नमस्कार
भारत के प्रधानमंत्री जी ने आत्मनिर्भर भारत बनाने का संदेश दिया है। मैं नहीं जानता हूँ कि उनके 20 लाख करोड में से आपके गाँव को कितना मिलेगा। मैं एक प्राउटिस्ट हूँ। प्रउत दर्शन श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा दिया गया है। उसमें गाँवों को स्वावलम्बी बनाने की व्यवस्था है। यदि आप चाहे तो उसकी मदद लेकर आपके गाँव एवं ग्राम पंचायत को स्वावलम्बी बना सकते है।
इस योजना के तहत आपको आपके गाँव के कुछ आध्यात्मिक नैतिकवान युवा उद्यमियों की आवश्यकता है, जो गाँव के खातिर कुछ कर गुजरने के लिए दृढ़ संकल्पित हो। उसके बाद गाँव अथवा आपके प्रखण्ड (ब्लॉक) के बुद्धिजीवियों की मदद से गाँव की भूमि, जलवायु एवं संसाधनों का सर्व करवाए। उसके बाद उपलब्ध संसाधन की मदद से एक गाँव के विकास की योजना बनाइये। विकास का अर्थ ईंट पत्थरों जोड़ कर इमारतें बनाना, अथवा सड़कें बनाना नही है। विकास का अर्थ गाँव का व्यष्टिगत व समष्टिगत भौतिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास करना होता है। इसे चहुंमुखी विकास कहते है।
कृषि, पशुपालन, शिल्प उद्योग एवं वाणिज्यिक क्रियाओं को सहकारिता के आधार पर स्थापित करने, संचालित करने एवं प्रगतिशील बनाने हेतु सबका साथ, सबका सहयोग व सबका विकास के आधार पर आर्थिक, भौतिक एवं मानवीय संसाधन का संग्रह कर एक प्रबुद्ध जन परिषद द्वारा उसका प्रबंधन करें। फिर उसको क्रियांवयन करें, जहाँ वित्तीय समस्या आपकी सीमा रेखा से उपर हो आपके क्षैत्र के बीडीओ (विकास अधिकारी जी) के सहयोग से सरकारी एवं सहकारी संस्थाओं से फाइनेंस करावें।
कृषि को एक उद्योग की भाँति बीमित करावें तथा व्यवस्थित करावें। उसमें आवश्यकतानुसार खाद्यान्न एवं वाणिज्यिक फसलों को उंगाए। इसलिए आपके गाँव की समग्र खेती भूमि का चकबंदी करना होगा। भूमि मालिक को भूमि की गुणवत्ता एवं मात्रात्मक माप के आधार पर लाभांश देने की योजना सुनिश्चित करनी है। उसके बाद उसमें लगने वाली पूंजी एवं श्रम का प्रबंधन भी आप उनके सहयोग से करे अथवा अन्य व्यष्टियों के सहयोग से करें तथा उन्हें भी लाभांश देना सुनिश्चित करें। उसके बाद कृषिगत उत्पाद का व्यपार नहीं करें, उसके स्थान पर उससे आधारित निर्माण उद्योग आपके ग्राम में स्थापित करें। इससे शेष जनसंख्या एवं शेष समय में किसान इस कार्य में लग जाएंगे। कृषि आधारित उद्योग से उत्पाद के वितरण की व्यवस्था आपके गाँव में विवेकपूर्ण ढंग से करने के प्रबुद्ध जन समिति का सहयोग ले। एक बात ध्यान रखनी किसी भी रुप निकम्मे को उसमें से हिस्सा नहीं मिलना चाहिए। ठीक इसी प्रकार पशुपालन एवं शिल्प उद्योग की भी व्यवस्थापन एवं संचालन करें। एक बात का स्मरण रखे कि किसी भी स्थित में कच्चामाल आपके गाँव से बाहर नहीं जाए।
धीरे धीरे आप अपनी परिधि में विस्तार करे । विभिन्न गाँवों का समूह बना कर उपरोक्त क्रियाएँ संचालित करें। यदि इस काम में आपके बीडीओ ( ब्लॉक विकास अधिकारी जी) सहयोग करें तो पूरी पंचायत समिति की विकास योजना सहकारिता के आधार पर करें, किराणा, फेरीवाला, चाय इत्यादि उद्योग व्यक्तिगत संचालन करने दीजिये। उसके बाद आने वाली बड़ी समस्या एवं बड़े पैमाने के उद्योग के लिए जिला परिषद तथा सामाजिक आर्थिक इकाई इसके अभाव में राज्य सरकार का सहयोग ले। तांकि सेवाओं का संचालन सुव्यवस्थित हो सकें।
यह स्वावलम्बी भारत एवं आत्मनिर्भर भारत की राह है।
आपका शुभ चिंतक
एक प्राउटिस्ट
नोट - मैं आपके सहयोग के लिए तैयार हूँ
श्री आनन्द किरण शिवतलाव
9982322405
anandkiran1971@gmil.com
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