पुरोधा प्रमुख
आनन्द मार्ग प्रचारक संघ के सर्वोच्च पदाधिकारी एवं आनन्द मार्ग समाज के मुखिया को पुरोधा प्रमुख नाम से जाना जाता है। आनन्द मार्ग में मार्ग गुरुदेव एवं चर्याचर्य के बाद पुरोधा प्रमुख का मत सबसे अधिक मूल्यवान है।
पुरोधा प्रमुख का चयन – पुरोधा के वोटों से पुरोधा प्रमुख का चुनाव होगा तथा पुरोधा प्रमुख का चुनाव पुरोधाओं में से होगा।
पुरोधा – जिन सभी आचार्यों के कम से कम 500 शिक्षा भाई हैं और इन आचार्य में से जो दुरुह विशेष योग में अभिज्ञ है, केवल वही पुरोधा की शिक्षा पावेंगे।
पुरोधा की शिक्षा - पुरोधा का शिक्षार्थी प्रथम उपयुक्त योग्यता संपन्न व्यक्ति विशेष के पास शिक्षा लेगा।
पुरोधा की परीक्षा - इसके बाद अन्य पांच पुरोधा के पास परीक्षा देगा।
पुरोधा पद पर चयन - उसी परीक्षा के फलाफल के आधार पर केंद्रीय पुरोधा पर्षद तत्सम्पर्कीय व्यक्ति को अभिज्ञान पत्र देंगे। अभिज्ञान पत्र में रजिस्टर्ड नंबर के साथ परीक्षकों का हस्ताक्षर रहेगा।
पुरोधा प्रमाण-पत्र का रद्दीकरण - पुरोधा शब्द योग्यता और कर्मतत्परता का प्रतीक है वार्द्धक्य और पंगुता को छोड़कर अन्य किसी कारण से यदि कोई पुरोधा यथायथभाव से अपने अपने कर्तव्य संपादन में अक्षम हों वहाँ उनके अभिज्ञान-पत्र रद्द करने का अधिकार केंद्रीय पुरोधा पर्षद को होगा है और वहाँ शेषोक्त पर्षद की राय की अंतिम रूप से मान्य होगी।
पुरोधा शब्द का व्यवहार - पुरोधा प्रभृति शब्द व्यक्तिगत योग्यता के प्रतीक के हिसाब से व्यवहृत होगा।
पुरोधा एवं आनन्द मार्ग - मार्ग के दायित्वपूर्ण पदों के लिए जहां तक संभव हो पुरोधाओं को ही निर्वाचित या मनोनीत करना होगा। मार्गीय आदर्श के सार्वभौम प्रचार का लक्ष्य रखते हुए केंद्रीय समिति की सम्मति से और पुरोधाप्रमुख की स्वीकृति के अनुसार इस नियम में सामयिक शिथिलता हो सकती है।
आनन्द मार्ग की केंद्रीय संस्था, पुरोधा एवं पुरोधा प्रमुख– पुरोधा के वोटों से केंद्रीय संस्था का निर्वाचन होगा। पुरोधा प्रमुख प्रेसिडेंट (पुरोधा प्रमुख चाहें तो किसी ओर को केन्द्रीय संस्था के प्रेसीडेन्ट का मनोनयन कर सकते तथा उसका कार्यकाल भी वे ही निर्धारित करेंगे।) होंगे एवं प्रेसिडेंट अपनी इच्छानुसार केंद्रीय कार्य समिति गठन करेंगे। वे अपनी इच्छा से केंद्रीय संस्था के सदस्यों के अलावे अन्य दूसरे अधिक से अधिक वैसे तीन व्यक्तियों को बाहर कार्यकारणी के कार्यकारिणी समिति में ले सकेंगे। केंद्रीय संस्था की सर्वोच्च सदस्य संख्या 60 होगी तथा निम्नतम 15 होगी। केंद्रीय कार्यकारिणी-समिति के सदस्यों की संख्या प्रेसिडेंट की इच्छा अनुसार निर्धारित होगी। केंद्रीय संस्था के 80% सदस्यों की इच्छा से केंद्रीय संस्था की संख्या 60 से अधिक की जा सकती है।
पुरोधा पर्षद की भूमिका - आनंद मार्ग की किसी विशेष जटिल समस्या दिखाई पड़ने पर या किसी गुरुत्व विसंगति के दिखाई पड़ने पर केंद्रीय पुरोधा पर्षद का सिद्धांत(निर्णय) अंतिम माना जाएगा। पुरोधा पर्षद के सदस्यों में यदि एक मत से जो सिद्धांत(निर्णय) होगा समाज मानेगा। पर्षद के सदस्यों में यदि एकमत नहीं हो तब संख्याधिक्य का मत पर्षद का मत मान्य होगा। मतामत के व्यापार में दोनों दलों के बराबर होने पर सचिव का एक-एक मत ही पर्षद का मत के रूप में गन्य होगा। प्रत्येक आनंद मार्ग को बिना तर्क के पुरोधा पर्षद के सिद्धांत (निर्णय) को मानना ही होगा। पुरोधा पर्षद के सचिव(चैयरमेन) "पुरोधा प्रमुख" के नाम से अभिहित होंगे। पुरोधा प्रमुख का सिद्धांत(निर्णय) अभ्रांत और अंतिम रूप से गन्य होगा। पुरोधा प्रमुख सिद्धांत दूसरा कोई परिवर्तित नहीं करेगा। तब वे स्वेच्छा से उसका परिवर्तन कर सकते हैं। पुरोधा प्रमुख आजीवन पद पर अधिष्ठित रहेंगे। तब अधिक अस्वस्था आदि कारण वे पद त्याग कर सकते हैं। पुरोधाओं के वोट से पुरोधा प्रमुख निर्वाचित होंगे। पुरोधापर्षद के चार सदस्यों के बाकी तीन व्यक्तियों को पुरोधा ही निर्वाचित करेंगे। उनका कार्यकाल 5 वर्षों के लिए होगा। पांच वर्षों के पूर्ण होने से पहले किसी की मृत्यु या कोई अस्वस्थता के कारण पद त्याग करें तो उनके स्थान पर पुनः निर्वाचन होगा। पुरोधा पर्षद के किसी सदस्य के कार्यकलाप में निर्वाचनकारी पुरोधा के अधिकांश व्यक्ति यदि असंतोष प्रकट करें तो पुरोधा प्रमुख की सम्मति के आधार पर उनके स्थान पर पुणनिर्वाचन हो सकता है।
पुरोधा पर्षद विशेष भूमिका - तात्विक पर्षद व आचार्य पर्षद के निर्णय की पुनः विवेचना का अधिकार पुरोधा पर्षद के पास है।
पुरोधा प्रमुख का आनन्द मार्ग में स्थान एवं अधिकार – पुरोधा प्रमुख आनन्द मार्ग के सर्वोच्च पदाधिकारी है। वे पुरोधा पर्षद के सचिव एवं केन्द्रीय संस्था के प्रेसिडेंट है। तात्विक पर्षद, आचार्य पर्षद एवं अवधूत पर्षद के निर्णय अंतिम अनुमोदन के लिए पुरोधा प्रमुख के पास जाता है । (पुरोधा प्रमुख चाहें तो किसी ओर को केन्द्रीय संस्था के प्रेसीडेन्ट का मनोनयन कर सकते तथा उसका कार्यकाल भी वे ही निर्धारित करेंगे।)
अवधूत एवं पुरोधा प्रमुख - अवधूत पुरोधा प्रमुख को मानकर चलेंगे और उनकी अनुमोदन के बिना अवधूत बोर्ड का कोई सिद्धांत बलपूर्वक स्थापित नहीं करेगा।
भुक्ति प्रधान एवं पुरोधा प्रमुख - जब कभी चाहे पुरोधा प्रमुख भक्ति प्रमुख के कर्तव्य एवं उत्तरदायित्व को केंद्रीय पुरोधा पर्षद की सलाह या बिना सलाह के घटा बढ़ा सकते हैं।
राज्य समिति या देश समिति प्रभृति - यदि कई जिला समिति के ऊपर और केंद्रीय समिति के नीचे अर्थात प्रदेश राज्य या विशेष देश के लिए कोई कमेटी कायम करने की आवश्यकता हो तो उस क्षेत्र में उस कमेटी का चेयरमैन केंद्रीय संस्था के प्रेसिडेंट द्वारा मनोनीत किया जाएगा अपनी इच्छा अनुसार व्यक्तियों को लेकर कार्यकारिणी समिति बना लेंगे बना लेंगे ।
पुरोधा प्रमुख का पदच्युत प्रक्रिया – एक बार पुरोधा प्रमुख के निर्वाचन के बाद पुरोधा प्रमुख आजीवन पद पर अधिष्ठित रहेंगे। तब अधिक अस्वस्था आदि कारण वे पद त्याग कर सकते हैं।
विशेष – आचार्य को अभिनय की स्वीकृति देने का विशेषाधिकार है तथा विशेष योग व सहज, विशेष व जन्त प्राणायाम सिखाने का विशेष अधिकार पुरोधा के पास है।
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स्रोत - आनन्द मार्ग चर्याचर्य
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आलेख समर्पित - आचार्य श्रद्धानंद अवधूत जी ( प्रथम तथा वैधानिक रुप से द्वितीय पुरोधा) को
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संकलनकर्ता - श्री आनन्द किरण
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जवाब देंहटाएंपरम पिता बाबा की जय।
पुरोधा प्रमुख चर्याचर्य से ऊपर नही है।
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