**प्रउत अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ कौन-कौनसी है?**
प्रगतिशील उपयोग तत्व एक सामाजिक आर्थिक दर्शन है। यह सर्वजन हितार्थ व सर्वजन सुमार्ग प्रचारित किया गया है। अत: आवश्यक हो जाता है कि प्रउत अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषताएं कौन-कौनसी है?
(1) प्रउत एक गतिशील समाज चक्र प्रदान करता है - आर्थिक जगत में कार्ल मार्क्स ने प्रथम बार आर्थिक अवस्थाओं का चिंतन दिया था। जो सर्वहारा अधिनायक तंत्र में जाकर लुप्त हो जाता था। प्रउत ने घूर्णनशील समाज चक्र दिया है। जो परिक्रांति के बाद भी घुमता रहता है। इस चक्र की सबसे बड़ी विशेषता यह भी है कि इसके चक्र में सदविप्र रहकर चक्र के नियंत्रण का कार्य करता है। यह धारण अर्थशास्त्र में एक क्रांतिकारी अध्याय की शुरुआत करता है, क्योंकि सदविप्र आध्यात्मिक नैतिकवान व्यष्टि होते है। अर्थव्यवस्था का नियंत्रण आध्यात्मिक नैतिकवान व्यष्टियों के द्वारा किया जाना से अर्थव्यवस्था का अधिकतम सुख प्राप्त होता है।
(2) प्रउत प्रकृति की विचित्रता को अंगीकार कर अर्थव्यवस्था का निर्माण करता है - एडम स्मिथ ने व्यक्ति को कार्य करने के लिए स्वतंत्र छोड़ लेकिन प्राकृत विचित्रता को रेखांकित कर आर्थिक सूत्र प्रदान नहीं कर प्रउत ने अर्थव्यवस्था के निर्माण के प्रथम पायदान पर विचित्रता को अंगीकार किया तथा सभी सूत्र व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करते समष्टि जगत में एक सुव्यवस्था स्थापित करने के लिए प्रदान किए हैं। यहाँ श्री प्रभात रंजन सरकार यथार्थ एवं आदर्शवाद का समन्वयन कर अर्थशास्त्र को परिभाषित करते है। अर्थशास्त्र की प्रचलित परिभाषाएं- धन का विज्ञान, सामाजिक कल्याण का विज्ञान, मानवीय व्यवहार का विज्ञान, यथार्थ का विज्ञान व आवश्यकता विहिन विज्ञान से प्रउत अर्थशास्त्र को व्यक्ति की विभिन्नता एवं समाज की आवश्यकता के विज्ञान के रूप में परिभाषित किया है। यहाँ व्यक्ति का व्यक्तित्व निखरता है तथा समाज में सुव्यवस्था कायम होती है। अर्थशास्त्र की सभी मांगें- धन, कल्याण, व्यवहार, यथार्थ व आवश्यकता को पूर्ण करता है। यहाँ आर्थिक एवं अनार्थिक क्रियाओं के समीकरण को भी संतुलित किया गया है।
(3) प्रउत व्यक्ति की न्यूनतम आवश्यकता पूर्ण का वचन देता है - प्रउत, विश्व की प्रथम एवं एकमात्र अर्थव्यवस्था है; जो नागरिकों को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा व चिकित्सा की व्यवस्था करने का वचन देती है। यह न केवल वचन देती है अपितु पूर्ण करने की सुनिश्चितता भी प्रदान करती है। यहाँ प्रश्न होता है कि यह कैसे संभव है? प्रउत में शिक्षा एवं चिकित्सा तो पूर्णतया निशुल्क रहती है मकान लिए स्थानीय सामाजिक इकाई एक सुनियोजित योजना बनाती है व तदनुकूल रसद भी उपलब्ध कराती है।तथा रोटी एवं कपड़ा की व्यवस्था करने के लिए उसके योग्य आय का निर्धारण कर, उस आय को प्राप्त कर सके उसके सम्पूर्ण प्रावधान करती है। एक प्रश्न यह भी उठता है कि प्रउत व्यवस्था रोटी, कपड़ा एवं मकान की गुणवत्ता कैसी रखेगा? प्रउत व्यवस्था में प्रत्येक नागरिक को सुपाच्य व पौष्टिक आहर, समाज की मर्यादा के अनुकूल वस्त्र एवं एक आदर्श मकान मिलता है। शिक्षा एवं चिकित्सा की गुणवत्ता उच्च स्तर की रहती है। (स्रोत - एक आनन्द मार्गी के आहर एवं जीवन शैली से)
(4) प्रउत गुणी जनों का सम्मान करता है - प्रचलित आर्थिक नियमों में चिकित्सक, शिक्षक व सन्यासी को अनार्थिक घटक मानकर अर्थव्यवस्था उन्हें छोड़ देती है जबकि प्रउत उनके आदर, सम्मान एवं मूल्य की परख रखती है। देश की लोक कल्याणकारी व्यवस्था एवं समाज में शिक्षा व चिकित्सा की उपादेयता के रहते उन्होंने सम्मान पाया तथा स्वयं अपनी सेवाओं को बेचकर आर्थिक इकाई के रूप में परिचय दिया है; अर्थव्यवस्था की ओर समुचा प्रबंधन नहीं किया है। प्रउत उनकी उपयोगिता को जानकर उनके योग्य व्यवस्था देती है तथा उनको एक आर्थिक इकाई के रुप में कार्य करने का अवसर दिए बिना उनकी आवश्यकता में विशिष्टता को निखारती है। यहाँ टके सेर भांजी, टके सेर सब कुछ नियम नहीं है। यह अंधेरी नगरी चौपट राजा की व्यवस्था है। जिसको प्रउत अंगीकार नहीं करता है। अन्य शब्दों में एक किसान, मजदूर, व्यपारी, उद्योगपति, सहायक, लिपिक अधिकारी इत्यादि की आय में अन्तर होता है, लेकिन उसका न्यूनतम एवं उच्चतम मापक निर्धारित किया रहता है। इसके अन्तर की भी सीमा रेखा होती है।
(5) प्रउत समाज के मानदंड मापदंड वृद्धिमान की व्यवस्था देता है - प्रउत व्यवस्था में वस्तु की कीमतों में कमी नहीं होगी लेकिन महंगाई शब्द समाज का परिचय नहीं होता है। यह व्यक्ति के जीवन स्तर में उत्तरोत्तर वृद्धि करता है। यद्यपि व्यक्ति की क्रय क्षमता में वृद्धि के कारण कीमत यंत्र अप्रभावी रहता है तथापि वस्तु व सेवाओं के मूल्य में स्थायित्व नहीं रहता है। जीवन स्तर, मूल्य में स्थायित्व रहने से व्यवस्था बाधित हो जाती है तथा रुग्ण होकर मृत्युगामी हो जाती है।
(6) प्रउत अधिकतम आय की सीमा रेखा निर्धारित करता है - प्रउत समाज के समस्या की मूल वितरण की दोष पद्धति समझते हुए, उसके मूल दोष जमाखोरी को खत्म करता है तथा समाज की अनुमति के बिना संचय को अकर्तव्य घोषित करता है।
(7) प्रउत ने चरमोत्कर्ष एवं विवेकपूर्ण वितरण प्रणाली को स्वीकार किया है - प्रउत जगत की संपदा एवं व्यक्ति की क्षमता के चरम उपयोग का हिमायती है तथा संपदा के चरमोत्कर्ष से प्राप्त सामग्री का विवेकपूर्ण वितरण करता है। यहाँ विवेकपूर्ण में समानता एवं मैं जीतता जाऊँ और हारे उसमें मेरा दोष नहीं घटक कार्य नहीं करता है। यह शत प्रतिशत रोजगार एवं सम्पूर्ण विकास की अवस्था है। यहाँ प्रश्न होता है कि सम्पूर्ण रोजगार का अर्थ क्या है? बुढ़े, बच्चे, रोगी एवं गर्भवती महिला भी रोजगार करेंगी? इसलिए प्रउत संभावनाओं के उपयोग में सुसंतुलंन का सूत्र प्रतिपादित करता है। इनसे उनकी क्षमता के अनुसार शारीरिक मानसिक व आध्यात्मिक सेवाएं ली जाएगी। विशिष्टता को प्रउत अंगीकार कर रोगी एवं पागल का भी उपयोग करेंगा।
(8) प्रउत देश, काल, पात्र के अनुसार उपयोगिता में परिवर्तन को स्वीकार किया है - शत प्रतिशत रोजगार के संबंधित प्रश्नों यह जबाब देता है। पात्र के अनुसार भी उपयोगिता परिवर्तन करनी पड़ती है। देश व काल तो विषय के अनुकूल है।
(9) प्रउत सम-समाज तत्व के सिद्धांत पर कार्य करता है - "समाज की सम्पूर्ण मानव जाति को साथ लेकर चलते हुए धर्म पर आधारित शोषण-विहिन समाज की स्थापना का जो प्रयास है, उसी को मैंने सम-समाज तत्व का नाम दिया है।" - श्री प्रभात रंजन सरकार। बाबा ने यह भी कहा है कि सम-समाज के आधार पर नवीन समाज का गठन करना हमारा परम कर्तव्य है।
(10) संगच्छध्वं की प्रतिष्ठा के लिए आया है 'प्रउत'- बाबा ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि संगच्छध्वं के प्रकृति तात्पर्य की प्रतिष्ठा के लिए ही मैंने 'प्रउत' तत्व को दिया है। संगच्छध्वं का है सभी को साथ लेकर चलना।
(11) प्रउत सर्वजन हित व सुख के लिए प्रचारित किया गया है - प्रउत को प्रणेता ने सब के कल्याण के लिए प्रचारित किया है। इस विश्व सृष्टि के कण-कण का कल्याण इस में निहित है। इसलिए प्रउत सबकी अपनी निजी संपदा है। यह भाव जन-मन में जागृत करना प्रउत के सच्चे सिपाही का कर्तव्य है।
(12) प्रउत आर्थिक प्रजातंत्र लेकर आएगा - प्रउत की सर्वमान्य प्रतिष्ठा होते ही बहुत कुछ के साथ आर्थिक प्रजातंत्र को लेकर आएगा। आर्थिक प्रजातंत्र का अर्थ है आर्थिक जगत जन सहभागिता को स्थापित करना।
(13) प्रउत आर्थिक विकेन्द्रीकरण की बात कहता है - प्रउत अर्थ शक्ति के विकेन्द्रीकरण का रचनात्मक कार्यक्रम लेकर आया है। अर्थ का एक हाथ में रहना सर्वजन के सुख के उचित नहीं है। अतः अर्थ को विकेन्द्रीकरित करना आवश्यक है।
(14) प्रउत सहकारी व्यवस्था को सर्वोत्तम मानता है - प्रउत के अनुसार वितरण की सभी पद्धति में से सहकारी पद्धति सर्वोत्तम है। बाबा लिखते है कि सहकारी उद्योगों की सफलता, नैतिकता, सक्षम व कुशल प्रशासन तथा आमजनता के मन में सहकारी व्यवस्था के प्रति आत्म स्वीकृति इन तीन तत्वों पर निर्भर करती है। प्रउत कृषि सहकारी आधार पर करने की योजना भी देता है। बैंकिंग व्यवस्था को भी सहकारी आधार पर संचालन की व्यवस्था लेकर आया है प्रउत।
(15) प्रउत वस्तु-विनिमय को स्वीकार करता है - प्रउत कहता है कि सभी आत्मनिर्भर सामाजिक आर्थिक इकाइयों(समाजों) के बीच यथा संभव वाणिज्य-वस्तु विनिमय ही होना चाहिए।
(16) प्रउत आयकर मुक्त व्यवस्था देता है - प्रउत की कराधान प्रणाली में एक बार उत्पादन शुल्क के अलावा सभी करों मुक्त समाज देने की व्यवस्था लेकर आया है। आयकर नाम व्यवस्था प्रउत व्यवस्था में नहीं है।
(17) प्रउत चार प्रकार की अर्थनीति को स्वीकृति देता है - गण अर्थनीति, मानस अर्थनीति, वाणिज्यिक अर्थनीति व साधारण अर्थनीति की यह चार धाराएँ विकसित अर्थव्यवस्था कहकर पुकारी जाती है। प्रउत इन स्वीकृति प्रदान करता है।
(18) प्रउत व्यवस्था 'प्रमा' त्रिकोण संतुलित करती है - प्रउत व्यवस्था में व्यष्टि व समष्टि जगत में प्रमा संतुलन की अवस्था में रहता है। भौतिक, मानसिक व आध्यात्मिक जगत में संतुलन प्रमा त्रिकोण नाम दिया गया है। प्रउत व्यवस्था ही इसका सुसामजस्य स्थापित करता है।
(19) प्रउत व्यवस्था में कृषि को उद्योग का दर्जा प्राप्त है - वर्तमान सरकारी तंत्र ने कृषि के साथ छल किया है। किसान को अन्नदाता कहकर भी परिस्थितियों से लड़ने के लिए अकेला छोड़ दिया है। कृषि को भी बिजली, खाद, बीज, सिंचाई इत्यादि उलब्ध कराने प्राथमिकता प्रदान करनी है तथा अपनी उपज का मूल्य निर्धारण का अधिकार मिले, इसलिए कृषि को उद्योग का दर्जा प्राप्त होना चाहिए। प्रउत यह प्रदान करता है।
(20) प्रउत आध्यात्म पर आधारित अर्थव्यवस्था है - विश्व में प्रउत एक मात्र व्यवस्था है जो आध्यात्म को स्वीकार करती है तथा मनुष्य की जीवन लक्ष्य परम पद प्राप्त करने के अवसर उपलब्ध कराती है।
(21) प्रउत नव्य मानवतावादी अवधारणा को लेकर चलती है - प्रउत नव्य मानवतावादी अवधारणा लेकर चलती है। उसका दर्शन मनुष्य ही नहीं सम्पूर्ण सृष्टि के जीव अजीव के लिए है।
(22) प्रउत वैश्विक दृष्टिकोण की अवधारणा है - प्रउत किसी राष्ट्र अथवा जाति की सीमा नहीं बांधा जा सकता है। यह वैश्विक दृष्टिकोण तथा मानव समाज की संपदा है।
प्रउत अर्थव्यवस्था की कुछ अन्य विशेषताएं:
(23) प्रउत की कृषि नीति का मूल रुप - प्रउत अर्थ व्यवस्था कृषि को उद्योग की दर्जा देने का पक्षधर है। कृषि सहायक उद्योग और कृषि आधारित उद्योग की स्थापना कर 40% लोगों को रोजगार मुहैया कराना आसान है।*
(24) प्रउत में औद्योगिक विकास की अवधारणा - : प्रउत ने औद्योगिक उत्पादन की व्यवस्था को तीन भागों में विभाजित किया है -
a) मूल उद्योग: इसका संचालन व प्रवंधन स्थानीय एवं क्षेत्रीय सरकार द्वारा किया जाएगा।
b)मध्यम उद्योग: सहकारी व्यवस्था द्वारा संचालित
c)लघु उद्योग: इनका स्वामित्व व्यष्टिगत हाथों में होगा।
(25) प्रउत आधुनिकीकरण के पक्ष में है - : प्रमुख कृषि और उद्योगों को ज्यादा से ज्यादा आधुनिकीकरण का समर्थन करता है। लेकिन यहां ध्यान में है कि आधुनिकीकरण एवं मशीनीकरण से बेरोजगारी न बढ़े और जन साधारण को शत प्रतिशत रोजगार मिले जो पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में पूर्णतया असम्भव है।
(26) प्रउत की प्रखंड स्तरीय योजना -: प्रउत की सामाजिक आर्थिक व्यवस्था में प्रखंड स्तरीय योजना परिषद ही योजना निर्माण की सबसे निम्न स्तरीय संस्था होगी।
(27) प्रउत क्रय क्षमता में वृद्धि की व्यवस्था देता है - :प्रउत की उत्पादक अर्थव्यवस्था का सर्वोपरि मौलिक लक्षय जनसाधारण की क्रय क्षमता को बढ़ाना है । इस व्यवस्था से सहकारी पद्धति एवं आर्थिक विकेंद्रीकरण के द्वारा वस्तुओं की कीमतों का नियंत्रण स्वत: ही आसान हो जाएगा।
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विशेष - इसमें श्री कृपा शंकर पाण्डेय जी का सहयोग रहा है।
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