प्रउत की स्थापना में P. U. व V.S.S की भूमिका

प्रउत  की स्थापना में P. U. व V.S.S की भूमिका
         मेरे आनन्द मार्ग की यात्रा के आरंभिक दिनों में एक वरिष्ठ मार्गी एवं मेरे आनन्द मार्ग स्कूल के प्रथम शिक्षक ने मुझे बाताया था कि बाबा ने कहा "प्रउत को स्थापित करने के लिए प्रथम व द्वितीय विश्व देशों में 75 प्रतिशत प्राउटिस्ट यूनिवर्सल (P.U.) तथा  25 प्रतिशत वोलेंटियर आफ सोसियल सर्विस (V.S.S.)  की भूमिका रहेगी तथा तृतीय विश्व देशों में एकदम उलटा 25 व 75 प्रतिशत के अनुपात में रहेगा।"  अत: विषय गुरुत्व पूर्ण हैं कि प्रउत की स्थापना में प्राउटिस्ट यूनिवर्सल (P.U.) तथा वोलेंटियर आफ सोसियल सर्विस (V.S.S.) की क्या भूमिका रहेगी?
           नये मार्गियों व प्राउटिस्टों को जानकारी दी जाती है कि प्राउटिस्ट यूनिवर्सल नामक संस्थान का गठन श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा विश्व को प्रउत पढ़ाने एवं स्थापित करने के लिए की गई थी। यह संस्थान आनन्द मार्ग की सहगामी संस्था के रूप में प्रउत को समझने व समझाने तथा प्रउत व्यवस्था को स्थापित करने हेतु अपने पांच फैडरेशन एवं समाज आंदोलन के माध्यम से कर रही है। दूसरी ओर वोलियंटर आफ सोसियल सर्विस नामक संगठन व्यक्ति के साहसिक कार्यों के प्रोत्साहन एवं सेवावृति को सुनियोजित रुप से समाज कल्याणार्थ लाने हेतु आयी थी। वर्तमान में वैधानिक कारणों से निष्प्रभावी है। लेकिन व्यक्ति की सेवावृति एवं साहसिक कार्य सदैव समाज हित में अग्रसर है। वर्तमान में आनन्द मार्ग सेवादल(ASD) नामक संगठन मनुष्य के उपरोक्त गुणों का विकास कर रहा है। यह कार्य प्रउत व्यवस्था की स्थापना में सहायक है।
         प्राउटिस्ट यूनिवर्सल जहाँ वैचारिक जागरण के माध्यम से समष्टि एवं व्यष्टि जगत में एक सुव्यवस्था देने का प्रयास कर रहा है तथा वोलियंटर आफ सोसियल सर्विस साहसिक कार्य, खेलकूद एवं सेवा भाव से कार्य कर व्यष्टि व समष्टि जगत में सुव्यवस्था स्थापित करने का प्लेटफार्म तैयार करता है। यह न केवल प्लेटफार्म तैयार करने का कार्य करता है अपितु सुव्यवस्था के प्राथमिक एवं प्रारंभिक सूत्रों को परिभाषित, परिमार्जित, प्रमाणित एवं स्थापित करता है। इसी धरा पर प्रउत का वटवृक्ष जन जन ऊर्जा एवं छाया प्रदान करेंगा।
          साहसिक मनोभाव व सेवाव्रत तथा वैचारिक उन्नयन का संयोग कार्य को सरलता व सुगमता से संपन्न करता है। सुव्यवस्था को प्रतिफलित करने की साधना में रत साधक को उपर्युक्त गुणों का उचित एवं सुसंतुलित उपयोग कर कार्य को कुशलता पूर्वक करने व फलदायी बनाने पर अपने हस्ताक्षर करने चाहिए।
       मेरे प्रथम शिक्षक एवं मार्ग वरिष्ठ साधक द्वारा बतायी गई बाबा बात पर मंथन करते है। प्रथम विश्व देश अर्थात तथाकथित विकसीत देश जो पूंजीवाद के माध्यम से अपने भविष्य को लिख रहे। उनके विचार का खुलापन नये विचारों के उदगम में अधिक सुअवसर देता है। ठीक इसी प्रकार द्वितीय विश्व देश अर्थात साम्यवादी देश। वहाँ एक वैचारिक क्रांति की मानसिकता अपना चुके लोग नये विचारों को अपने लिए उपयोगी समझकर जल्दी ही ग्रहण कर लेते है। अत: इन दोनों ही विश्व में वैचारिक चिन्तन की शिक्षा देने के कौशल विकसित करने चाहिए। एक कौशल से कार्य नहीं होने पर एकाधिक कौशलों का विकास करना चाहिए। तृतीय विश्व देश अर्थात विकासशील देश। यहाँ व्यक्ति विचारपूर्ण मानसिकता से अधिक भावप्रवण मानसिकता से अधिक चलते है। इसलिए यह वैचारिक क्रांति की भाषा कम तथा साहसिक एवं सेवामूलक भाव से जल्दी होकर संघबद्ध होकर चलते है। जहाँ प्रथम व द्वितीय विश्व में देशों मे विचारपूर्ण मानसिकता का अधिक विकास होने के कारण उनके समक्ष विचारों विशेष कौशल से परोसने पर सहज ही ग्रहण कर लेते है। वही तृतीय विश्व देश भावप्रवणता के आधिक्य के एक महाभाव के सर्जन से सुकर्म कर देते है। प्रथम दृश्य में भी भावप्रवणता को विचारपूर्ण मानसिकता पर भारी नहीं होने देने के लिए साहसिक व सेव्यभाव के कार्य को अल्प मात्रा में ही सुव्यवस्थित करने होंगे। तृतीय विश्व अर्थात द्वितीय दृश्य में भी भावप्रवणता के साथ उन्नत मानसिकता का निवास है। वह सुविचार को ग्रहण कर देती है। इसलिए विचार मंथन का कार्य भी द्रुतगति से चलते रहने देना चाहिए।
        उपसंहार में यही लिखा जा सकता है कि जहाँ विचारों के दोहन से कार्य सुगम हो सकता है वहाँ प्राउटिस्ट यूनिवर्सल को अधिक से अधिक परिचय देना चाहिए तथा जहाँ भावनाओं को सुकर्म में लगाने की आवश्यकता है। साहसिक एवं सेव्यभाव को अधिक से अधिक उपयोग कर चलना चाहिए

निवेदक

➡ श्री आनन्द किरण 

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1 टिप्पणी:

  1. NOTE :
    And one thing I told you in a Mahácakra – you should not think that Parama Puruśa is your object and you are the subject, because He is the Supreme centre of all objectivities. He cannot be your object; you are His object. Each and every entity in this Universe is His object. He cannot be your object. While doing Sádhaná, while doing your meditation, you should always think, remember, that whatever you are doing, He is seeing. That is, you are the object, He is the subject. He sees whatever you do. He sees whatever you think.
    To think is to speak within the mind. Whatever you think, whatever you speak within your mind, is then and there tape-recorded by Him. So nothing remains secret. So while doing your meditation and other forms of Sádhaná, you should always remember that He is your Supreme Subject and you are His object.
    ”Shrii Shrii Anandamurti “             
    (Ánanda Vacanámrtam XII, 33)

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