सर्वनिम्नप्रयोजनं सर्वेषां विधेयम्

*प्रश्न ➡ प्रउत क्यों?*
_(एक वाक्य में उत्तर दो)_
*उत्तर ➡ प्रउत इसलिए कि यह व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं चिकित्सा की ग्रारण्टी देता है।*

*आज चर्चा का विषय है - प्रउत की मूल नीति का 9 वां सूत्र - युगस्य  सर्वनिम्नप्रयोजनं  सर्वेषां  विधेयम्।*

      भारतवर्ष के ओज के कवि हरिओम पंवार की एक कविता सुनी, जिसका शीर्षक था 'भूख'। उन्होंने ने भूख को मार्मिक शब्दों में व करुणा के रस में चित्रित किया तथा श्रोताओं में इसे मिटाने के लिए वीर रस का संहार किया।  इन सब से अधिक महत्वपूर्ण उनका वह शब्द था कि यदि भूख से कोई व्यक्ति मरता है तो कौन जिम्मेदार है? उनका उत्तर भी उनकी पंक्तियाँ दे रही थी कि जिस भुक्ति में भुख से मरता है, उस भुक्ति का भुक्ति प्रधान जिम्मेदार है। हरिओम पंवार के शब्दों में - "उस जिले का  D.M. जिम्मेदार हो।" उन्होंने एक मांग भी की कि उस D.M. को दंडित किया जाना चाहिए।   उनका दंड बहुत कठिन था - फाँसी।  हम इसका समर्थन नहीं कर सकते है लेकिन भुक्ति प्रधान को जिम्मेदारी देना एक विचारणीय मांग है।

        वर्तमान राजव्यवस्था के D.M. को जिम्मेदारी देना, कवि महोदय का चिन्तन उचित नहीं है। क्योंकि आज का D.M. राजनीति की मजबूरी को लेकर जीता है। लेकिन उसके अधिकार, शक्तियां एवं पद की भूमिका ऐसा करने का न तो आदेश देता है, न ही इतना मजबूर करता है; जितना आज मजबूर दिखाई देता है।
     
       कवि की वेदना को प्रउत के परिपेक्ष्य में ले जाता हूँ। प्रउत ने सर्वप्रथम व्यक्ति को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं चिकित्सा की ग्रारण्टी दी है। *प्रउत व्यवस्था में भूख ही नहीं निर्वस्त्र, बेघर तथा शिक्षा व चिकित्सा के अभाव में मरने वाले के लिए ही नहीं जीने वाले के लिए सीधा समाज को जिम्मेदार ठहराया है। इसके लिए कारवाही के पात्र समाज सचिव, समाज की केन्द्रीय कार्यकारिणी, भुक्ति प्रधान एवं उसकी पर्षद, ब्लॉक, पंचायत एवं गाँव पर्षद एवं उनके मुखिया है।* _भारतवर्ष के वर्तमान में परिदृश्य में सीधा जिम्मेदार PM, CM, DM, SDM व सरपंच जिम्मेदार होता है। जिस प्रकार प्रउत व्यवस्था में प्रथम जिम्मेदारी समाज सचिव की है ठीक उसी प्रकार वर्तमान व्यवस्था में प्रथम जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की है।_
           *यह व्यक्ति के प्रकृतिप्रद नैसर्गिक एवं मूल अधिकार है। यह  इससे व्यक्ति को कोई वंचित नहीं कर सकता है। यह मानना चाहिए कि जब तक व्यक्ति को इससे पृथक रखा जाता है, तब तक धरा पर पाप शक्ति का आधिपत्य है। प्रउत इस व्यवस्था को नहीं चलने देने के लिए वचनबद्ध है।*

     सभ्यता एवं विकास का दावा करने वालों पर हंसी आती है कि आर्थिक विषमता के इस परिवेश में सभ्यता एवं विकास की डींग हांकना मूर्खता है। सच्चे प्रगति तब मानी जाएगी, जब निम्न आवाज एवं उच्च आवाज का तंरग दैर्ध्य (अन्तर) अधिक न हो। तंरग दैर्ध्य को शून्य करने की बात कहने वाले समाज को मौत के मूहँ में धकेल रहे है। अन्तर रहेगा तब उस अन्तर को कम करने की नीति बनेगी तथा समाज विकास की ओर आगे बढ़ेगा। तंरग दैर्ध्य बहुत अधिक होने पर समाज में विषमता की खाई गहरी होती है तथा इससे समाज में अपराध बढ़ते हैं। *समाज को मृत्यु से बचाने एवं समाज में अपराधों पर स्थायी रोक लगाने के लिए प्रउत ने 10 वें (अतिरिक्तं  प्रदातव्यं  गुणानुपातेन।) व 11 वें (सर्वनिम्नमानवर्धनं  समाजजीवलक्षणम्।) सूत्रों की रचना की।*
      
         रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं चिकित्सा, सभी को उपलब्ध कराने की ग्रारण्टी लेकर प्रउत समाज को निष्कर्मणीय नहीं बनाने जा रहा है।  प्रउत व्यक्ति की न्यूनतम आय, इतनी तो उपलब्ध करवाएगा जिससे व्यक्ति अपनी न्यूनतम आवश्यकता को आसानी से पूर्ण कर सकता है। *यहाँ प्रउत नागरिक को क्रयशक्ति का मूल अधिकार देता है।*
        न्यूनतम आवश्यकता पूर्ण करने के क्रम में *प्रउत सभी नागरिकों को समान, अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा व चिकित्सा उपलब्ध करवाएगा।* व्यक्ति की शिक्षा व चिकित्सा की चिंता उसके व उसके परिवार की नहीं अपितु समाज की जिसकी सीधी जिम्मेदारी समाज सचिव की है। वह उसे भुक्ति प्रधान, ब्लॉक, पंचायत एवं ग्राम प्रमुख के माध्यम से पुरी करवाएगा।
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लेखक एवं विश्लेषक ➡ श्री आनन्द किरण


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