11 मई 2025 रविवार को अखिल भारतीय ब्राह्मण महासभा ने मुझे विप्र कुलभूषण सम्मान प्राप्त करने के लिए आमंत्रित किया। मैंने हमारे जयपुर के स्थानीय गृही आचार्य श्री रामफूल जी से अनुमति लेकर इस सम्मान को प्राप्त करने के लिए गया। उस कार्यक्रम में चर्चा ब्राह्मणत्व विषय पर चर्चा हो रही थी। सभी वक्ता ब्राह्मण के स्वभाव, कर्तव्य एवं सिद्धांत पर अपने अपने विचार रख रहे थे। मैंने भी इसी विषय पर आनन्द मार्ग की धारणा को समझाया। वह पाठकों के समक्ष रखकर अपने कर्तव्यों निर्वहन करता हूँ।
उद्बोधन के मुख्य बिन्दु
(१) आध्यात्मिक नैतिकता सद्विप्र का प्रथम परिचय होता है - मैंने कहा कि भारतीय शास्त्रों में वर्णित सप्तर्षि मंडल के सबसे महत्वपूर्ण ब्रह्मर्षि वशिष्ठ अपने आध्यात्मिक नैतिकबल से पहचान बना लिए थे। वही कही जाते थे, उनकी परिचय उनकी आध्यात्मिक नैतिकता की शक्ति दे देती थी। इसलिए सद्विप्र बनने की यात्रा में निकले राही को अथवा अपने को ब्राह्मण अथवा सद्विप्र मानने वाले को आध्यात्मिक नैतिकता को धारण करना ही होगा।
(२) केवल आध्यात्मिक ही आध्यात्मिक नैतिकतावान होना होगा - रामायण का पात्र रावण बहुत बड़ा आध्यात्मिक पुरुष बताया गया है। वह अष्ट सिद्धि एवं नव निधि का धनी होते हुए भी नैतिकता के अभाव में मारा गया। ऐसा ब्राह्मण होना भी धिक्कार है। ज्ञान के अभिमान के विप्र पतनोन्मुखी होने सैकड़ों उदाहरण है, इसलिए ज्ञान को पचाने आध्यात्मिक नैतिकता का जागरण करना एक सद्विप्र की पहचान है। केवल आध्यात्मिक ही नहीं नैतिकतावान भी होना आवश्यक है। केवल नैतिकतावान होने पर भी द्रोणाचार्य एवं कृपाचार्य की भांति अधर्म के हाथों ठगे जाओगे। अतः आध्यात्मिक नैतिकतावान व्यक्ति सद्विप्र की दीक्षा प्राप्त कर सकता है।
(३) आध्यात्मिक नैतिकतावान होना ही पर्याप्त नहीं पाप शक्ति का दमन करने का साहस भी जरूरी है - परशुराम सभी ऋषियों में भगवान की उपाधि प्राप्त करने वालों की श्रेणी में अग्रणी थी। उनको आज का युवा अपना आदर्श मानता है क्योंकि उन्होंने आध्यात्मिक नैतिकता के साथ पाप को दमन करने का साहस दिखाया था। अतः सद्विप्र को सदैव पाप शक्ति के विरुद्ध अविराम संघर्ष जारी रखना ही होगा। चाणक्य ने अपने धर्म का निर्वहन किया था तथा अनैतिक शक्ति के समूल नाश का संकल्प धारण किया था। अतः आध्यात्मिक नैतिकता के साथ पाप के विरुद्ध संघर्ष करने की शक्ति ही सद्विप्र बनाती है।
(४) ब्राह्मण अथवा सद्विप्र जन्म से नहीं कर्म से बनते हैं - शास्त्र कहता है कि जन्म से सभी शूद्र है, संस्कार ही मनुष्य को दूसरा जन्म देकर वैश्य, क्षत्रिय, विप्र एवं ब्राह्मण बनाते हैं। श्लोक के अनुसार वेद पाठी विप्र कहलाता है तथा ब्रह्म को जानने वाला ब्राह्मण कहलाता है। यम नियम में प्रतिष्ठित भूमाभाव का साधक, जो पाप शक्ति के विरुद्ध संघर्ष करता है, वह सद्विप्र कहलाता है। अतः जन्मगत ब्राह्मण का अभिमान एवं सिद्धांत छोड़कर कर कर्मगत ब्राह्मण बनने के लिए निकल पड़ो। यही सच्चा मनुष्य धर्म है। बाल्मीकि जन्म से ब्राह्मण नहीं थे, विश्वामित्र भी जन्म से ब्राह्मण नहीं थे फिर भी उन्होंने कर्म के बल ब्राह्मणत्व अर्जित किया।
(५) ब्राह्मणत्व के लिए ब्रह्म ज्ञान की आवश्यकता है, शिखा, तिलक एवं जनैऊ की आवश्यकता नहीं - मैं अपने वक्तव्य के अन्त: में वैदिक प्रमाण को सामने रखकर गर्व के साथ उद्घोषित करना चाहूंगा कि ब्रह्म प्राप्त की साधना में निकले व्यक्ति को बाहरी शिखा, जनैऊ एवं तिलक को छोड़कर आत्म ज्ञान की शिखा, आत्मसाक्षात्कार की जनैऊ तथा आत्मसमर्पण का तिलक धारण करना होगा। आत्मज्ञान, आत्मसाक्षात्कार एवं आत्मसमर्पण का तीन सूत्र धारण करने होगे, यही ब्रह्मत्व प्राप्त कराएगा।
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