विश्व सरकार

स्वामी विवेकानंद जी ने रिलिजन, मजहब एवं साम्प्रदायिक दृष्टिकोण पर प्रहार करते हुए कहाँ था कि अपने-अपने कुओं में बैठकर सागर की गहराई को नहीं नाप सकते है। इससे सिद्ध होता है कि सागर की क्षमताओं नापने के सागर सी सोच बनाने होगी तथा सागर को अपना घर बनाना होगा। इस उक्ति को राजनैतिक पैमाने पर स्थापित करने पर ज्ञात होता है कि देश, विदेश की सीमाओं में बैठकर हमने द्वेष, अविश्वास एवं संदेह को जन्म दिया है। विश्व बंधुत्व को मन, कर्म वचन से स्थापित करने के लिए राष्ट्रों की सीमाओं को मिटाकर  विश्व सरकार की रचना करनी होगी। 

विश्व सरकार एक वसुधैव कुटुबं की अवधारणा को अमलीजामा पहनाने की योजना है। जब तक विश्व राष्ट्र की सीमाओं से परिचित किया जाएगा तब विश्व परिवार की रचना की बात मुह से कही जाएगी परन्तु दिल में एक दूसरे से बड़ा बनने की होड़ लगती रहेगी। एक दूसरे को विश्व शांति का पाठ पढ़ाएंगे लेकिन स्वयं उस पाठ प्रथम अध्याय को भी कभी नहीं पढ़ेगा। 

विश्व सरकार आज के युग की मांग है, युग ने विश्व को एक डोर में बांध लिया है लेकिन राजनीति अपने स्वार्थ में कुछ आड़ी तिरछी रेखा खिंचकर इस समीकरण को संतुलित नहीं होने देती है। आदर्श समाज एवं उन्नत मानसिकता की यही पहचान है कि अतिशीघ्र राजनीति की भेद जनित वक्र रेखाओं को मिटाकर नव सर्जन एक सरल रेखा विश्व सरकार को खिंच देनी होगी। 

विश्व सरकार वर्तमान कोरोना संकट से निपटने के लिए कारगर उपाय है। वैश्विक महामारी देश की सीमाएं नहीं जानती है, इससे निपटने के उपाय देश प्रदेश की सीमाओं से क्यों लिखी जाती है? यदि एक देश ने अपने प्रयास से कुछ हद तक इस संकट पर सिद्ध हस्त हासिल कर लेगा, तो क्या वह यह सुनिश्चित कर पाएगा कि वह पूर्णतया सुरक्षित है। इसकी एक चिनगारी उस देश के सभी सुरक्षा कवच को भेदकर उसके सभी प्रयास को स्वाहा कर देगा। अतः अविलंब विश्व सरकार की रचना पर कार्य करना चाहिए। 

विश्व सरकार के चलन की नीति श्री प्रभात रंजन सरकार के द्वारा बनाई गई है, जिसके अनुसार राजनैतिक शक्ति का केन्द्रीकरण एवं आर्थिक शक्ति का विकेन्द्रीकरण करने से विश्व के सभी कोनों में समृद्धि, खुशहाली तथा प्रगति का अध्याय लिखा जाएगा तथा यही सूत्र सर्वजन हित व सुख में होगा जिससे विश्व सरकार में स्थायित्व प्रदान करेंगा। 
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करण सिंह शिवतलाव@ विश्व सरकार
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