प्रउत के समाज आंदोलन में भाषागत समाज क्यों?
✍ एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज की यात्रा के मार्ग में प्रउत समाज आंदोलन में भाषागत नाम पर आधारित सामाजिक इकाइयां (समाज ), एक बार बुद्धिजीवियों को सोचने को विवश करती है। इसे देखकर ही उक्त विषय का चयन किया गया है।
प्रउत की सामाजिक आर्थिक इकाइयां के संगठन में - समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक क्षमता(संभावना), नस्लीय समानता व भावनात्मक समानता (भाषा, साहित्य एवं संस्कृति) तत्वों का समावेश किया गया है। यहाँ नस्ल व भाषा शब्द अवश्य ही विचारणीय है।
प्रउत की सामाजिक आर्थिक इकाइयां के संगठन में - समान आर्थिक समस्या, समान आर्थिक क्षमता(संभावना), नस्लीय समानता व भावनात्मक समानता (भाषा, साहित्य एवं संस्कृति) नामक तत्वों के समावेश करने की आवश्यकता थी। इसलिए इनका समावेश किया गया है। भाषा व्यक्ति की जैव भौगोलिक अभिव्यक्ति है। व्यक्ति की मातृभाषा उसकी अभिव्यक्ति के सबसे उपयुक्त साधन है तथा भाषा का कार्य सांस्कृतिक परंपरा एवं मर्यादाओं को सुरक्षित रखना एवं उसमें संवृद्धन करना है। स्थानीय भाषा से उस जनगोष्ठी की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक अभिव्यक्तियाँ जुड़ी रहती है। अतः समाज इकाइयों के संगठन में भाषा तत्व का समावेश नितांत आवश्यक था। नस्ल का अर्थ उस जनगोष्ठी की वह विशेषता है, जो उन्हें अपनी पहचान देती है। नस्ल को जाति एवं सम्प्रदाय मान लेना मनुष्य की भूल है। नस्ल का जाति एवं सम्प्रदाय से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। नस्ल का सामाजिक आर्थिक इकाई के इतिहास, साहित्य एवं संस्कृति से अपनत्व का संबंध है। जिससे वह जनगोष्ठी उन तत्वों को अक्षुण्ण रखने का कार्य सरलता व सुगमता से कर सकती है। यदि इस तत्व का समावेश नहीं किया जाता तो साहित्य, संस्कृति एवं इतिहास की रीढ़ कमजोर हो जाती तथा यह मूल्य मृत्यु के निकट पहुँच जाते। बाबा के शब्दों में *"जिस जनगोष्ठी का इतिहास नहीं, उस जनगोष्ठी का भविष्य भी नहीं होता है।"* सामाजिक आर्थिक इकाई के भविष्य सुरक्षित करने के लिए उक्त इकाइयों के संगठन में इन तत्वों का समावेश किया गया।
भाषा एवं नस्ल तत्व के समावेश करने से सामाजिक आर्थिक इकाई को मजबूती प्रदान होती है। लेकिन यह तत्व मानव समाज व वैश्विक एकता के समक्ष चुनौती नहीं बन सकते है क्योंकि इन्हें विश्व बंधुत्व व आध्यात्मिक विकास से सिंचा गया है। वैश्विक एकता एवं एक, अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज की उग्र भाव मनुष्य मनुष्य में भेद सृष्ट नहीं होने देता है।
प्रउत, सर्वजन हितार्थ एवं सर्वजन सुखार्थ प्रेषित किया गया है। इस कार्यों करने के समाज आंदोलन के माध्यम से सबसे अधिक सुगमता से किया जाता है।
अतः निर्विवाद कहाँ जा सकता है कि प्रउत के समाज आंदोलन में भाषागत नाम पर आधारित समाज मानव समाज तथा विश्व एकता में बाधक नहीं है। न ही यह तत्व इसे कमजोर करती है। अपितु यह विविधता में एकता को स्थापित करने का साधन है।
➡ ✍ श्री आनन्द किरण
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