क्या प्रउत का कोई विकल्प है ?

क्या प्रउत का कोई विकल्प है ?
          यह प्रश्न मुझे सहस्त्र बार पूछा जाए तो भी -
उत्तर मिलेगा   - नहीं, नहीं और कोई नहीं।
         मेरे इस उत्तर से आनन्द मार्गी एवं बाबा के शिष्य शत प्रतिशत संतुष्ट हो जाएंगे, लेकिन यह प्रश्न विश्व के खुले मंच पर किया जाए तो क्या उत्तर आएगा। इसे समझ कर इस विषय का चयन किया गया है।
        श्री श्री आनन्दमूर्ति जी का आविर्भाव इस धरा पर  व्यष्टि को आत्म मुक्ति के पथ पर ले चलने एवं एक मानव समाज के निर्माण हेतु हुआ है।  उन्होंने ने अपने प्रथम उद्देश्य को मूर्त रुप देने के लिए इस विश्व धरा पर भक्ति की गंगा बहा दी है। जो प्रभात संगीत, कीर्तन साधना, ध्यान, गुरु सकाश, पंचजन्य, गुरु वंदना एवं साष्टांग में स्पष्ट दिखाई देती है। तथा अपने दूसरे उद्देश्य के लिए आनन्द मार्ग दर्शन, प्रउत अर्थव्यवस्था, नव्य मानवतावादी सिद्धांत एवं मोइक्रोवाइटा थ्योरी का प्रादुर्भाव किया है। उनके यह सभी अवदान मनुष्य के लिए वरदान है। 
       श्री श्री आनन्दमूर्ति जी ने अपने उपरोक्त सभी अवदान को मूर्त रुप देने के लिए कार्यकर्ताओं तथा स्वंयसेवकों के दल को यम नियम, पंचदश शील, षोडश विधि, आचरण संहिता की व्यवहारिक विधाओं से परिस्कृत, प्रशिक्षित एवं सुसंस्कारित किया है।
               श्री श्री आनन्दमूर्ति जी के कार्यकर्ताओं के उक्त गुणों के बल पर मैं कह  सकता हूँ कि उनके किसी भी अवदान का विश्व में कोई काट नहीं है। यदि बाबा के बेटे बेटियां के पास यदि उपर्युक्त गुण नहीं होते तो शायद में विश्व के समक्ष इतनी दृढ़ता से अपना प्रश्न नहीं रख पाता।
        एक सदविप्र वह शक्ति है, जो बाबा की अमूल्य धरोहर न केवल सजाकर व संवारकर रख सकता है। अपितु इसमें संवृद्धि भी कर सकता है। यदि बाबा को एक भी सदविप्र नहीं मिला तो बाबा के यह सभी अवदान आसमानी सितारों की सुन्दरता बनकर रह जाएंगे। स्वयं बाबा से सिखा है कि विचारों का महानता, विचारों के वाहक के आचरण  पर निर्भर करता है।
        जहाँ सिद्धांतों एवं विचारों के वाहकों की गुणवत्ता का इतना ध्यान रखा गया है, वहाँ के सिद्धांत की गुणवत्ता प्रश्न करना नादानी होगी। बाबा विश्व के प्रथम विचारक है, जिन्होंने ने व्यवस्था निर्माताओं में आध्यात्मिक नैतिकता को अनिवार्य किया है।
       अब मैं पुनः विषय पर चलता हूँ, क्या प्रउत का कोई विकल्प है? प्रउत का विश्व में यदि कोई  विकल्प है तो वह उसका मातृ दर्शन आनन्द मार्ग है। इसके अतिरिक्त प्रउत का कोई विकल्प मेरी दृष्टि में नहीं है।
        पूंजीवाद, साम्यवाद, समाजवादी, मिश्रित अर्थव्यवस्था तथा कथित एकात्मक मानववादी आर्थिक मूल्यों में प्रउत के समक्ष खड़े रहने का दम नहीं है। यदि इनमें दम होता तो यह अपने नागरिकों की न्यूनतम आवश्यकता पूर्ण करने का वचन देती। प्रउत विश्व की प्रथम अर्थव्यवस्था है,जो दुनिया को अन्न, वस्त्र, आवास, शिक्षा व चिकित्सा को पूर्ण करने का वचन देती है। इसलिए तो हम प्रमाण सहित कहते है कि प्रउत का कोई विकल्प नहीं है।
          प्रउत गुणीजन का आदर, समाज के मानक में वृद्धि, समाज की आज्ञा के बिना धन अकर्तव्य, संसाधनों का चरमोत्कर्ष, विवेकपूर्ण वितरण, संभावनाओं के चरमोपयोग, शारीरिक मानसिक शक्तियों के उपयोग में

सुसंतुलन तथा देश, काल व  पात्र के अनुसार उपयोगिता में परिवर्तन की बात कहता है। यह गुण विश्व में विद्यमान एवं अविद्यमान किसी भी अर्थव्यवस्था में नहीं है। अतः प्रमाणित होता है कि प्रउत का कोई विकल्प नहीं है।
           प्रउत का अनुसरण कर कोई अर्थव्यवस्था  इन गुणों का अपने में समावेश कर भी ले, तो भी अपने कार्यकर्ताओं में सदविप्र सी गुणवत्ता का संचार नहीं ला कर सकती है। क्योंकि उनके पास आनन्द मार्ग जैसा दर्शन नहीं है। प्रउत का जन्म आनन्द मार्ग दर्शन के गर्भ होता है। इसलिए स्व सिद्ध  हो जाता है कि प्रउत का कोई विकल्प नहीं है।
       जहाँ बाबा है, उस व्यवस्था का कोई विकल्प  हो ही नहीं सकता है।
➡ श्री आनन्द किरण

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