करने वाली जाति व्यवस्था से कोई संबंध नहीं रखते हुए व्यक्ति क्षमता का वर्गीकरण करने वाली वर्ण व्यवस्था मूलक अवधारणा स्वीकार करता है। प्रउत अर्थव्यवस्था एक जीवित अर्थव्यवस्था है, क्योंकि समाज चक्र के प्राण केन्द्र में सदविप्र निवास करता है। जो स्वभाविक परिवर्तन, क्रांति एवं विप्लव के माध्यम से चक्र की गति नियंत्रित, नियमित एवं निर्देशित करते है। विक्रांति एवं प्रति विप्लव आपात स्थिति में समाज चक्र को संभाल कर रखता है। परिक्रांति ने समाज चक्र को अमरत्व प्रदान किया है। अत: प्रमाणित होता है कि प्रउत अर्थव्यवस्था ही दुनिया की एक मात्र अर्थव्यवस्था है जो सर्वश्रेष्ठता का दावा करती है।
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नमस्कार
श्री आनन्द किरण "देव"
नोट - मिश्रित अर्थव्यवस्था एक छल है, जो पढ़ाया जाता है, यह स्वतंत्र अर्थव्यवस्था नहीं है
Very good article
जवाब देंहटाएंअर्थनैतिक असुंतलन सामयिक त्रादसी है। वुद्धिजीवी विचारशून्यता से लाचार हैं। शोणित वर्ग विप्लव लाए तो निस्तारण संभव है, यह कोरोना और प्राकृतिक प्रकोप विप्लव आने का संकेत है।
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