भारतवर्ष का आर्थिक इतिहास

🌹धर्मयुद्ध मंच से 🌹
   ®श्री आनन्द किरण®
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©भारतवर्ष का इतिहास-03©
   ( भारतवर्ष का आर्थिक इतिहास )
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           भारतवर्ष को सोने की चिड़िया व घी दूध की बहती नदियों का देश कहा जाता था। अत: सिद्ध होता है कि भारतवर्ष की अर्थव्यवस्था समृद्धिशाली रही है। विदेशी यात्रियों के वृतांत भी भारतवर्ष आर्थिक समृद्धि की गवाही देते हैं। भारतवर्ष की आर्थिक समृद्धि का इतिहास लिखकर समृद्धि कहानी कहने वाले बिन्दुओं को रेखांकित किया जाना आवश्यक है।
          आदिम युग के मानव ने उत्पादन एवं वितरण के अध्याय को नहीं लिखा था। पहाड़ी युग के मानव ने समाज रचना के प्रथम अध्याय की रचना की थी। यद्यपि इस युग में आर्थिक नियमों की खोज नहीं हुई थी, तथापि आर्थिक युग सूत्रपात हो गया था। रोटी, कपड़ा, आवास, शिक्षा एवं चिकित्सा के मूल्यों का परिचय मिल गया था। अत: इस युग भारतवर्ष के आर्थिक इतिहास की भूमिका बंधन के रूप चित्रित किया जा सकता है।
        ग्राम स्वराज्य का युग भारतवर्ष के आर्थिक इतिहास का प्रथम अध्याय है। इस युग में कार्य विभाजन का नियम लागू किया गया था। शूद्र, क्षत्रिय, विप्र एवं वैश्य के रूप में चार कामगारों के वर्ग बनाए गए थे। इनके संचालन की संस्था का निर्माण हुआ था। जिसे गणराज्य नाम दिया गया था। भगवान सदाशिव द्वारा प्रदान की गई गण व्यवस्था एक प्रशासनिक व्यवस्था थी। जिसका प्रभाव ग्राम स्वराज्य की आर्थिक व्यवस्था पर पड़ा।
      नगरीय सभ्यता का युग, अर्थ व्यवस्था की उन्नति के प्रमाण देता है। इस युग में कृषि, उद्योग एवं व्यपार के साथ सेवाओं महत्व को भी अंगीकार किया। माना जाता है कि भारतवर्ष में आर्थिक इकाइयां स्वतंत्र थी। राजनीति मात्र उद्देश्य एवं विकास की योजना बनाकर आर्थिक इकाई के समक्ष रखती होगी। उसे अमली जामा पहनाने का कार्य आर्थिक विकास श्रेणियों का रहा होगा।
         सांस्कृतिक जागरण के युग में राजतंत्र ने मजबूती से पांव जमा लिए थे अत: आर्थिक स्वायत्त इकाइयों के अधिकार संकुचित हुए। फिर भी इस युग में व्यपार, कृषि व उद्योग के विकास का अधिकार आर्थिक इकाइयों के पास ही था।
         विदेशी व्यपारी सुलतानों के युग में राजनैतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक दोहन हुआ। आर्थिक जगत में इसका प्रभाव न्यूनतम होने के प्रमाण है। विदेशी कंपनी व्यपारियों के युग में उपरोक्त दोहन के साथ आर्थिक दोहन भी किया गया। जिसके चलते भारतवर्ष मे घी दूध की नदी धारा सुख गई एवं सोने की चिड़िया उड़ गई। स्वतंत्र भारत के राजनेता व्यपारी ने भारत निर्माण की गणित पाश्चात्य देशों की अर्थनीति से किया। जो कई आर्थिक समस्याओं को लेकर खड़ा है।
        भारतवर्ष के भविष्य का स्वर्णिम सूर्य उदय अवश्य होगा जो भारतवर्ष का खोया आर्थिक सम्मान पुनः देगा। इसके लिए वर्तमान भारतवर्ष की सरकारों को आर्थिक नीतियों को बदलना होगा।
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श्री आनन्द किरण@भारतवर्ष का इतिहास।

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