शांति संग्राम का परिणाम है। (Peace is the result of struggle.)



महान दार्शनिक श्री प्रभात रंजन सरकार ने कहा है कि शांति संग्राम का परिणाम है। संग्राम का अर्थ युद्ध अथवा लड़ाई ही नहीं होता है। संग्राम का अर्थ कुव्यवस्था के विरुद्ध सुव्यवस्था का प्रहार है। जब तक कुव्यवस्था रहेगी तब तक सुव्यवस्था स्थापित नहीं होगी। इसलिए सुव्यवस्था को कुव्यवस्था के विरुद्ध संघर्ष करना ही होता है। यह संघर्ष शांति पूर्ण भी हो सकता है तथा शक्ति संचय के द्वार उग्र भी हो सकता है तथा तीव्र शक्ति संपात के द्वारा रक्तरंजित भी हो सकता है। अतः सत्पुरुषों को संघर्ष से दूर नहीं रहना चाहिए। 

सुव्यवस्था जब कुव्यवस्था को पराजित कर देती है तब उसे सुव्यवस्था होने का परिचय देने के लिए समाज की समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि को सुनिश्चित करना आवश्यक है। समाज की समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि व्यक्ति अथवा नागरिक की समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि में निहित है। व्यक्ति राष्ट्र के प्रति तब तक समर्पित रहेगा, जब तक राष्ट्र अथवा समाज उसके अभिभावक के रूप में सामाजिक आर्थिक संरक्षण प्रदान करता है। अतः व्यक्ति राष्ट्र के लिए है तथा राष्ट्र व्यक्ति के लिए है। इस बात को भूले बिना नहीं चल सकता है। 

जब सुव्यवस्था व्यक्ति की समृद्धि, ऋद्धि एवं सिद्धि के लिए चिन्तन करता है तब उसे सबसे पहले सामाजिक एवं आर्थिक क्षेत्र में जो असंतुलन दिखाई देता है, उसे खत्म करना चाहिए। व्यक्ति के सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्र अलग-अलग होंगे तब तक असंतुलन बना रहेगा, जब यह असंतुलन खत्म कर दिया जाएगा तब सुव्यवस्था का शुभारंभ होगा। सरल शब्दों में समझा जाए तो व्यक्ति की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि में पार्थक्य नहीं होना चाहिए। जो जन्मभूमि है वही व्यक्ति की कर्मभूमि भी हो, यह सुव्यवस्था का प्रथम सूत्र है। जब व्यक्ति की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि में पार्थक्य है तब तक व्यक्ति दोहरी जिन्दगी जीनी पड़ती है। दोहरी जिन्दगी किसी के लिए लाभप्रद नहीं होती है। अतः व्यक्ति को रोजगार मातृभूमि पर ही मिले, यह सफलता एवं सुव्यवस्था का प्रथम सूत्र है। मातृभूमि के संसाधनों, प्रशासनिक व्यवस्था एवं राजनैतिक व्यवस्था पर स्थानीय लोगों का ही प्रतिनिधि होना चाहिए। यही से सुव्यवस्था अपने द्वार को खोलती है। 

सुव्यवस्था का द्वितीय सूत्र स्थानीय लोगों की न्यूनतम आवश्यक को पूर्ण करना व्यक्ति का नहीं सम्पूर्ण समाज का दायित्व है। जब तक रोटी, कपड़ा, मकान, चिकित्सा एवं शिक्षा के लिए व्यक्ति मारामारा घूमता रहेगा तब तक सुव्यवस्था नहीं बन सकती है। अतः व्यक्ति को राष्ट्र की ओर क्रयशक्ति का मूल अधिकार मिलना चाहिए। कम से कम इतनी न्यूनतम आय प्राप्त करने का व्यक्ति को मूल अधिकार है कि वह अपने अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की व्यवस्था कर सके। 

सुव्यवस्था का एक ओर संदेश है कि जिस देश में चिकित्सा एवं शिक्षा का व्यवसायीकरण होता है। चिकित्सा एवं शिक्षा बिकती है, वह देश कुछ भी हो सकता है लेकिन महान एवं विश्व गुरु नहीं हो सकता है। भारतवर्ष इतिहास में महान था तथा विश्वगुरु था, उसके तीन आधार थे, शिक्षा एवं चिकित्सा का बाजार नहीं सजता था, रोटी, कपड़ा, मकान के लिए व्यक्ति मारामारा नहीं घूमता था तथा समाज में आध्यात्मिक नैतिकतवान व्यक्ति को प्रभुत्व था। 

अतः सभी सोचना चाहिए कि यदि राष्ट्र उपरोक्त दिशा में चल रहा है तो सुरक्षित हाथों में है, अन्यथा राष्ट्र को सुरक्षित हाथों में होना चाहिए। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को सुरक्षित हाथ ढूंढ़ना चाहिए।



✒️करण सिंह शिवतलाव की कलम से

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