एक प्राउटिस्ट अपने गाँव अथवा वार्ड के लिए क्या कर सकता है?

एक प्राउटिस्ट अपने गाँव अथवा वार्ड के लिए क्या कर सकता है?

       प्रउत दर्शन में योजना निर्माण का क्रम निचे से उपर की ओर जाने का उल्लेख मिलता है। प्रखंड स्तरीय योजना प्रउत दर्शन का सबसे महत्वपूर्ण व समझने योग्य विषय है। गाँव विकास की सबसे छोटी एवं निचली इकाई है। उसी पर प्रखंड, जिला, समाज इकाई, राज्य, देश, विश्व एवं सम्पूर्ण मानव समाज टिका हुआ है।
         भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी ने राजनीति से गाँवों को स्वावलम्बी बनाने की मांग की थी। केन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था को धारण करके खड़ी राजनीति की झोली में गाँवों को स्वावलम्बी बनाने की योजना नहीं है। अत: आज गाँव राजनैतिक भिक्षावृति पर अपने विकास का स्वप्न देख रहे हैं। चूंकि प्रउत दर्शन विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था प्रदान करता है। अत: यहाँ गाँव की खुशहाली का स्वप्न सकार होता है। इसलिए विषय प्रासंगिक हो जाता है कि एक प्राउटिस्ट अपने गाँव तथा वार्ड के लिए क्या कर सकता है?
          प्रउत अर्थव्यवस्था में कार्य करने की एक नीति है -  इकाई को जानो, योजना बनाओ तथा जनसेवा करो।  इसके तहत एक प्राउटिस्ट को अपने गाँव को सम्पूर्ण रूप से जानना होगा।(गाँव का इतिहास, संस्कृति, भूगोल, प्राकृतिक परिवेश तथा सामाजिक स्थिति इत्यादि सभी जानकारी पूर्ण रूप हासिल करनी होगी।) इसके बाद प्रउत दर्शन में वर्णित संतुलित अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए एक योजना तैयार करनी होगी। इस कार्य में गाँव के प्रबुद्ध जनों की मदद एवं सहभागिता प्राप्त की जा सकती है। ऐसा करने से एक प्राउटिस्ट मान बढ़ेगा तथा गाँव के लिए बेहतर विकास योजना का निर्माण होगा। तत्पश्चात एक प्राउटिस्ट को तीसरा साधन जनसेवा को अपनाना होगा। इसके माध्यम से सभी का दिल जीता जा सकता है तथा अपने योजना से जन-जन को परिचित करवाया जा सकता है। जैसे जैसे एक प्राउटिस्ट की गाँव में प्रतिष्ठा तथा प्रभाव में वृद्धि होगी, वैसे वैसे जन सहयोग एवं सहभागिता में वृद्धि होगी। इसे लेकर एक रचनात्मक कार्यक्रम लेना होगा। उस प्रोजेक्ट को पूर्ण करने के लिए जी जाना से मेहनत करनी होगी। इस कार्य से आनन्द मार्ग शास्त्र में वर्णित वैश्योचित्त सेवा संपन्न होगी।
        जब एक प्राउटिस्ट का रचनात्मक प्रोजेक्ट सुदृढ़ता से स्थापित हो जाएगा। तब एक प्राउटिस्ट के उत्तरदायित्व में वृद्धि होगी एवं उसे जन जागरण के माध्यम से गाँव को अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार करना चाहिए। यहाँ प्राउटिस्ट एक बात स्मरण रखनी होगी कि गाँव की राजनीति से स्वयं को पृथक रखना है, क्योंकि वर्तमान राजनीति न तो आपकी आकांक्षा को पूर्ण करेंगी  तथा न ही जनता की खुशहाली को पूर्ण करने में सक्षम है। इस परिस्थिति में राजनीति को हाथ में लेने से आपको बदहाली एवं बदनामी गले लगानी पड़ सकती है। यदि अति आवश्यक हो जाए तब भी राजनीति में प्रत्यक्ष भागीदारी से अपने को दूर रखते हुए सुपात्र को राजनीति में भेजने की भूमिका निवहन करना, एक सदविप्र का कर्तव्य है। जिससे कोई परहेज नहीं है।
      पुनः विषय पर लौटते है एक प्राउटिस्ट को अपने गाँव के लिए कुछ कर गुजरने के उपर्युक्त कार्यक्रम के द्वारा गाँव को अपने पैरों पर खड़ा कर, अपने हक की आवाज बुलंद करने तथा अपनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार करना, एक प्राउटिस्ट का विप्लवी कार्य होगा।
        नगर में रहने वाला एक प्राउटिस्ट उपरोक्त कार्यक्रम के माध्यम से अपने वार्ड व   शहर को मजबूत कर अपने शहर की खुशहाली का स्वप्न सकार कर सकता है। गाँव जब अपनी खुशहाली की कर्म रेखाएँ खुद खिंच ले, तब एक प्राउटिस्ट को प्रखंड की योजना तैयार कर अपना कार्य अनवरत जारी रखना होगा। इस प्रकार जिला तथा अन्ततोगत्वा  समाज इकाई को आत्म निर्भर बनाने का धर्म एक प्राउटिस्ट को निभाना ही होगा। जब समाज इकाई आत्म निर्भर बन जाएगी तब उस समाज में  प्रउत युग आएगा। इससे पूर्व एक प्राउटिस्ट द्वारा किया कार्य प्रउत युग लाने का प्रयास है।
       मैं पुनः एक प्राउटिस्ट को गाँव ले चलता हूँ। गाँव को खुशहाल बनाना एक प्राउटिस्ट का नैतिक कर्तव्य है तथा सामाजिक धर्म है। यहाँ के लोगों की शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास को सुनिश्चित करना एक आनन्द मार्गी का निजी कर्तव्य है। एक प्राउटिस्ट को इसमें योगदान देना ही होगा।
      एक प्राउटिस्ट को स्वावलम्बी ग्राम के निर्माण में  लगने में देर नहीं करनी चाहिए। मैं तो कहता हूँ कि आज विश्व में जितने भी प्राउटिस्ट है, उन्हें एक-एक गाँव गोद ले लेना चाहिए।
         यहाँ एक प्रश्न आया कि अपनी रोटी की चिंता करता प्राउटिस्ट गाँव की समृद्धि की गाथा कैसे लिख सकता है? एक प्राउटिस्ट को रोटी की व्यवस्था गाँव में रचनात्मक प्रोजेक्ट को स्थापित करते ही पूर्ण होने लग जाएगी तथा कपड़ा, मकान, शिक्षा एवं चिकित्सा की चिंता ज्यौं ज्यौं गाँव मजबूत होगा पूर्ण होती जाएगी।
             यदि कुछ नहीं कर सकते हो तो गाँव-गाँव, गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ जा जाकर प्रउत के नारे, सिद्धांत तो लिख सकते हो। आपकी यह कर्म साधना आने वाले युग के काम आएगी।
हे प्राउटिस्टों! यदि तुम गाँव में कुछ करना चाहते हो तो  प्रउत  कहता है कि गाँव को जानो, योजना बनाओ तथा जनसेवा करो।


➡ श्री आनन्द किरण

Previous Post
Next Post

post written by:-

1 टिप्पणी:

  1. NOTE :
    And one thing I told you in a Mahácakra – you should not think that Parama Puruśa is your object and you are the subject, because He is the Supreme centre of all objectivities. He cannot be your object; you are His object. Each and every entity in this Universe is His object. He cannot be your object. While doing Sádhaná, while doing your meditation, you should always think, remember, that whatever you are doing, He is seeing. That is, you are the object, He is the subject. He sees whatever you do. He sees whatever you think.
    To think is to speak within the mind. Whatever you think, whatever you speak within your mind, is then and there tape-recorded by Him. So nothing remains secret. So while doing your meditation and other forms of Sádhaná, you should always remember that He is your Supreme Subject and you are His object.
    ”Shrii Shrii Anandamurti “             
    (Ánanda Vacanámrtam XII, 33)

    जवाब देंहटाएं