एकाधिकार का दंश और प्रउत का आह्वान : सेवा क्षेत्र में क्रांति! (The sting of monopoly and the call of Prout : Revolution in the service sector!)


आज देश के आर्थिक क्षितिज पर Indigo की Monopoly एक भयावह तस्वीर प्रस्तुत करती है। यह वह दृश्य है जहाँ स्वच्छ प्रतियोगिता (healthy competition) धीरे-धीरे एकाधिकार (monopoly) के विकराल रूप में बदलती जाती है। यह पूंजीवाद का वह भयंकर दुष्परिणाम है जो आज वायुयान जगत में स्पष्ट दिख रहा है।
यदि यह पूंजीवादी रोग समूल आर्थिक जगत में फैल गया, तो राष्ट्र की सम्पूर्ण व्यवस्था एक सूखे पटाखे की तरह फूट जाएगी। अब समय आ गया है कि हम पूंजीवाद और साम्यवाद की पुरानी बहसों से ऊपर उठकर एक नई अर्थव्यवस्था की आवश्यकता को पहचानें।

विश्व की डाँवाडोल सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था को नूतन आयाम देने की तलाश हमें सीधे श्री प्रभात रंजन सरकार  की आदर्श अर्थव्यवस्था प्रउत (PROUT) की ओर ले जाती है!

       "लाभ नहीं, सेवा ही मूल; सबको मिले              बुनियादी फूल।
        प्रउत की यह अटल कहानी; सुखद                भविष्य की है निशानी।"



प्रउत (PROUT - Progressive Utilization Theory) अर्थात प्रगतिशील उपयोग तत्व, एक ऐसा सिद्धांत है जो किसी भी निजी व्यवस्था को इतना विशाल नहीं होने देता कि वह समाज के वर्तमान और भविष्य को तय करे। साथ ही, यह सार्वजनिक क्षेत्र में पनपने वाले आलस्य और अव्यवस्था को भी रोकता है, जिससे अर्थव्यवस्था रुग्ण न हो।
राष्ट्र, विश्व और समाज के उज्ज्वल भविष्य के लिए PROUT को अपनाना अपरिहार्य है!


प्रउत का केंद्रीय लक्ष्य स्पष्ट है : सभी को उनकी बुनियादी आवश्यकताएँ (Basic Necessities)—भोजन, वस्त्र, आवास, चिकित्सा और शिक्षा—उपलब्ध हों, और गुणीजन का सम्मान बना रहे। सेवा क्षेत्र के प्रबंधन में इसी महान लक्ष्य को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।


प्रउत, उन सेवाओं को सामूहिक कर्तव्य (Collective duty) मानता है जो लोगों की बुनियादी आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं, और उन्हें निजी लाभ के लिए उपयोग करने की अनुमति नहीं देता।
 
∆  (i) शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था (Education and Medical system): ये सेवाएँ हर नागरिक को निःशुल्क और उच्च गुणवत्ता के साथ मिलनी चाहिए। प्रउत के तहत, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को निजी लाभ-प्रेरित निगमों के बजाय, सामाजिक आर्थिक इकाई या समाज प्रशासन द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।
 
∆  (ii) सार्वजनिक उपयोगिताएँ (Public Utilities) : परिवहन, संचार और बिजली जैसी प्रमुख सेवाएँ "नो प्रॉफ़िट, नो लॉस" (No Profit, No Loss) के आधार पर चलाई जाएँगी। इनका संचालन केन्द्र सरकार अथवा विश्व सरकार द्वारा होगा (आवश्यकतानुसार राष्ट्रीय सरकार को भी उत्तरदायित्व दिया जा सकता है), जिससे इनकी उपलब्धता और वहनीयता (affordability) सभी के लिए सुनिश्चित हो सके।


प्रउत, अर्थव्यवस्था को विकेन्द्रीकृत (Decentralized) करने और आर्थिक लोकतंत्र (Economic Democracy) स्थापित करने के लिए सहकारी समितियों (Co-operatives) पर विशेष जोर देता है।
 
∆ (i) व्यापार और बैंकिंग (Business and Banking) : खुदरा व्यापार, स्थानीय बैंकिंग और अन्य उपभोक्ता सेवाएँ मुख्य रूप से उपभोक्ता सहकारी समितियों और उत्पादक सहकारी समितियों के माध्यम से संचालित होंगी। इससे बिचौलियों का शोषण समाप्त होगा और लाभ स्थानीय समुदाय के सदस्यों के बीच वितरित होगा।
 
∆ (ii) उपभोक्ता की आवश्यकताएँ प्राथमिकता (Consumer needs rather than producer benefits of services) :  सहकारी समितियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि सेवाओं का आधार उत्पादक लाभ नहीं, बल्कि उपभोक्ता की आवश्यकता (Need-based Consumption) हो।


दक्षता और सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए प्रउत सेवा क्षेत्र को तीन अलग-अलग स्वामित्व स्तरों द्वारा प्रबंधित करने का प्रस्ताव करता है। 
 
∆ (i) प्रमुख सार्वजनिक स्वामित्व (Key Public Ownership) : बड़ी, आवश्यक उपयोगिताएँ जो राष्ट्रीय महत्व की हैं (जैसे रेल, राष्ट्रीय राजमार्ग, बड़े संचार नेटवर्क) विश्व या राष्ट्रीय सरकार द्वारा नियंत्रित की जाएँगी। इनका एकमात्र उद्देश्य सामाजिक कल्याण होगा और ये लाभ के उद्देश्य से नहीं चलाई जाएँगी।
 
∆ (ii) सहकारी स्वामित्व (Cooperative Ownership): बुनियादी और स्थानीय स्तर की सेवाएँ जो सीधे समुदाय की आवश्यकताओं से जुड़ी हैं (जैसे स्थानीय बैंकिंग, खुदरा व्यापार, स्थानीय स्वास्थ्य और शिक्षा सुविधाएँ) सहकारी समितियों (उत्पादक और उपभोक्ता) द्वारा प्रबंधित की जाएँगी। यह मॉडल आर्थिक शोषण को रोकने और स्थानीय लोगों को सशक्त बनाने पर केंद्रित होगा।
 
∆  (iii) विकेन्द्रीकृत निजी स्वामित्व (Decentralized Private Ownership): व्यक्तिगत कौशल और रचनात्मकता पर आधारित छोटी और विशेष सेवाएँ (जैसे छोटी मरम्मत सेवाएँ, व्यक्तिगत सलाहकार सेवाएँ, कला और हस्तशिल्प) छोटे निजी उद्यमियों द्वारा चलाई जाएँगी। यह व्यक्तिगत अभिव्यक्ति और नवाचार को प्रोत्साहन देगा।


प्रउत के मूलभूत सिद्धांत संसाधनों के अधिकतम उपयोग (Maximum Utilization) और तर्कसंगत वितरण (Rational Distribution) पर केंद्रित हैं।
 
∆ (i) मानव पूंजी का अधिकतम उपयोग (Maximum utilization of human capital) : सेवा क्षेत्र में इसका अर्थ है कि मानव पूंजी (Human Capital) का अधिकतम उपयोग हो। बेरोजगारी को खत्म करने के लिए काम के घंटे कम किए जा सकते हैं, ताकि काम सभी में बाँटा जा सके।
 
∆  (ii) क्षमता का समाज हित में सुसंतुलित उपयोग   (Good Balanced use of potential for the benefit of society) :- अकुशल श्रम की सेवाओं से लेकर अत्यधिक कुशल (जैसे IT, इंजीनियरिंग, डॉक्टरी) सेवाओं तक, हर व्यक्ति की क्षमता और कौशल का सुसंतुलित उपयोग देश और समाज के अधिकतम  हित में किया जाना चाहिए।

संक्षेप में, प्रउत सेवा क्षेत्र को केवल लाभ कमाने का साधन नहीं, बल्कि सामाजिक विकास, आर्थिक लोकतंत्र और सभी के लिए बुनियादी आवश्यकताओं की गारंटी का एक महत्वपूर्ण उपकरण मानता है।

           "प्रउत नहीं केवल सिद्धांत; यह जीवन              का है नवंत।
            भ्रष्टाचार हो चूर-चूर; समाज चले                     सुख-भरपूर।।"



प्रकाशन सचिव PSS
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