आखिर प्रउत कब आएगा?
विश्व आशाभरी नजर से प्रउत का इंतजार कर रहा है। यदि ऐसा है तो यह प्रश्न आवश्यक हो हो जाता है। आखिर प्रउत कब?
एक पूर्व की क्लास में हमने समझा था कि प्रउत कब? आज वही प्रश्न एक नये अंदाज में हमारे सामने नये ढंग से समझने के लिए आया है कि आखिर प्रउत कब आएगा? प्रउत कब की क्लास में हमने समझा था कि प्रउत गया कब था, जो आएगा। यह भी समझा था कि प्रउत तो प्रणेता द्वारा देने के दिन ही धरातल पर आ गया था, हमें इसलिए यह दिखाई नहीं दे रहा है कि हम प्रउत से दूर बैठे है।
प्रउत प्रारंभिक अध्याय में समझाया गया है कि प्रउत सदविप्र समाज को लेकर आएगा तथा सदविप्रों की कर्म साधना के बल पर आएगा। इसलिए आखिर प्रउत कब आएगा, विषय का गुरुत्व बिंदु है - सदविप्र। प्रउत के कार्यकर्ताओं द्वारा सदविप्र का निर्माण की थीम पर कार्य किया गया है तथा इस पर जितना अधिक काम होगा। उतना ही शीघ्र प्रउत धरती पर हमें दिखाई देगा। सदविप्र का निर्माण एक व्यवहारिक प्रक्रिया है। इसलिए इस पर व्यवहारिक कार्य ही होना चाहिए। सदविप्र का निर्माण विषय सैद्धांतिक नहीं है। यह व्यवहारिक विषय है। इस क्लास को व्यवहारिक अनुप्रयोग के माध्यम से समझा जाता है।
परम पिता बाबा ने सदविप्र के निर्माण व्यवहारिक प्रक्रिया का नाम षोडश विधि दिया गया है। षोडश विधि के पालन करने से एक व्यक्ति में सदविप्र के दर्शन होते है। षोडश विधि पर चलने का प्रयास करते प्रत्येक आनन्द मार्गी को देखा गया था तथा आनन्द मार्ग सभी आचार्यों को अपने दीक्षा भाई में षोडश विधि को संस्कार के रुप में प्रवेश कराते भी देखे गए। आनन्द मार्ग के तात्विकों द्वारा षोडश विधि पर चलने पर बल देते हुए तथा अपनी प्रत्येक क्लास में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से षोडश विधि को अपनी क्लास समर्पित करते दिखा दिए है। आनन्द मार्ग के पुरोधाओं ने भी आनन्द मार्ग समाज को षोडश विधि की ओर ले चलने का भरसक प्रयास किया गया है। इतना होते हुए यदाकदा नकारात्मक मानसिकता का प्राबल्य दिखाई दिया है कि बाबा द्वारा वर्णित गुणों वाला एक भी सदविप्र धरती पर दिखाई नहीं दे रहा है। इस भाव के आते मेरा ध्यान उन सभी लोगों के व्यक्तिगत एवं सामूहिक प्रयास की ओर जाता है कि जब इतना बल एक सदविप्र को गढ़ने की ओर दिया फिर भी एक भी सदविप्र धरती पर विचरण करता हुआ क्यों नहीं दिखाई दे रहा है। यह आखिर प्रउत कब विषय का निर्णायक बिंदु है।
यहाँ कुछ पल रुक कर एक महत्वपूर्ण बिंदु पर मंत्रणा करते हैं। वह बिंदु है - एक सदविप्र का निर्माण किया जाता है अथवा एक सदविप्र जन्मता है। आधुनिक एवं प्रगतिशील विचारक इसका उत्तर देता है कि सदविप्र का निर्माण किया जाता है, जबकि रूढ़िवादी एवं पुरातन विचारक कहता है कि एक सदविप्र जन्म लेता है। यहाँ हम विश्व के कुछ सदविप्रों के उदाहरण लेकर उक्त विषय पर अनुसंधान करेंगे। विश्व के तीन महा सदविप्र भगवान सदाशिव, भगवान श्री कृष्ण एवं भगवान श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का निर्माण नहीं किया गया था तथा यह जन्में भी नहीं थे। यह तो धरती पर एक संकल्प लेकर आए थे। इस उक्ति में ही समस्या का समाधान हो जाता है कि न तो सदविप्र जन्म लेता है तथा न ही सदविप्र का निर्माण किया जाता है। व्यक्ति में सदविप्र का आविर्भाव संकल्प शक्ति के बल पर होता है। आज हम सब सदविप्र बनने की जो कोशिश कर रहे है। वह हमारे अंदर जाग्रत संकल्प शक्ति के बल पर है। अत: स्व: प्रमाणित एवं स्व: सिद्ध होता है कि एक व्यक्ति जो कुछ बनता है वह उसकी संकल्प शक्ति के कारण बनता है। मनुष्य का समाज व्यक्ति के अंदर सदविप्र बनने के संकल्प शक्ति के जागरण का प्रयास करना है।
विषय के अंत में हम विषय के परिणाम पर आते है। प्रउत सदविप्र लाएंगे। सदविप्र का आविर्भाव षोडश विधि से होता है तथा षोडश विधि पर चलने की शक्ति व्यक्ति के संकल्प में रहती है तथा संकल्प बाबा के प्रति विश्वास की प्रगाढ़ता में विद्यमान है। एक सदविप्र का भविष्य स्वर्णिम अक्षरों में लिखा है कि भावी सभ्यता का अग्रदूत है। वह जीवन के सभी क्षेत्र में सफल हुआ है तथा होगा; इस बात कि गारंटी उसे महा सदविप्र दे गए हैं। आखिर प्रउत कब प्रश्न का उत्तर है - हम तथा हमारा समाज सदविप्र बनते ही प्रउत आएगा। इसलिए सबसे पहले हमारे बीच प्रउत लाना ही है तथा लाना ही होगा। आखिर प्रउत तब जब हम तथा हमारा समाज सदविप्र बनेगा।
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सदविप्र का एक निर्णायक लक्षण - यम नियम में दृढ़ एवं भूमा भाव का साधक।
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हस्ताक्षर - श्री आनन्द किरण।
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