बाल दिवस क्या एवं क्यों?
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म दिवस भारतवर्ष में बाल दिवस के रुप में मनाएँ जाने की परंपरा है। भारत सरकार ने भी इस दिवस बाल दिवस के रुप में मान्यता प्रदान की है। आज के दिन का अधिकांश समय चाचा नेहरू जी को श्रद्धांजलि देने में खर्च हो जाता है। शेष बचा समय बाल दिवस की शुभकामना देने एवं लेने में बीत जाता है। मुझे बाल दिवस की महत्ता को चित्रित करने वाला एक भी विचार अथवा विचारधारा से रूबरू होने का अवसर नहीं मिला। नेताओं की जयंतियों चिरस्थायीत्व प्रदान करने का एक सरल एवं सुगम माध्यम उनके जन्मदिन को किसी दिवस के रुप में घोषित करना है। मेरे निजी विचार से किसी दिवस विशेष को किसी एक व्यक्तित्व में केन्द्रित कर देखना उस दिवस एवं व्यक्तित्व के साथ सही मूल्यांकन करना नहीं है। दिवस की महत्ता अपने स्तर पर रहने दीजिए तथा जयंती को अपनी जगह पर।
       बाल दिवस बच्चों की भावना, जीवनशैली एवं विचारों को पढ़ने,  समझने एवं जानने का अवसर है। एक बालक जो कल समाज का नागरिक बनेगा। उसका आज समाज की दिशा एवं दशा तय करेगा। समाज का दायित्व है कि वह अपने भविष्य को अच्छे से संभाले, संवारे एवं निखारें। जो समुदाय अपने इस दायित्व का बेखुबी से निवहन कर लेता है। वह समुदाय अपना भविष्य सुरक्षित एवं सुनिश्चित कर लेता है। वह आने वाले युग में समाज का प्रतिनिधित्व करने का अवसर प्राप्त करता है। इसके विपरीत उपरोक्त दायित्व के निवहन में असफल रहता है अथवा कोई चुक करता है। उसका भविष्य भी प्रश्नों के घेरे में होता है। इसलिए समाज का एक दिवस विशेष में तदानुकुल दायित्व याद दिलाने का एक प्रयास होता है। कोई दिवस को एक तरफा माना नहीं गया है। यहाँ आदान व प्रदान दो तरफा चलने वाली प्रक्रिया है। बाल दिवस पर ही ध्यान केंद्रित करे तो इस दिन समाज अपने भविष्य के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निवहन करता तो बालक अपने उत्तरदायित्व एवं जिम्मेदारी को याद करता है। कई विद्वान इस दो तरफा चलने वाली प्रक्रिया को व्यापार की संज्ञा दी है। यह व्यापार हो सकता है, यदि दो पक्ष कुछ शर्त पर अपने उत्तरदायित्व का आदान प्रदान करता हो। इसके विपरीत अपने फर्ज को फर्ज समझकर निवहन करने वाली प्रक्रिया दो तरफा अथवा बहु तरफा होने पर व्यापार की परिधि में नहीं जाती है।
        बाल दिवस की आवश्यकता क्या है ? यह प्रश्न भी कम महत्वपूर्ण नहीं है। किसी भी दिवस मात्र से उस वस्तु, व्यक्ति, पद अथवा पीढ़ी के प्रति विचार कर कोई समाज अपने दायित्व का पूर्णतया निवहन नहीं कर सकता है। इसकी परिपूर्णता एवं सफलता के के लिए सतत प्रयास करने की आवश्यकता है। दिन विशेष तो मात्र उस विशेष की आवश्यकता एवं उपयोगिता को गुरुत्व देता है तथा सतत निवहन हेतु जागरूकता एवं क्रियाशीलता का विकास करता है। बाल दिवस की आवश्यकता इसलिए है कि मनुष्य अपनी जिम्मेदारी के प्रति उदासीन नहीं बने तथा बालक के मन में भी स्वयं के कुछ होने के जिम्मेदारी का बोध करवाने के लिए होती है। यह बात सभी दिवसों पर उतनी ही सटीक एवं खरी उतरती है जितनी बाल दिवस के लिए।
      बाल दिवस की शुभ वेला पर में यह शब्दमाला भावी पीढ़ी के कल्याणार्थ प्रेषित करता हूँ।
----------------------------------
लेखक:- करणसिंह शिवतलाव उर्फ आनंद किरण