समाज आंदोलन कैसे किया जाए?

*समाज आंदोलन कैसे किया जाए?*

           प्रउत विचारधारा को स्थापित करने के लिए व्यवहारिक कार्य योजना पंच शाखा एवं एक समाज आंदोलन है। आंदोलन के गर्भ में सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कार छिपे होते है। यहाँ से नव युग का निर्माण भी होता है। इसलिए समाज आंदोलन का पंचजन्य करने वालों से निवेदन है कि समाज आंदोलन कैसे किया जाए, इसकी एक योजना तैयार की जाए। 

        मैंने प्रउत आंदोलन के इतिहास का गहन अवलोकन कर कुछ प्राप्त किया वह आपके समक्ष रखने जा रहा हूँ। इसे मेरा निजी अध्ययन पत्र ही माना जाए। 

प्रथम कार्य  सदविप्र बोर्ड गठन करना

             प्रउत आंदोलन अथवा समाज आंदोलन के कार्य योजना एवं नीति तैयार करने तथा आंदोलन को अनुशासित, संस्कारित एवं मर्यादित रखने के लिए सदविप्र का बोर्ड का गठन किया जाना चाहिए। इसके दिशा निर्देश में समाज आंदोलन सक्रिय रहेगा। यहाँ एक नकारात्मक सोच यह हो सकती है कि हमारे पास बाबा ने दिए सदविप्र के लक्षण एवं गुण को पूर्ण करने वाला एक भी सदविप्र नहीं है। माना जा सकता है कि उपरोक्त बात सत्य हो लेकिन सदविप्र की इंतजार में आंदोलन को काल को नहीं सौपा जा सकता है। इसलिए मेरा निवेदन है कि जितना प्रतिशत भी सदविप्र बना है उसे लेकर एक सदविप्र बोर्ड का गठन किया जाए। यह प्रउत दर्शन के अनुसार प्रउत आंदोलन को निर्देशित करेंगा। 

द्वितीय कार्य - समाज इकाई का संगठन करना

                 हमारा समाज आंदोलन रचनात्मक आंदोलन है इसलिए सदविप्र बोर्ड के दिशा निर्देश में समाज इकाइयों का गठन करें। ( सामाजिक इकाई एक राजनैतिक संगठन नहीं, एक स्वतंत्र निकाय होती है। NGO का जा सकता है।) यह समाज इकाइयां अपने अपने समाज के इतिहास, सभ्यता, संस्कृति एवं संस्कारों का अध्ययन कर वर्तमान परिदृश्य में समाज आंदोलन एक रुपरेखा तैयार करें। एक समाज की रुपरेखा तैयार होने के बाद समाज आंदोलन का शंखनाद हो जाता है । 

तृतीय कार्य - सांस्कृतिक जागरण करना

समाज को अपनी सभ्यता एवं संस्कृति से परिचित होना परम आवश्यक है सभ्यता एवं संस्कृति की वाहक स्थानीय भाषा, लोक संस्कृति एवं जनगोष्ठी का इतिहास होता है। इसलिए प्रथम स्थानीय भाषा, संस्कृति एवं इतिहास से ओतप्रोत होना होगा। प्रउत आंदोलन का इतिहास एवं व्यवहारिक पक्ष का अध्ययन पत्र कहता है कि समाज आंदोलन के प्रथम चरण में भाषा को लेकर एक आंदोलन की रुपरेखा तैयार हो। 
(1) भाषा सिखे, भाषा पर आधारित विचार, साहित्य, काव्य, नाट्य एवं संगीत गोष्ठी का आयोजन किया जाए। 
(2) सरकारी, गैर सरकारी प्रतिष्ठानों में स्थानीय भाषा में काम करने हेतु कार्मिकों को प्रोत्साहित करे तथा सरकार से स्थानीय भाषा को कार्यकारी भाषा बनाने की मांग की जाए तथा तदनुकूल सरकार पर दबाव भी बनाया जाए। 
(3) प्राथमिक से विश्वविद्यालय तक की शिक्षा का माध्यम स्थानीय भाषा हो इसको लेकर शिक्षण संस्थान का गठन एवं सरकार से ऐसी व्यवस्था करने के लिए मांग एवं दबाव बनाया जाए। 
(4) स्थानीय क्षेत्र में व्यवसायिक, सामाजिक, प्रशासनिक तथा ओर सभी प्रकार के दिशा निर्देश स्थानीय भाषा में रहे। 

चतुर्थ कार्य - रचनात्मक आर्थिक कार्य करना

        समाज आंदोलन के द्वितीय चरण में आर्थिक आंदोलन का अवतरण होता है। इस हेतु समाज इकाई रचनात्मक कार्यक्रम तैयार करें तथा प्रउत दर्शन के आधार पर आर्थिक प्रतिष्ठानों संचालित करने का व्यवहारिक कार्य प्राउटिस्टों, समाज के सदस्यों एवं आंदोलनकारियों द्वारा किया जाए। हम जितने भी प्रउत विचाधारा के आधार पर जीवन जीने का संकल्प लेने वाले अपनी पेशागत कार्य के प्रउत दर्शन के आधार पर करने पर दृढ़ संकल्पित हो तथा काम करने के लिए कटिबद्ध हो जाए। आर्थिक आंदोलन के अगले चरण में हम स्वयं प्रउत विचाधारा पर आधारित आर्थिक इकाइयों का संचालन कर ओरों को भी इस आधार पर कार्य करने के लिए प्रेरित करें तथा अन्ततोगत्वा सरकार के समक्ष एक ऐसा मजबूत दबाव तैयार किया जाए कि सरकार प्रउत विचाधारा के आधार आर्थिक प्रतिष्ठानों को संचालित करने को मजबूर हो जाए। 

पंचम कार्य - समाज के संगठन को मजबूत करना। 

 समाज आंदोलन का तृतीय चरण है। सामाजिक आंदोलन चलाने के एक सामर्थ्यवान आंदोलनकारियों के आवश्यकता होती है। क्योंकि की निर्बल की बात समाज न तो  सुनता है तथा न ही उसकी ओर जाते हैं। भाषा एवं सांस्कृतिक आंदोलन तैयार हुए व्यक्ति आर्थिक आंदोलन के आधार पर मजबूत हो जाएंगे। यह लोग एक सामाजिक आंदोलन चलाने के लिए सामर्थ्यवान है। समाज में सामाजिक जगत में फैली कटुता एवं वैमनस्य की धार को निस्तेज किए बिना समाज आंदोलन में स्थायित्व नहीं आता है। अत: एक सशक्त सामाजिक आंदोलन की आवश्यकता है जो जातिवाद, नस्लवाद, क्षेत्रवाद एवं साम्प्रदायिकता के विरुद्ध लड़ने को कमर कसे तथा एक ऐसे मंच का निर्माण करना जहाँ सामाजिक एकता को सुदृढ़ करने के कार्यों को मूर्त रुप प्रदान किया जा सकें। 

षष्ठम कार्य - सदविप्र शासन की स्थापना करना। 

        समाज आंदोलन के अंतिम पायदान में सदविप्र राज की स्थापना के आंदोलन की आती है। राज की डोर जब तक गैर आदर्शवादियों एवं सिद्धांत विहीन व्यक्तियों के पास रहेंगी। यह लोग अपने संकीर्ण स्वार्थ के लिए समाज को विखंडित करने की करतुत करेंगे। इसलिए जरुरी है कि जितना जल्दी हो सके राज व्यवस्था का भार सदविप्रों को सौंप दिया जाए। 

 उपसंहार में इतना कहना चाहता हूँ कि राजनीति समाज आंदोलन को नहीं चला सकती है। राजनीति समाज आंदोलन को तहस नहस कर सकती है। इसलिए हे समाज आंदोलन को लेकर कमर कसने वालों! राजनीति का रास्ता सुगम एवं सरल दिखाई देता है लेकिन यह समाज आंदोलन को सुफल देने वाला नहीं है। इसलिए जहाँ तक संभव हो सके समाज आंदोलन को वर्तमान दुषित राजनीति से दूर रखा जाए। 

       प्रथम सदविप्र शासक को एक कमजोर एवं विखंडित विश्व नहीं सौपकर;  एक संगठित एवं मजबूत विश्व  सौपें। 
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 श्री आनन्द किरण

 
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