क्या आनन्द मार्गी हिन्दू है

                                                                🌹 धर्मयुद्ध मंच से 🌹
             श्री आनन्द किरण 
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         क्या  आनन्द मार्गी हिन्दू है?
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                  🌺आनन्द मार्ग मनुष्य की जीवन शैली, जीवन दर्शन एवं जीवन यात्रा है। यहाँ मनुष्य की पहचान उसके गुणों एवं कर्मों से है। कोई जाति, मत, पथ, सम्प्रदाय, धारणा, रंग, वर्ण, देश, क्षेत्र एवं निवास स्थल मनुष्य की पहचान नहीं है। इसलिए प्रश्न प्रासंगिक हो जाता है कि क्या  आनन्द मार्गी हिन्दू है? 
                   🌺 हिन्दू शब्द की परिभाषा - सिन्धु अववाह  क्षेत्र में रहने वाले लोगों का समूह है। कालांतर में इसकी परिधि सिन्धु के साथ गंगा, ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गोदावरी, तुंगभद्रा, माह नदी इत्यादि नदियों का अववाह  क्षेत्र एवं हिमालय से हिन्द महासागर मध्य के भूभाग वासियों को लाए.गए है। कतिपय संगठन, इस भूभाग में जन्म एवं पूण्य भूमि का फार्मूला जोड़ देते है। मान्यता के अनुसार आर्य, अनार्य एवं द्राविड़ परंपरा में विश्वास रखने वाले जनसमुदाय को हिन्दू नाम दिया गया है। जिसमें जैन, बौद्ध एवं सिख को पृथक करके देखा जाता है। 
        🌺  आनन्द मार्ग एक, अखंड व अविभाज्य मानव समाज के निर्माण, मानवीय मूल्यों संरक्षण तथा नव्य मानवतावादी चिंतन को लेकर चलता है। अत: आनन्द मार्गी, मानव धर्म को धारण किए हुए हैं। जिसका भावगत नाम भागवत धर्म है। 
       🌺 धर्म शब्द का अंग्रेजी एवं अरबी-फारसी प्रति शब्द नहीं है । कुछ भाषाविद त्रुटिगत रुप में रिलिजन व मजहब को प्रति शब्द मान लेते है। जो भाषाविद की अशुद्धि है। धर्म का निकटवर्ती शब्द ईमान व Character features है। इस अर्थ में सम्पूर्ण मानव जाति का एक ही धर्म है मानव धर्म जो भावगत अर्थ में भागवत कहा जाता है। यह मनुष्य का स्वधर्म है, शेष उपधर्म या परधर्म है। जो मनुष्य को जीवन जीने एवं समाज के संगठन में कोई आवश्यक नहीं है। इसे लेकर चलना या नहीं चलना मनुष्य की ईच्छा पर है। लेकिन धर्म जीने के लिए तथा समाज के संगठन में प्रायोजनीय घटक है। 
              🌺 मानव धर्म का भावगत शब्द भागवत एक संस्कृत भाषा का शब्द है तथा आनन्द मार्ग के मंत्र व आनन्द मार्गियों का संस्कृत भाषा में नामकरण इत्यादि सोचने को मजबूर करता है कि क्या आनन्द मार्गी एक हिन्दू है। श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के साहित्य में संस्कृत शब्द व श्लोकों का प्राबल्य, आनन्द सूत्रम के सूत्र संस्कृत में होना तथा कृष्ण एवं शिव के सम्मान में लिखी पुस्तकें, प्रथम दृष्टा में आनन्द मार्ग को हिन्दू स्वरूप में दिखाता है। यह सब दृष्टि, श्रुति एवं अध्ययन का भ्रम सृष्टि करते है। संस्कृत, शिव व कृष्ण हिन्दूओं की ही नहीं मानवता की धरोहर है। इसलिए आनन्द मार्ग को हिन्दू रुप में देखने वालों की दृष्टि में दोष है।  भागवत धर्म नव्य मानवतावाद की भित्ति पर खड़े है तथा सर्वे भवन्तु सुखिनः के सूत्र पर कार्य करता है। आनन्द मार्ग विखंडित मानव सभ्यता को एक सूत्र में पिरोने का आंदोलन है। आनन्द मार्ग का चिन्तन अखिल विश्व एवं सार्वभौमिक है। आनन्द मार्ग की  गति धारा एवं कर्म शैली अनन्त की ओर ले चलती है। यह सब प्रमाण आनन्द मार्गी को हिन्दू रुप में नहीं उस उपर एक मानव के रुप में देखने की आज्ञा देती है । यहाँ कुछ पल के लिए रुककर एक बात पर सोचना आवश्यक है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति में सर्व कल्याण का चिन्तन था। यही हिन्दू धर्म के उदभव का बिन्दु है। यह शत प्रतिशत सत्य है तथा इस चिन्तन पर कार्य करने वालों का अभिनंदन है। यह भी स्मरण रखना आवश्यक है कि समग्रता का चिन्तन विश्व की लगभग सभी सभ्यता, संस्कृति एवं चिन्तन में अल्प एवं अधिक परिणाम में विद्यमान है। अत: इसे किसी भूखंड अथवा समुदाय की संपदा बताना त्रुटि पूर्ण है। उपर्युक्त सिद्धांतों के संरक्षण के नाम पर संकीर्णता को प्रश्रय देना तथा उसके लिए विध्वंसक कृत्य निंदनीय एवं भर्त्सना योग्य है। इस प्रकार की हरकतों को प्रतिबंधित रखना एवं दंडनीय उपाय करना मानवता के हित में है। लेकिन प्रतिशोध की भावना तथा दुखी करने के उद्देश्य से दिया गया दंड तथा लगाए गए प्रतिबंध, अमानवीय तथा अनुचित है। कठोर कार्यवाही में सुधार का भाव तथा कल्याण का बीज, धर्म का पथ है। 
               🌺 आनन्द मार्ग की संपदा सम्पूर्ण सृष्टि है। जिसमें सबकुछ समाया हुआ है।  ईसाई, इस्लाम, बोद्ध, हिन्दू, पारसी, यहुदी, जैन एवं सिख सब आनन्द मार्ग में आकर एक मानव बन जाते हैं। जिनको अलग करना दुष्कर ही नहीं असाध्य है। इसलिए किसी एक में आनन्द मार्ग को देखना अथवा दिखाना दृष्टि भ्रम है। एक आनन्द मार्गी एक हिन्दू नहीं, एक नव्य मानव है । जिसने मानव, जीव जगत, पादप, पर्यावरण एवं सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण का रुप धारण कर रखा है तथा यही आनन्द मार्गी की पहली पहचान है। 
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श्री आनन्द किरण@ आनन्द मार्ग अमर है। 

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