हनुमान (Hanuman)

                    
             
           आनन्द किरण
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हनुमान श्री राम को ऋष्यमूक पर्वत की तलहटी में मिलने वाला रामायण का एक पात्र है। जिसे वानरमुखी, अतिबलशाली एवं राम भक्त के रूप में चित्रित किया गया है। इसके बाद कथा कहानियों में हनुमान के जन्म, परिवार एवं पराक्रम का भी चित्रण किया गया है। तत्पश्चात हनुमान को बजरंग बली, पवनपुत्र, मारुति, बालाजी इत्यादि नामों से एक देवता के रूप में पूजा गया है। रामचरितमानस के अनुसार जहाँ भी रामकथा होती है, वहाँ हनुमान पराभौतिक शरीर के साथ पहूँच जाते हैं तथा सच्चे व निर्मल दिल के राम भक्त को दिखते एवं मिलते भी है। यह लोगों की आस्था का प्रश्न है, इसलिए इसका सम्मान करना हम सभी का कर्तव्य है। हम हनुमान पर तो कुछ भी नहीं लिखेंगे लेकिन आध्यात्मिक पर अवश्य ही कुछ लिखना चाहेंगे। 

श्रीमद्भगवद्गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को समझाते हैं पंचभूतों की पूजा करने वाला पंचभूतों को, वृक्ष इत्यादि प्रकृति की पूजा करने वाला प्रकृति को, देवी देवता की पूजा करने वाला देवयोनी को तथा मुझ परमब्रह्म का ध्यान करने वाला मूझे प्राप्त होता है। गीता का यह दृष्टांत आध्यात्मिक शास्त्र के विद्यार्थियों को सिखाता है कि परमब्रह्म के अतिरिक्त कोई भी मनुष्य का ध्येय नहीं है। अत: आध्यात्मिक विज्ञान मनुष्य के कल्याण के लिए परमब्रह्म का ध्यान करने हेतु ध्यान सिखाता है। यहाँ थोड़ा रुककर रामायण के हनुमान जी को ध्येय मानने वाले भक्तों से प्रश्न करते हैं कि हनुमान का ध्यान करना स्वयं श्री कृष्ण के गीता उपदेश का महात्म्य नहीं समझना नहीं है? क्योंकि हनुमान रामभक्त थे? उन्हें शिव का ग्यारहवाँ रुद्र मानने पर भी पूर्णब्रह्म में स्थापित नहीं किया जा सकता है। यह एक अंशावतार ही है। अतः खंड़ पूजा भारतीय शास्त्र की गरिमा में पूर्णत्व प्रदान करने वाली नहीं है। अतः हनुमान जी पूजा से राम मिलना एक गवेषणा को जन्म देता है। गीता कहती है कि देवताओं की पूजा से परमब्रह्म नहीं प्राप्त होते हैं तो हनुमान की पूजा से राम कैसे मिलते हैं? क्योंकि राम तो परमब्रह्म का ही एक नाम है, जो योगियों के हृदय में सदैव रमता है। मैंने पहले ही लिखा है कि हनुमान आपकी आस्था है, इसलिए मैं आपकी आस्था का सम्मान करता हूँ। लेकिन आध्यात्मिक को समझने की अवश्य ही कोशिश करूँगा। इसीक्रम में हनुमान जी का प्रसंग आता है। 

हनुमान शब्द का शाब्दिक अर्थ विकृत ठुड्डी वाला पुरुष है। इस अर्थ में क्या हम विकृत ठुड्डी वाले सभी मनुष्यों को हनुमान कह सकते हैं? चलो इस प्रश्न को अनुत्तरित ही छोड़ देते हैं तथा अन्य नामों की ओर से चलते हैं। हनुमान का मूल नाम मारुति बताया जाता है, जिसका मरुत तत्व से उत्पन्न देव है। माइक्रोविटा विज्ञान में देवयोनी शब्द के लिए अणुजीवत शब्द का प्रयोग आता है। अणुजीवत एवं देवयोनी दोनों ही शब्द का अर्थ तेज, मरु एवं व्योम तत्व से निर्मित शरीर के लिए प्रयोग हुआ है। मरुत तत्व एक पंचमहाभूत का अंग है। उससे उत्पन्न देव सहस्त्रारचक्र के अधिष्ठाता परमशिव पुरुषोत्तम तक कैसे ले जा सकता है? क्योंकि वह स्वयं ही मरुत ही है, जिसका सीमा अनाहत चक्र ही है। आध्यात्मिक जगत का प्रश्न है इसलिए सभी को सोचना है। चलो थोड़ा ओर आगे बढ़ते हैं, हनुमान का एक ओर नाम बजरंगबली भी है। जिसका अर्थ ब्रज की तरह शरीर वाला अर्थात कठोर शरीर वाला अथवा बाहुबल वाला। यह भौतिक जगत की व्याख्या है। आध्यात्मिक विज्ञान के विद्यार्थी को भौतिक विज्ञान अवश्य ही पढ़ना होता है लेकिन भौतिक विज्ञान कभी भी आध्यात्मिक यात्री का लक्ष्य नहीं होता है। रुहानी यात्रा में निकले राही को शरीर का ध्यान रखकर चलना ही होता है लेकिन रुहानी मंजिल ही उनका लक्ष्य होता है। इसलिए बजरंगबली की उपासना कैसे है, रुहानी मंजिल दिखा सकती है? महावीर एवं पवनपुत्र क्रमशः बजरंगबली एवं मारुति के ही पर्याय है। इसलिए चर्चा आवश्यक नहीं है। 

हनुमान जी की चर्चा के आगामी चरण में हनुमान के चिरंजीवीत्व पर चलते हैं। हनुमान भारतीय शास्त्र के चिरंजीवी व्यक्तियों में से एक है। चिरंजीवी का अर्थ है कि अमुक्त पुरुष अर्थात मोक्षप्राप्त नहीं। अर्थात पूर्ण पुरुष नहीं। अतः पूर्णत्व का साधक के आराध्य चिरंजीवी कैसे हो सकता है? परशुराम एक मात्र विष्णु की संभूति है कि विष्णु बनकर नहीं ऋषि बनकर चिरंजीवीत्व प्राप्त करते हैं, क्योंकि मर्यादापुरुषोत्तम राम के युग में अवतारत्व को छोड़ देते हैं। इसलिए परशुराम को देव पुरुष में मानकर पढ़ा जाता है। 

हनुमान के प्रति जिनकी भी आस्था है, मैं उनका आदर करते हुए आध्यात्मिक विज्ञान की चर्चा की है। उसमें मेरा उद्देश्य आध्यात्मिक ज्ञान को समझना था। आध्यात्मिक ज्ञान में शिक्षा दी जाती है कि इस जगत में रहकर किस‌ प्रकार अनन्त की यात्रा में निकलेंगे।? इसलिए अनन्त के अलावा कोई भी मनुष्य का ईष्ट एवं आदर्श नहीं हो सकता है। यही धर्म है। जहाँ धर्म है, वही ईष्ट है। ईष्ट तारकब्रह्म ही है।
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