(Artificial Intelligence vs. Natural Intelligence)
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करण सिंह
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आजकल AI ने तहलका मचा रखा है। यह बहुत से पब्लिक सेक्टर में प्रवेश करने के कारण NI को चुनौती मिलने जा रही है। इसलिए AI को लेकर चिंता भी है तो खुशी भी जाहिर की जा रही है। हमें धरा के भविष्य के विषय में चिन्तन करना है। इसलिए इस विषय को चर्चा में लाया जा रहा है।
धरातल पर रहने वाले सभी लोगों के अन्न, वस्त्र, आवास, चिकित्सा एवं शिक्षा की व्यवस्था करना समाज उत्तरदायित्व है। यदि समाज इस उत्तरदायित्व का निवहन नहीं करता है तो उस समाज कहलाने का अधिकार नहीं है। अतः मनुष्य को घबराने की जरूरत नहीं है, AI के हस्तक्षेप से समाज उनकी रक्षा करेंगे। इसलिए AI पर बुद्धि लगाने से अधिक महत्वपूर्ण कार्य समाज का संगठन करना है। यह NI का AI को प्रथम जबाब होगा। वह एक ऐसे प्रगतिशील समाज की रचना करेगा, जो मनुष्य की न्यूनतम आवश्यक की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेगा तथा मनुष्य उसकी गुणवत्ता निखारने का पूर्ण अवसर देता है।
पूर्णत्व प्राप्त करना, मनुष्य का का प्रथम कर्तव्य है। इसके मनुष्य को आध्यात्मिक पथ पर चलना होगा। AI के युग में मनुष्य को मिलने वाली सुविधाओं का फायदा लेते हुए अपने को आत्मिक पथ पर ले चलना होगा, यह NI को AI का दिया जाने वाला एक ओर अच्छा जबाब है। अतः AI से घबराएं बिना, उसको अपना सहायक मानकर अपने को आध्यात्मिक शक्ति से भर लेना होगा। AI एक यांत्रिक मानसिक शक्ति है। मानसिक शक्ति को आध्यात्मिक शक्ति द्वारा नियंत्रित की जाती है। चूंकि AI एक यांत्रिक मानसिक, उसका नियंत्रण मनुष्य की विशेष मानसिक शक्ति से ही हो रहा है। जब यह उसकी सीमा से पार हो जाएगा, तब आध्यात्मिक शक्ति AI को भी नियंत्रित कर लेगी। अतः मनुष्य की बुद्धिमत्ता यह है कि AI को चुनौती माने बिना AI का सांसारिक कार्यों में अधिकतम सहयोग लेते हुए अपने को अधिक से आध्यात्मिक जगत की ओर ले चलना है।
मानवीय संवेदना को संजोय रखना मनुष्य का स्वभाव है। इनको जीवन निर्माण लगाकर इसका सदुपयोग करना मनुष्य का कर्तव्य भी है। यह संवेदना शक्ति उसे सजग भी बनाती है। उसके बल पर वह नैतिकता में प्रतिष्ठित होता है। नैतिकता का पथ मनुष्य पकड़ रखना है तथा देखना है कि समाज एवं विज्ञान की व्यवस्था कभी भी अयोग्य लोगों के हाथों में नहीं चली जाए। यह व्यवस्था देकर AI का पूर्ण नियंत्रण सद्चरित्र व्यष्टियों के हाथ में देना ही होगा ताकि AI का कोई भी MI दुरूपयोग नही कर सकें। अतः अपनी संवेदना को अपनी दुर्बलता नहीं बनानी, उसे अपनी शक्ति बनाकर AI के काल्पनिक एवं सैद्धांतिक भय को कभी भी यथार्थ नहीं बनने देना है।
AI कभी भी मानवीय बुद्धिमत्ता (HI) से बढ़कर नहीं होती है। मनुष्य के अंदर तो ईश्वर बुद्धिमत्ता (GI) का जागरण करने की क्षमता है। अतः कभी AI, NI से प्रभावशाली नहीं हो सकती है। AI के पास सीमित शक्ति स्रोत है, जबकि NI के पास असीम शक्ति स्रोत है। अतः सीम कभी असीम पर भारी नहीं हो सकता है। यदि AI मनुष्य की बुद्धिमत्ता को दबोचने की कोशिश करेंगीं तो NI असीम से शक्ति जुटाकर उसे उस प्यास को धूमिल कर देगी।
अन्त में हर AI पर भारी है NI.
मनुष्य ही अपनी कलाकृति से डरने लगेगा तो उसको मनुष्य होने पर विश्वास नहीं। अतः AI के खेल से बचने के लिए मनुष्य आध्यात्मिक नैतिकता के पथ कर एक प्राकृत अर्थ युक्त एक अखंड एवं अविभाज्य मानव समाज की रचना करनी ही होगी।
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