रामायण में ब्रह्म विज्ञान
विश्व का सबसे अधिक लोकप्रिय ग्रंथ रामायण है, विश्व की विभिन्न भाषाओं में रामायण को पढ़ा समझा एवं सुना जाता है। रामायण का प्रथम स्वरुप रामकथा के रुप आया - जिसे विभिन्न ऋषि गुरुकूल द्वारा एक सामाजिक नाट्य के रूप में दिखाया गया, जिसमें वशिष्ठ गुरुकुल का रामराज्य प्रथम नाट्य था, तत्पश्चात विश्वामित्र गुरुकुल से सीता स्वयंवर, भारद्वाज गुरुकुल से वन में राम तथा अगस्त्य गुरुकुल से रावण वध सामाजिक नाट्य के रुप में मंथन किये गए। महर्षि वाल्मीकि ने प्रथम बार राम शब्द अविष्कार किया था। कालांतर में बाल्मीकि गुरुकुल की ओर से रामायण नामक महाकाव्य की रचना की गई। रामायण की सबसे अधिक लोकप्रियता संत तुलसीदास के ग्रंथ रामचरितमानस के माध्यम से आई। रामलीला के मंथन ने रामायण को जन, गण मन में बैठा दिया।
(1.) श्रीराम ऐतिहासिक पुरुष थे अथवा नहीं – इतिहासकारों ने राम को ऐतिहासिक पुरुष दर्जा नहीं दिया है, इसलिए एक विवाद है कि राम वास्तविक है अथवा काल्पनिक? -
राम नाम का उदभव महर्षि बाल्मीकि की जिह्वा से हुआ, राम के नाम को राम से बड़ा माना गया है तथा रामायण को बाल्मीकि की भविष्य दृष्टि के रुप में चित्रित किया गया है। अतः प्रथम पक्ष इसे काल्पनिक बताता है जबकि राम जन मन के भगवान है तथा भक्त के मन में उभरने वाली भगवान छवि ऐतिहासिक हो अथवा नहीं पर वह छवि सदैव वास्तविक रुप में ही प्रकट होती है। इसलिए इस विवाद से अधिक मूल्यवान है – रामायण की शिक्षाएँ।
(2.) रामायण में शिक्षा – राम कथाओं का उदभव सामाजिक शिक्षा के लिए हुआ था। इसलिए इसकी प्रत्येक घटना, पात्र एवं दृष्टांत शिक्षा से भरे पड़े है। जिसमें श्रीराम को एक मर्यादा पुरुषोत्तम के रुप दिखाया गया है। उसके इर्दगिर्द सभी पात्र एक मर्यादा लेकर दिखाई देते है, खलनायक रावण को भी ज्ञानी एवं बिना ईच्छा के स्त्री की शीलभंग नहीं करने वाला बताया गया है। इससे सिद्ध होता है कि विश्व में शिक्षा प्राप्त करने सबसे प्रमाणिक पुस्तक रामायण है।
(3.) रामायण में विज्ञान - रामायण ज्ञान विज्ञान का भंडार है। जहाँ मनुष्य भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक खुशहाली का ज्ञान प्राप्त होता है। भौतिक दृष्टि से रामराज्य समाज की एक आदर्श अवस्था का चिंतन है, मानसिक दृष्टि श्रीराम एक संयम, संतुलन व दृढ़ता के प्रतीक है तथा आध्यात्मिक दृष्टि से राम योगियों के हृदय में रमने वाले भगवान है
(4.) रामायण में ब्रह्म विज्ञान – रामायण छिपा आत्मज्ञान समझने संपूर्ण रामायण की तीन यात्रा करते है-
(1.) दशानन से दशरथ – रामायण का प्रथम मिथक दशानन से दशरथ है। दशानन दस मुख की छवि को बताता है। एक ऐसा व्यक्ति जो किसी के शासन में नहीं रहता हो तथा कोई उसे शासन की बागडोर में नहीं बांध सकता है। इसलिए विशेष शक्ति संपन्न दशरथ की आवश्यकता है। दशानन दसों दिशाओं में विचरण करने वाले मन का प्रतीक है, जो मनुष्य को पतन की चरम अवस्था में ले जाता है। इसके विपरीत दशरथ दसों दिशाओं में विचरण करने वाले मन को आत्म एवं जग कल्याण के लिए संगठित करने वाली मन की अवस्था है। यह अवस्था खलनायक मन को मार तो नहीं सकती लेकिन दशानन को अपनी सीमाओं के भीतर नहीं आने देता है। इसलिए दिखाया गया है कि दशानन दशरथ राज सीमा से दूर निर्जन प्रदेश के वासियों को अपना भक्षण बनाता है अर्थात संकल्प शक्ति से रहित जीने वाले सज्जन पुरुुषों को दुर्जन पल पल दुखी कर कुुुपथ पर चलने को मजबूर करता है अथवा मृत्यु के मुख में धकेलता है। अत: राम व रावण को समझने से पूर्व दशानन व दशरथ को समझना आवश्यक था।
रामायण की एक उक्ति है –
राम राम सबहि जपें, दशरथ भये न कोई।
जो मन दशरथ बन जाहि, ता घटमा राम स्वत: प्रकट भयी ।
(2.) अयोध्या से लंका तक - दशरथ अयोध्या के तथा दशानन लंका के राजा है। अयोध्या अर्थात अ + योद्य, जिसे युद्ध द्वारा जीता नहीं जा सकता है। अवध जिसका वध नहीं किया जा सकता है शास्वत सनातन अवस्था सहस्त्राचक्र । साधना विज्ञान का चरम एवं परम स्थल, जहाँ साधक साधना समर द्वारा नहीं तारकंब्रह्म की कृपा से पहुचता है। लंका चरम जड़ता की अवस्था है। इस अवस्था को अंधकार की उपमा दी गई है अर्थात यहाँ का नरेश रात सदृश्य वर्ण का रावण कहलाया अर्थात दशानन रावण बन गया। उसी रावण को मारने के लिए अयोध्या के राजा दशरथ के घर राम प्रकट हुए। रामायण में भक्ति रस के स्वामी अथवा निर्गुण ब्रह्म की सगुण अवस्था राम है। अतः प्रमाणित है कि राम की जन्मभूमि, आध्यात्मिक अयोध्या है। चूंकि राम रावण मारने के आये थे इसलिए उन्हें अयोध्या तो छोड़ना ही था क्योंकि अयोध्या में रावण नहीं आ सकता है, जहाँ दशरथ है वहाँ दशानन नहीं रह सकता है। राजा दशरथ की तीन रानियाँ अर्थात सत्वगुण कौशल्या, रजोगुण कैकेयी एवं तमोगुण सुमित्रा। सत्व से सतपुरूष राम व रज से रजपुत भरत का जन्म होता है तथा सुमित्रा में जो सत्वगुण का अंश वह लक्ष्मण तथा रजोगुण का अंश शत्रुघ्न। राम को अयोध्या छोड़ दक्षिण में जाना अर्थात शरीर के दक्षिण के हिस्से में चित्रकुट अर्थात गुरु चक्र जहाँ भक्त व भगवान का मिलन होता है, पंचवटी आज्ञाचक्र, जो पंच तत्व का नियंता है, माँ शबरी का आश्रम अर्थात शब्द तंमात्रा वहन करने वाले आकाश तत्व को धारण करने वाला विशुद्ध चक्र, हनुमान का वास स्थान अर्थात वायु तत्व का धारक अनाहत चक्र, बाली की शक्ति अग्नि तत्व के धारक मणिपुर चक्र में है, समुद्र की विशाल जलराशि जल तत्व स्वाधिष्ठान चक्र है तथा लंका लं बीज मंत्र एवं सोने के वर्ण की पृथ्वी तत्व मूलाधार चक्र है। सीता साधक की कुल कुंडलिनी जीव भाव तथा राम साधक का बंधन मुक्त शिव भाव है। सीता राम के मिलन बिना अयोध्या में राम पूर्ण नहीं जबकि सीता तो लंका में रावण अर्थात मायावी शक्ति के बंधन में है। कुल कुंडली के जागरण के बिना साधना मात्र एक प्रक्रिया है जो साधक यंत्रवत पूर्ण करता है। चौहद वर्ष सात चक्रों का ज्ञान अर्जन करना एवं साधना कर्म द्वारा सिद्ध होना है इसलिए सात गुणा दो बराबर चौदह है। वनवास अर्थात एकांत माने अपने में वास करना।
(3.) पुष्पक विमान से अयोध्या - रामायण में ब्रह्म विज्ञान के शोध में पुष्पक विमान से अयोध्या की यात्रा भी महत्वपूर्ण है। इसको समझने पूर्व रामायण के संदर्भ में एक उक्ति है उस पर दृष्टि डालते है –‘घर का भेदी लंका ढहाए’ , यह उक्ति विभीषण के संदर्भ में कही गई तथा इसका ईशारा एक गद्दार की ओर जाता है। लेकिन विभीषण को गद्दारों की अंतिम पंक्ति में भी किसी ने खड़ा करने साहस नहीं किया है। उक्ति अर्थ एवं संदर्भ व्यक्ति में कोई समानता नहीं है तथा यह एक शोध का विषय है। लं जड़ता का बीज मंत्र है, लंका का अर्थ अंधकार, क्रुरता तथा बंधन का चरम बिन्दु । ढहाने का अर्थ हुआ गिराना तथा गिराने वाले को घर का भेदी बताया गया है। घर का अर्थ जड़ वस्तु से बनी वह आकृति जहाँ चेतन मन का निवास हो। इस अर्थ मनुष्य वास्तविक एवं स्थायी घर मानव शरीर है, जिसका भेदी अर्थात रहस्य ज्ञाता है। वह गुरु के रुप में मिल जाए तो जड़ता एवं अविद्या में बंधक मन का जीव भाव मुक्त हो जाता है अर्थात लंका ढहाई जाती है अन्यथा लंका ढ़हाना दुष्कर है। गुरु साधक को साधना रुपी पुष्पक विमान देते जिसमें सवार होकर साधक कुल कुंडलीनी सहित सहस्त्राचक्र की चल पड़ता है। गुरु द्वारा प्रधान किये पुष्पक विमान की सहायता से जिस पृथ्वी तत्व लंका का लंकेश रावण जैसा दुरात्मा बताया गया है, जल तत्व समुद्र जो अथाह जल राशि के रुप में मनुष्य के प्राणों को निगलने को आतुर है, अग्नि तत्व जो अथाह बलशाली है तथा प्रतिद्वंद्वी की शक्ति भी अपने में समावेश कर लेते है, वायु तत्व वह पर्वत शिखर है जहाँ चढ़ने श्वास फूल जाती है तथा आकाश तत्व जहाँ पापात्मा साधु मन जो अबला के समान है जगत की धकेलते रहता है। जिसका चित्रण अविद्या माया ने किया है उसको पार कर आज्ञाचक्र से भी उपर सहस्त्राचक्र में अधिष्ठित हो जाता है। पुष्पक विमान में बैठाने वाले गुरु कहते लंका पृथ्वी तत्व के स्वामी धर्मात्मा विभीषण है जो तुम्हारा सहयोगी हैं, समुद्र अब तुम्हारा सहायक है जो भव सागर पार करने में प्रभु नाम सेतु बना रखा है, अग्नि तत्व सुग्रीव के नियंत्रण में जो तुम्हारा सखा वह तुम्हारा मदद को आतुर है, वायु तत्व हनुमान का है जो तुम्हारा भक्त है तुमें अपने कंधे पर बैठा कर शिखर चढ़ा लेगा तथा आकाश तत्व में माता शबरी है जो इष्ट मंत्र रुपी शब्द तुमने पाया वही तो आकाश को पार करा देगा। फिर रहा आज्ञा चक्र पंचवटी जहाँ के नियंत्रक मन तुम्हारा अपना है जहाँ बैठकर मैंने तुझे साधना सिखायी एवं आत्मज्ञान करवाया। फिर पूर्ण सदगुरु कहते है कि गुरुचक्र में मैं ही तारकंब्रह्म के रुप हूँ, मै तुम्हें अपनी तारकंब्रह्म्मीय कृपा से मुक्ति मोक्ष प्रधान कर सहस्त्राचक्र स्वामी बना दूंगा अर्थात अणु भूमा बन जाएगा जीवात्मा परमात्मा बन जाएगी। यह विद्या तंत्र है। अर्थात सीताराम अयोध्या के राजा राम बन गए।
(5.) रामायण की नीति – रामायण की नीति है अंधकार को आलोक से, घृणा को प्रेम से, शत्रुता को मित्रता से, उद्दंडता को कठोरता से, निंदा को प्रशंसा एवं क्षुद्रता को महानता से जय करने की रही है। यद्यपि रामायण ग्रंथ युग युग में युग की आवश्यकता एवं मान्यता के आधार पर बहुत लिखा गया, पुनर्लेखन किया एवं मिटाना भी गया है तथापि रामायण में समानता रही है यह ग्रंथ मर्यादा की सीमा को परिभाषित करने में कोई भूल नहीं करता है। यद्यपि कथा के नायक श्रीराम को लेखकों ने अपनी भावना, विचार एवं संस्कार की डोर सजाने में कमी नहीं रखी तथापि उन्होंने श्रीराम की प्रभुता को कम आंकने की भूल नहीं की है। इसलिए राम के संदर्भ में जो मिथ्या विचार चल रहे वह व्याख्याकार के धारण करने अज्ञानता, न्यूनता एवं नकारात्मकता का परिणाम है।
एक मिथक समझते है -
मुख में राम बगल में छूरी - मुख का माने सामने अथवा मुख्य लक्ष्य राम अर्थात सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय आदर्श हो तथा बगल का माने पास में छूरी अर्थात शक्ति हो वही सुशासन स्थापित कर सकता है।
(6.) रामायण की प्रासंगिकता - रामायण एक शिक्षा मूलक पुराण है तथा उसके नायक श्रीराम रोगियों हृदय के कण कण में रहने वाले प्रभु है।
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श्री आनन्द किरण@9982322405
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श्रद्धेय एडवोकेट श्री नरेंद्र के राजपुरोहित को यह आलेख समर्पित
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