🔥धर्मयुद्ध मंच से🔥
®श्री आनन्द किरण®
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©क्या मुसलमान खराब है?©
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भारत सरकार ने एक कानून लाया है। जिसमें अफगानिस्तान, पाकिस्तान व बांग्लादेश से प्रताड़ित अल्पसंख्यक (गैर मुस्लिम) को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान रखा गया है। इससे मुसलमान को अलग रखा गया है। यदि वे धार्मिक उन्माद के कारण ही स्वदेश छोड़ भारत में लंबे अरसे से रह रहे है। उन्हें भारत की नागरिकता मिलने का कोई प्रावधान नहीं है। यहाँ एक प्रश्न धर्मयुद्ध के समक्ष आया है कि क्या मुसलमान खराब है? दुनिया का कोई विचारक एवं बुद्धिजीवी इसका उत्तर हां में नहीं दे सकता है। जहाँ सूफ़ियों की विस्तृत परंपरा है; जहाँ अशफाक उल्ला खां, हकिम खां सूरी, ए. पी. जे. अब्दुल कलाम जैसे व्यक्ति देने वाले समाज को खराब, नकारा अथवा गद्दार नहीं कहा जा सकता है। अत: यहाँ धर्मयुद्ध को इस प्रश्न के उत्तर के लिए मुसलमानों के इतिहास का अवलोकन करना होगा।
इस्लाम का जन्म पैगम्बर हज़रत मुहम्मद के द्वारा लाई गई किताब कुरान ए शरीफ से माना गया है। इस्लाम के अनुसार यह किताब पैगम्बर हज़रत मुहम्मद को खुदा के फरिस्ते द्वारा हीरा नामक पहाड़ी पर दी थी, साथ में खुदा का एक संदेश भी सुनाया कि यह खुदा की ओर से धरातल के लिए अन्तिम किताब भेजी है। इसके साथ एक मान्यता भी है कि इससे पूर्व की सभी पुस्तकें अवैध हो जाती है तथा इसके बाद आने वाली पुस्तकें भी अवैध मानी जाएगी। इस धारणा ने इस्लाम को प्रश्नों के घेरे में खड़ा किया है। दूसरी ओर इस्लाम के प्रचारक की तलवार के बल पर इस्लाम बनाने की नीति धर्म प्रचार की अमानवीय नीति है। इस धरातल पर अन्यत्र इस प्रकार के उदाहरण को अभाव दिखाई देते है। धर्मयुद्ध मंच दोनों को नीति, न्याय एवं सत्य की कसौटी पर कसकर अपनी बात करेगा।
क्या कुरान ए शरीफ खुदा की ओर से पैगम्बर हज़रत मुहम्मद साहब को प्रदान की गई आसमानी किताब है? इस प्रश्न की उत्तर की खोज में दुनिया के परिक्रमा करने से प्राप्त हुआ की दुनिया में अन्यत्र भी ऐसी मान्यता है - उदाहरण वेदों को ब्रह्मा के मुख निकला हुआ बताया जाना एवं बाइबिल को परमेश्वर की वाणी बताना आस्था एवं विश्वास की परिधि में है तथा इसकी सत्यता विज्ञान एवं इतिहास की कसौटी पर सिद्ध नहीं की जा सकती है। इसलिए इस प्रश्न को आस्था के क्षेत्राधिकार में रखकर धर्मयुद्ध मंच कहता है कि यह कर्मभूमि यहाँ कर्म से फल सिद्धि की भाषा का बोलनी चाहिए तथा आस्था को निजी संपदा मानकर आगे बढ़ जाना चाहिए। क्या कुरान ए शरीफ आखिरी आसमानी किताब है? यद्यपि यह आस्था एवं मान्यता की धरोहर है तथापि इससे ज्ञान की गति धारा एवं नूतन अनुसंधान प्रभावित होता है। इसलिए धर्मयुद्ध मंच इसे निजी एवं मात्र निजी विश्वास करार देता है। नूतन अनुसंधान से पुरातन ज्ञान अमान्य नहीं होता है अपितु नूतन रुप में परिस्कृत होता है।
तलवार के बल पर धर्म ध्वज को फैराने की भाषा मध्यकालीन साम्राज्य विस्तारकों शब्दकोष से तैयार हुई थी जो इस समय समयावधि पार कर चुकी है। अत: वर्तमान युग के लिए यह स्वत: ही अमान्य हो जाता है। तात्कालिक समाज प्रत्येक विजेता प्रजाति ने पराजित प्रजाति एवं प्रजातियों पर इस प्रकार का अथवा इससे थोड़ा अधिक या कम अमानवीय व्यवहार किया है, इसलिए इसके लिए एक ही समाज को दोषी ठहराना इतिहास को देखकर जानबूझकर कर आँखें बंद करना है।
प्रश्न के उत्तर की खोज में इस्लाम मतालंबियों की जीवन शैली एवं जीवन लक्ष्य की ओर चलते है। इनका जीवन लक्ष्य अल्लाह के दरबार में अपने कर्मों का हिसाब देने के लिए उपस्थित होना। अल्लाह मोमीन को उसके कर्म आधार पर जन्नत अथवा दोजख देता है। इनकी जीवन शैली नेकी की कमाई खाना तथा आपसी सहयोग जीवन को सरल बनाने में निहित है।
प्रश्न की उत्तर की खोज में इस्लाम की शिक्षा एवं रुहानी यात्रा की निकलते है। इस्लाम एक अल्लाह एवं एक पैगम्बर को मानते हुए खुदा की इबादत के नमाज एवं दुआ की पद्धति देता है तथा शरीर एवं मन की शुद्धि के लिए रोजा तथा समाज के प्रति दायित्व निवहन के लिए जकात की व्यवस्था देता है। सामूहिक एकता के लिए हज की व्यवस्था दी तथा रूहानी मंजिल के लिए प्रयास करने की अनुमति देता है।
उपरोक्त कारण मुसलमानों खराब कहने की अनुमति नहीं देता है। खान पान पर प्रश्न लगाना भी न्याय संगत आधार नहीं है। ऐसा दृश्य विश्व में कहीं जगह मिल जाएगा। कतिपय राह भटके आतंकियों के आधार पर सम्पूर्ण सभ्यता को नकारना अनुचित है। अन्त: काफीर एवं जिहाद की अवधारणा के मूल अर्थ एवं भाव को समझकर इस्लाम मान्यता को विश्व शांति की ओर ले चलना प्रगतिशील नूतन पीढ़ी का काम है। इस्लामियत का अर्थ इंसानियत लेने पर काफिर तथा जिहाद सत्य की ओर ले चलने की अवधारणा होती है तथा इसका स्वरुप मजहबी होने पर नकारात्मक भूमिका में जाती है। प्राचीन भारतीय अवधारणा में भी मानवता के विध्वंसकों पिचाश की उपमा दी गई थी तथा उनके विरुद्ध संघर्ष को धर्मयुद्ध कहा गया है।
उपसंहार में धर्मयुद्ध मंच कहता है कि जाति एवं साम्प्रदायिक आक्षेपों से अशांति एवं विनाश ही प्राप्त होगा, इसलिए यह प्रगतिशील राह के राहियों संकीर्णता के आवरण से स्वयं को उपर उठाकर नव्य मानवतावाद की आधार शीला पर नया समाज निर्माण करना चाहिए।
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श्री आनन्द किरण@एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज
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