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श्री आनन्द किरण "देव" की कलम से
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अस्पृश्यता एवं जातिभेद एक सामाजिक समस्या है, जिसका निदान एक, अखंड व अविभाज्य मानव समाज में निहित है, इसको लेकर विप्लवी विवाह नामक एक आंदोलन प्रगति पर है।
समाज में व्याप्त इस विषमता ने अर्थव्यवस्था के समीकरण को भी असंतुलित कर दिया है है, इसलिए भारतीय संविधान में आर्थिक विषमता के इस समीकरण को संतुलित करने के लिए जातिगत आरक्षण व्यवस्था को अपनाया गया था। इस व्यवस्था के कारण कुछ अर्थव्यवस्था के सूत्र इधर उधर हुए है लेकिन आर्थिक विषमता से निजात नहीं मिली है। इसलिए सर्वजन हितार्थ सर्वजन सुखार्थ समर्पित अर्थव्यवस्था से समय मांग करता है कि आरक्षण पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करें।
भारतीय संविधान का सामाजिक एवं आर्थिक विषमता को दूर करने हेतु चयन किये गए आयुष जातिगत आरक्षण व्यवस्था ने अपने उद्देश्य को तो पुरा नहीं किया है अपितु समाज में वर्ग संघर्ष की आधारभूमि का निर्माण अवश्य किया है। इस व्यवस्था के दुष्परिणाम के रुप में भारतवर्ष में जाति आधारित निर्माण होने वाली सेनाएँ समाज में विध्वंसता के बीज का रोपण कर रही है। भारतीय राजनीति की ताकत नहीं है की वर्तमान आरक्षण व्यवस्था पर तिल मात्र भी हस्तक्षेप करें। इस हिसाब से भी प्रउत को आरक्षण पर अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना चाहिए।
प्रउत प्रणेता श्री प्रभात रंजन सरकार ने अपने आलोच्य विषय पिछड़े वर्ग का उत्थान में इस दिशा में हमारा ध्यान आकृष्ट किया है।
मूल दृष्टिकोण - *प्रउत आदर्श के अनुसार निश्चय ही आरक्षण व्यवस्था उचित नहीं है* - प्रउत व्यवस्था में शतप्रतिशत रोजगार एवं न्यूनतम आवश्यकता की सुनिश्चितता के माध्यम सभी की प्रगति सुनिश्चित होगी, अत: नौकरी में आरक्षण की आवश्यकता ही नहीं रहेगी तथा भेद रहित समाज अभिकल्पना करने के कारण प्रउत युग में अस्पृश्यता शब्द का अस्तित्व ही नहीं रहेगा अर्थात आरक्षण का प्रावधान नहीं होगी।
आपेक्षिक दृष्टिकोण - *प्रउत व्यवस्था सुदृढ़ स्थापित होने तक* - वर्तमान सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों में साधारण लोगों की दुर्दशा मिटाने के उद्देश्य से तात्कालिक रुप से निम्नलिखित अग्राधिकारी व्यवस्था लागू की जा सकती है -
1. जन्म सूत्र चाहे जो भी, पिछड़े, गरीब परिवार के सदस्य को नौकरी और शिक्षा के क्षेत्र में पहले प्राथमिकता मिलेगी।
2. गरीब है, लेकिन पिछड़ा नहीं है, ऐसे परिवार के सदस्य को द्वितीय प्राथमिकता मिलेगी।
3. गरीब नही किन्तु पिछड़े परिवार के सदस्य की तृतीय अग्राधिकार मिलेगा।
4. अन्त में जो गरीब भी नहीं है, पिछड़ा भी नहीं है ऐसे परिवार के सदस्य को अवसर मिलेगा।
यहाँ पिछड़ा परिवार का तात्पर्य होगा - जिस परिवार के सदस्य को अतीत में कोई कोई नौकरी या शिक्षा का अवसर नहीं मिला है *जब तक देश दरिद्रता से मुक्त न हो अर्थात जब तक सभी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति सुनिश्चित न हो, तब तक ये परिवार इन सुविधाओं को प्राप्त करते रहेंगे।*
"*इसी तरह कौन किस जाति में पैदा हुआ है - यह न देखकर उस परिवार की आर्थिक अवस्था को देखकर शिक्षा और नौकरी में इस अग्राधिकार सूत्र को मानकर चलना होगा।*" - श्री प्रभात रंजन सरकार
*"यदि इस प्रकार की आरक्षण व्यवस्था लागू की जाएगी तो भारत सहित दुनिया के सभी देशों में उन्नत अनुन्नत लोगों के बीच गोष्ठी संघर्ष की सारी संभावनाएं दूर किया जा सकेगा। साथ ही सामाजिक न्याय-विचार एवं आर्थिक स्वाधीनता प्राप्त करने के अवसर भी आएगा। जात-पात, धर्ममत, भाषा, नारी-पुरुष विभेद के बिना ही सरकार सबके लिए भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, चिकित्सा इत्यादि की प्राप्ति के अनुकूल परिवेश की सृष्टि कर सकेगी। इस पद्धति से पिछड़ों के मन से सारी हीनमन्यता दूर हो जाएगी एवं सभी को अपने सामर्थ्य के अनुसार अपनी जीवन यात्रा का निर्वाह करने लायक आय करने का अवसर पा जायेंगे।" - श्री प्रभात रंजन सरकार*
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स्रोत - जून 1979, कलिकाता - पिछड़े वर्ग का उत्थान ( प्रउत अर्थव्यवस्था पृष्ठ 227 से 229)
नोट - इस आलेख में आरक्षण की संपूर्ण व्यवस्था में श्री प्रभात रंजन सरकार के शब्द यथावत रखें गए हैं
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