🌹 विचार मंथन मंच से 🌹 ®करण सिंह शिवतलाव की कलम से ®
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© जनता कर्फ्यू ,लॉक डाउन एवं गंदी राजनीति ©
✍ कोरोना ने विश्व को लॉक डाउन कर दिया है। WHO की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना से बचाव का इससे बेहतरीन कोई ईलाज नहीं है। इस रोग के फैलने की गति एवं इसके मनुष्य के शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव तथा विश्व में इसकी कोई प्रमाणित दवाई नहीं होने कारण इसके फैलाव की श्रृंखला तोड़ने के लिए लॉक डाउन ही एक मात्र रास्ता है। विश्व के ओर देशों में भी किया तथा भारतवर्ष में भी लॉक डाउन किया गया। लेकिन भारतवर्ष में इसको लेकर राजनीति कुछ अधिक ही हुई है। जो एक दुखद विषय है। कभी कभी किसी के द्वारा उक्त स्थित को समझने एवं समझाने के लिए लिखी गई बात राजनीति में लिप्त व्यष्टियों एवं उसके अनुयायी व समर्थकों राजनीति लग जाती है तथा उस पर भी राजनीति शुरू हो जाती है। यहाँ एक प्रश्न किया जाता है कि इस प्रकार की राजनीति की शुरुआत कौन करता है? इस प्रश्न का सीधा उत्तर कोई नहीं है लेकिन जो भी राजनीति करता है। उसकी व उनकी बुद्धि किसी राजनैतिक रोग से ग्रसित होती है।
✍ भारतवर्ष में कोरोना युरोप तथा अरब देशों के रास्ते से आया है। इसलिए अधिकांश विचारकों का मानना है भारत सरकार को सबसे बुद्धिमत्ता पूर्ण निर्णय लेते हुए सबसे पहले भारत की सीमाओं को बंद कर देना चाहिए था। यदि भारत सरकार ऐसा करती तो हमारी सीमाएं तो लॉक डाउन रहती जबकि देश गतिमान रहता। इस विचार के जबाब में एक प्रश्न होता है कि क्या प्रवासी भारतीयों को बचाना भारत सरकार की जिम्मेदारी नहीं है? इस प्रश्न का जबाब है कि यह अवश्य ही भारत सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन एक जिम्मेदारी के निवहन से संपूर्ण राष्ट्र को खतरे में डालना कोई भी नीतिकार बुद्धिमत्ता पूर्ण कदम नहीं बता सकते हैं। प्रवासी भारतीय को लाने तथा उनकी सुरक्षा का भारत सरकार एक मास्टर प्लान बनाती तो सांप भी मर जाता एवं लाठी भी नहीं टुटती। भारत सरकार का एक अधिकारी इसे राज्यों की सरकार की लापरवाही बताते तो मैं इस दो उपमा दूंगा प्रथम खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे, द्वितीय अपना कसूर औरों पर डालना। अन्य कुछ लिखा जाए तो गंदी राजनीति।
✍ कोरोना के प्रकोप से महाप्रलय की आशंका को देखते हुए भारत के प्रधानमंत्री ने 14 घंटा का जनता कर्फ्यू की व्यवस्था दी गई। इसके औचित्य एवं अनऔचित्य को लेकर भारतभूमि पर गंदी राजनीति शुरू हो जाती है। जनता कर्फ्यू को स्थायी समाधान नहीं देखते हुए प्रथम राजस्थान सरकार ने तत्पश्चात पंजाब एवं अन्य राज्यों सरकारों ने अलग-अलग अवधि के लिए तथा अपने राज्यों के प्रकोप की मात्रा के अनुसार लॉक डाउन किये गए। उसके बाद प्रधानमंत्री जी ने 21 दिनों का लॉक डाउन कर दिया गया। इसका सभी ने समर्थन किया तथा सहयोग दिया लेकिन दिहाड़ी मजदूरों तथा कंपनियों में काम करने वाली लेबर के प्रति कंपनी मालिकों द्वारा अभिभावक की जिम्मेदारी न निवहन करने पर लॉक डाउन में पेट की मौत मरने के भय ने मजदूरों के धैर्य को तोड़ दिया तथा मजदूर अपनी जन्मभूमि की अनजान लंबी यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े। यहाँ भी गंदी राजनीति आरोप प्रत्यारोप करने लग गई। लोकतंत्र में विरोध एवं समर्थन को जनमत निर्माण का साधन माना जाता है लेकिन इन दिनों में सोसियल मीडिया के बढ़ते प्रभाव तथा सभी पार्टियों के आई टी सैल की सोची समझी रणनीति ने गंदी राजनीति का तुफान ले आया है। यह गंदी राजनीति भारतवर्ष को किस ओर ले जुड़े रही है। यह अवश्य ही विश्व गुरु देश के लिए चिंता का विषय है।
भारतवर्ष में दरिद्र एक वक्त की, गरीब एक दिन की, निम्न आय वर्ग का व्यक्ति एक सप्ताह की, निम्न मध्यम वर्गीय एक पखवाड़े की, मध्यम मध्य वर्गीय एक महिने की, अच्छे मध्य वर्गीय एक तिमाही की, निचले उच्च वर्ग में एक अर्द्ध वर्ष की, ठीकठाक उच्च वर्ग एक वर्ष की संपन्न उच्च वर्गीय लोग पांच वर्ष की आर्थिक मार सहन कर सकते हैं जबकि प्रभुत्व संपन्न वर्ग एक युग मार को सहन करने की ताकत रखते है। भारतवर्ष जैसे देश में जहाँ बहुसंख्यक लोग आर्थिक समस्या एवं रूढ़ मान्यता में जी रहा है, वहाँ निर्णय करने वालों को इस पर दिकदृष्टि रखनी चाहिए। पहले व्यवस्था कर निर्णय लेने चाहिए । जब शत्रु द्वार पर आकर खड़ा देखकर भी पहले पहरेदार बैठाकर व्यवस्था कर ही निर्णय लेना चाहिए।
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करण सिंह शिवतलाव
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