• श्री आनन्द किरण
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विश्व कोरोना वाइरस की विनाशकारी आपदाओं झुंझ रहा है। यह चीन के वुहान शहर से निकल कर विश्व में तबाही मचाने लग गया है। कतिपय सूचना इसे प्राकृतिक आपदा बताते है, तो अन्य मानव निर्मित वाइरस द्वारा विश्व की आर्थिक व्यवस्था को अस्त व्यस्त करना बताया जा रहा है। मैं जानता हूँ कि अटकलें विश्व का भविष्य निर्धारित नहीं कर सकती है, विश्व के सुनहरी नई प्रभात के लिए जैविक हथियारों से उत्पन्न खतरों तथा उसके नियमन, नियंत्रण तथा विनष्टीकरण पर अनुसंधान से आने वाली है। मानव सभ्यता को बचाने के लिए मनुष्य को जैविक हथियार एवं जैविक आतंकवाद को आलोचित एवं विश्लेषित करना आवश्यक ही नितांत आवश्यक है।
संयुक्त राष्ट्र एवं विश्व की प्रगतिशील एवं विकासोन्मुखी संस्थाएं विश्व शांति की मशाल जलाई है। यदि यह मशाल बारुद के ढेर पर खड़े होकर जलाते रहे तो उसकी एक चिनगारी सम्पूर्ण विश्व को जलाकर भस्म करने में सक्षम है। कदाचित आज के विश्व में प्रभावशाली देश की आणविक हथियारों एवं अनियंत्रित बहुराष्ट्रीय कंपनियों की व्यापारिक प्रतिस्पर्धा ने उक्त दृश्य निर्मित किया है। संयुक्त राष्ट्र संघ में वीटो प्राप्त देशों की मनमानी एवं शक्तिशाली देशों के कुटनीति से पौषित संबंधों ने संयुक्त राष्ट्र को बेवस तथा विश्व शान्ति पर अनगिनत प्रश्न चिन्ह लगा दिए है। इस बीच जैविक हथियारों का संभावित भय विश्व को पुनः परिभाषित करने की आवश्यकता महसूस कर रहा है।
कोरोना वाइरस के कारण बनी विश्व की परिस्थितियाँ पूँजीवाद की कमजोरियां एवं देश की सीमाओं की मजबूरियों का चित्रण किया है। यदि उक्त परिदृश्य से शिक्षा लेकर भी मानव तथा उनका समाज अपनी व्यवस्था को मनुष्य एवं समाज शब्द की परिभाषा के अनुकूल नहीं बनाया तो मानव सभ्यता के काले अध्याय को चिरकाल तक ढ़ोहना पड़ेगा। जो कभी भी मनुष्य के समाज का संगठन तैयार करने नहीं देगा।
कोरोना यदि प्राकृतिक आपदा है तो विश्व इसके काले अध्याय को संयोग मानकर भूल जाएगा लेकिन यह यदि सुनियोजित योजना है तो विश्व में युद्ध के एक नये युग का जन्म हो गया है। मानव सभ्यता को उसके अनुकूल स्वयं को संगठित करना होगा तथा अपने समाज की रचना भी तदनुकूल करनी होगी।
नया युग कैसा होना चाहिए?
विश्व को ज्ञात एवं अज्ञात भय की ओर धकेलना मेरा उद्देश्य नहीं है। विश्व अपना वर्तमान एवं भविष्य देखें तथा तदनुकूल स्वयं एवं समाज का निर्माण करें। विश्व ने कभी मुक्के, लात एवं थप्पड़ की लड़ाई के युग से लकड़ी एवं गदाओं पर आया, तत्पश्चात तलवार व कटार पर फिर धनुष बाण एवं भालों पर, उसके बाद लंबी इंतजार के बाद बारुद पर, उसके बाद अणु बम एवं मिसाईल पर। एक के बाद एक हथियार विध्वंसक लगता गया। अब जैविक हथियार का युग दस्तक दे रहा है । हर युग में मानवता ने युग के अनुकूल स्वयं को संभाल है। अत: मनुष्य इस युग के अनुकूल भी स्वयं को तैयार करना चाहिए।
(१) माइक्रोविटा साधना में दक्ष होना – मनुष्य का जीवन लक्ष्य पूर्णत्व प्राप्त कर बंधन मुक्त होना। जीवन की इस यात्रा में मनुष्य एक यौगिक तंत्र से होकर चलना पड़ता है। इस प्रकार प्रत्येक स्तर पर उसका परिचय सहस्त्र धनात्मक एवं ऋणात्मक माइक्रोविटा से होता है। ज्ञात रुप से या अज्ञात रुप से जब वह इन स्तर से उपर उठता है तब वह देखता है कि नकारात्मक माइक्रोविटा के प्राबल्य को क्षीण करता है धनात्मक माइक्रोविटा में वृद्धि। इस विज्ञान में दक्ष साधक सहज विश्व में नकारात्मक माइक्रोविटा से विध्वंस से स्वयं को तथा मानव सभ्यता को सुरक्षित रख पाएगा सकता है।
(२) नव्य मानवतावाद में प्रतिष्ठित होना – विश्व शांति के प्रयासों में सफलता प्राप्त नहीं होने का एक मात्र कारण यह है कि मनुष्य के लक्ष्य एवं कर्म शैली में एक रुपता का अभाव होना। मनुष्य समग्रता का लक्ष्य लेकर चलता है तथा कार्य करने की पद्धति संकीर्णता है। भौम भावप्रणता(Geo sentiment) अर्थात राष्ट्रवाद, क्षेत्रवाद इत्यादि को लेकर बनने वाले व्यापारिक, आर्थिक एवं सैन्य कुटनीतियां तथा सामाजिक भावप्रणता (Socio sentiment) साम्प्रदायिकता, जातिवाद इत्यादि को उग्रवाद एवं आतंकवाद विश्व को शांति की राह पर नहीं ले जाते है। इसलिए व्यष्टि सोच एवं समष्टि की व्यवस्था नव्य मानवतावाद के आधार स्तंभ पर स्थापित करनी चाहिए।
(३) प्रउत आधारित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था – विश्व में प्रचलित पूंजीवादी एवं साम्यवादी व्यवस्था विश्व में अविवेक पूर्ण वितरण के सूत्र पर स्थापित है। इसके चलते समाज विषमता है तथा समाज की व्यवस्था त्रुटिपूर्ण राजव्यवस्था की भेंट चढ़ गयी है। इसके चलते गरीबी, बैरोजगारी एवं भूखमरी का निदान नहीं मिला। जिससे अशांति, भ्रष्टाचार एवं गुंडागर्दी जैसे शत्रुओं का समाज में बोलबाला हो जाता है। इन सबसे निदान के लिए प्रगतिशील उपयोग तत्व की आवश्यकता होती है। यह की नब्ज समझकर तदनुकूल समाज की रचना करता है। जहाँ समाज में विचित्रता तो रहती है लेकिन शोषण, लूटपाट एवं ठगी का वातावरण नहीं दिखाई देता है। उसके स्थान पर समाज में दिखाई देती है नैतिकता, बंधुत्व, स्वतंत्रता एवं मानवता। इन कारण से प्रेम आधारित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की स्थापना आवश्यक है।
(४) एक अखंड अविभाज्य मानव समाज – जाति, सम्प्रदाय, देश में बंद व्यक्ति एक दूसरे के प्रति सम्मान एवं विश्वास के स्थान पर व्यष्टिगत एवं समष्टिगत प्रभुत्व की जंग में अविश्वास एवं धृणा का सृजन करते है। यह कभी अस्पृश्यता तो कभी रंगभेद का रुप धारण कर खड़े होते है। विश्व इतिहास में राज्यों की सीमाओं के विस्तारत एवं जाति एवं मजहबी प्रभुत्व की स्थापना में इस धरती ने सहस्त्र बार रक्त की स्नान किया तथा आज भी अनवरत जारी है। इस संघर्ष को युद्ध, आतंकवाद, उग्रवाद, नस्लवाद इत्यादि नाम दिये गये है। एक अखंड अविभाज्य मानव की अवधारणा ही वैमनस्य के युग का अंत कर सद्भावना, समभाव एवं सहिष्णुता के युग में प्रवेश करेगा।
(५) विश्व सरकार – देश की सीमाओं में आबद्ध विश्व शान्ति के समीकरण संतुलित नहीं करता है। इसलिए विश्व सरकार का फार्मूला ही शांत, प्रगतिशील एवं उपयोगी समाज का निर्माण करता है।
(६) आनन्द मार्ग जीवन शैली एवं दर्शन – मनुष्यकी जीवन शैली एवं दर्शन में त्रुटि होने पर फूलों का गुलदस्ता भी बदबू देने लग जाता है। चूंकि मनुष्य कर्म एवं गतिधारा आनन्दोमुखी इसलिए उसका दर्शन, जीवन शैली तथा मन का विज्ञान आनन्द मार्ग में प्रतिष्ठित होना आवश्यक है। आनन्द मार्ग ही विश्व को नये युग की पहचान देता है।
(७) नैतिक आचरण एवं यम नियम – आचरण की पवित्रता के लिए एक आचरण संहिता एवं नैतिकता का आधार यम नियम का पालन करने वाला व्यष्टि आवश्यक है। पंचदश शील एवं षोडश विधि भी मनुष्य के लिए आवश्यक है।
(८) आत्ममोक्ष एवं जगत हित का उद्देश्य – मनुष्य के जीवन का एक उद्देश्य का होना आवश्यक है। मनुष्य का जीवन उद्देश्य आत्म मोक्ष एवं जगत हित है। व्यष्टि व्यष्टि के इस उद्देश्य से जीवन यापन से समष्टि जगत में एक स्वच्छ परिवेश का निर्माण होता है।
(९) ब्रह्म सत्य एवं जगत आपेक्षिक सत्य का सूत्र – जगत मिथ्या की अवधारणा ने इस सृष्टि की बहुत क्षति की है इसलिए इस समष्टिगत त्रुटि का समाधान अवश्य करना चाहिए। अत: श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने जगत के आपेक्षिक सूत्र का प्रतिपादन किया है।
वर्तमान जैविक हथियार से युक्त वैश्विक समाज में विश्व शांति के लिए नये युग सिद्धांत धारण करना आवश्यक है।
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संभार - श्री आनन्द किरण
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