भारतवर्ष की सभ्यता एवं संस्कृति एक समग्र समाज एवं पूर्ण व्यक्ति के निर्माण की कार्यशाला है। यहाँ ऐसा कोई उपकरण नहीं है कि वह संकीर्ण समाज एवं अपूर्ण मानव का निर्माण करता हो। भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को आत्मसात कर निर्मित होने वाला समाज एवं व्यक्ति विस्फोट एवं विध्वंसक नहीं हो सकता है। इस अतिरिक्त भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति से ओतप्रोत समाज एवं व्यक्ति संकीर्ण तथा रुग्ण सोच का नहीं हो सकता है। यदि इस प्रकार की सोच यदि भारतवर्ष अथवा विश्व के किसी भी भूभाग में दिखाई देते हैं तो वह अवश्य ही भारतीय संस्कार एवं आदर्श के विपरीत है। जिसे भारतवर्ष का सुपुत्र नहीं नहीं कहा जा सकता है। भारत का सुपुत्र कभी भी भारतीय संस्कृति के महान प्रतिमानों परित्याग नहीं कर सकता है।
विश्व में तालिबानी सोच संकीर्ण एवं विध्वंसक रही है। इस चिन्तन के कारण विश्व शांति पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हुआ है। इस चिन्तन में आबद्ध रुग्ण समुदाय के कारण प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के स्मृति कला एवं साहित्य नष्ट कर दिया है। जो मानवता को शर्मसार करने वाला साबित हुआ है।
हिन्दू शब्द मध्यकाल में ईरानियों द्वारा सैधव प्रदेश के निवासियों के लिए प्रयोग किया गया शब्द है। कालांतर में यह शब्द भारतवर्ष के ऐसे समुदाय के लिए जाने लगा । जो वैदिक सिद्धांतों एवं पौराणिक देवी देवताओं में विश्वास करते है। कतिपय व्यक्ति इसे भारत भूभाग में निवास करने वाले समुदाय के लिए प्रयोग में किया जाने लगे है। हिन्दूत्ववादी मजहब के आधार पर स्वतंत्र पाकिस्तान के उदय के बाद एक संगठन द्वारा अपनी मांग मजबूत करने के लिए हुआ है। विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को अपने सृजनकारी विचारों का संरक्षण एवं प्रचारण करने का मौलिक एवं मानवाधिकार है। विध्वंसक एवं रूढ़िवादी विचार को अभिधारण कर समुदायों के मध्य द्वेष पैदा करने वाला चिन्तन व्यष्टि एवं समष्टि के खतरनाक है।
हिन्दूत्ववादी चिन्तन रखना मात्र को तालिबानी सोच कहना गलत एवं निराधार है।भारतीय संस्कृति के महान सूत्र विश्व शांति एवं विश्व परिवार की रचना में सहायक है। हिन्दूत्व के नाम इन महान सूत्रों का अभिधारण करने वाले सिद्धांतों का पौषक एवं प्रचारक विश्व समाज के लिए वरदान है। इसके विपरीत साम्प्रदायिक वैमनस्य एवं समाज में विध्वंसक पैदा कर अपने आजीविका का संचालन करने वालों की गतिधारा तालिबानी सोच के तुल्य होती जाती है।
सारांश में हिन्दूत्वादी चिन्तन तालिबानी नहीं है। हिन्दूत्व के नाम पर साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाली सोच तालिबानी है।
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लेखक :- करन सिंह राजपुरोहित उर्फ आनंद किरण
Contact
anandkiran1971@gmail.com
विश्व में तालिबानी सोच संकीर्ण एवं विध्वंसक रही है। इस चिन्तन के कारण विश्व शांति पर प्रश्न चिन्ह खड़ा हुआ है। इस चिन्तन में आबद्ध रुग्ण समुदाय के कारण प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति के स्मृति कला एवं साहित्य नष्ट कर दिया है। जो मानवता को शर्मसार करने वाला साबित हुआ है।
हिन्दू शब्द मध्यकाल में ईरानियों द्वारा सैधव प्रदेश के निवासियों के लिए प्रयोग किया गया शब्द है। कालांतर में यह शब्द भारतवर्ष के ऐसे समुदाय के लिए जाने लगा । जो वैदिक सिद्धांतों एवं पौराणिक देवी देवताओं में विश्वास करते है। कतिपय व्यक्ति इसे भारत भूभाग में निवास करने वाले समुदाय के लिए प्रयोग में किया जाने लगे है। हिन्दूत्ववादी मजहब के आधार पर स्वतंत्र पाकिस्तान के उदय के बाद एक संगठन द्वारा अपनी मांग मजबूत करने के लिए हुआ है। विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को अपने सृजनकारी विचारों का संरक्षण एवं प्रचारण करने का मौलिक एवं मानवाधिकार है। विध्वंसक एवं रूढ़िवादी विचार को अभिधारण कर समुदायों के मध्य द्वेष पैदा करने वाला चिन्तन व्यष्टि एवं समष्टि के खतरनाक है।
हिन्दूत्ववादी चिन्तन रखना मात्र को तालिबानी सोच कहना गलत एवं निराधार है।भारतीय संस्कृति के महान सूत्र विश्व शांति एवं विश्व परिवार की रचना में सहायक है। हिन्दूत्व के नाम इन महान सूत्रों का अभिधारण करने वाले सिद्धांतों का पौषक एवं प्रचारक विश्व समाज के लिए वरदान है। इसके विपरीत साम्प्रदायिक वैमनस्य एवं समाज में विध्वंसक पैदा कर अपने आजीविका का संचालन करने वालों की गतिधारा तालिबानी सोच के तुल्य होती जाती है।
सारांश में हिन्दूत्वादी चिन्तन तालिबानी नहीं है। हिन्दूत्व के नाम पर साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने वाली सोच तालिबानी है।
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