श्री श्री आनन्दमूर्ति जी बतावे है कै मिनख तीन तरीका सूं महान बण सकै है, ऐ है- साधना, सेवा अर त्याग। आज आपां इण बाबत बात करस्यां।
साधना सूं मिनख नै पूर्णत्व मिलै अर महानता पूर्णत्व मांय ही प्रवेश करै। कोई भी संकीर्ण सोच रै कारण कोई मिनख कदैई महान कोनी बण सकै। महान बणबा रै वास्तै किणी नै व्यापकता होणी जरूरी है। साधना न केवल मिनख नै व्यापक बणावै है बल्कि विराट भी बणावै है। साधना रो असली अरथ ब्रह्म साधना या धर्म साधना कैवै है, जिणरौ मतलब है ब्रह्म नै साधणा। इणरै बल माथै मिनख बिंदु सूं सिंधु बण जावै। नर नै नारायण बणाबा री कला नै साधना भी कैवै है। इण वास्तै, ओ साबित हुयो है कै साधना महान बणबा रो पैलो दरवाजो है।
सेवा मिनख रै दिल नै निर्मल करै है अर उण मांय सूं हर तरै रा विकार नै दूर करण में मदद करै है। इणरै साथै ई सेवा मिनख नै मिनखत्व रै रूप मांय आपरै कर्तव्य सूं जोडिय्यौ राखै। जद मिनख रै मांय मिनखपणा री जागृति हुवै है तो महान बणबा री जातरा सरू हुवै है। इणी वास्तै नीति शास्त्र में कैयो गयो है कै जगत री सेवा भगवान री सेवा है। इण वास्तै निश्चित रूप सूं कैयो जा सकै है कै सेवा महानता रो दूजो पड़ाव है।
त्याग नै मिनख रो महान काम मानीजै। समग्र कल्याण रै वास्तै आपरी निजू खुशी अर हितां रो त्याग करणियो वो एक महान मिनख री श्रेणी मांय आवै है। कोई मिनख फगत त्याग करण आळा भगवा रा कपड़ा आद पैरबा सूं ही त्याग करण आळो कोनी बण सकै। त्यागी बणन खातर मन, वचन अर करम मांय त्याग री भावना अपनाणी पड़ै है। भीष्म पिताम नै सगळा साधुआं अर सन्यासियां मांय सूं सबसूं बडो त्याग करणियो बतायो गयो है क्यूंकै वै मन, वचन अर करम मांय त्याग करण री भावना अपनाई ही। राजा जनक नै सगळा संतां सूं बडो तपस्वी बतायो गयो है क्यूंकै बां रो तपस्या में त्याग घणो मोटो हो। इण रो ओ मतलब कोनी कै सन्यासी कोई त्यागी कोनी है। जे कोई सन्यासी सन्यास व्रत रै साचै अरथ रै साथै जीवै तो बो सबसूं बडो त्याग करणियो बण सकै है। ब्याव नीं करणो त्याग री निसाणी कोनी, त्याग री निसाणी ओ है कै मन वस्तु सूं जुड़्योड़ो नीं है। ब्याव नै धार्मिक करम मानीजै है। जे कोई मिनख सार्वजनिक जीवन रै साथै-साथै व्यक्तिगत जिम्मेदारी नै निभाबा में असमर्थ महसूस करै है तो उणनै ब्याव नीं करण रो एक वैकल्पिक प्रावधान दियो गयो है। विकल्प नै एक संकल्प रै रूप मांय लेवणो सफलता री ओर ले जावै है। इण वास्तै ओ साबित हुयो है कै त्याग महानता री तीजी निसानी है।
श्री श्री आनन्दमूर्ति जी बताते हैं कि मनुष्य तीन रीति से महान बन सकता है, वह है- साधना, सेवा एवं त्याग। आज हम इन पर बात करेंगे।
साधना मनुष्य को पूर्णत्व प्रदान करती है तथा महानता पूर्णत्व में ही प्रवेश करती है। किसी भी संकीर्णता को लेकर कभी भी व्यक्ति महान नहीं बन सकता है। महान बनने के लिए व्यापकता को धारण करना होता है। साधना मनुष्य को व्यापक ही नहीं विराट बनाती है। साधना का सही अर्थ ब्रह्म साधना अथवा धर्म साधना कहा जाता है, जिसका अर्थ ब्रह्म को साधना। इसके बल पर व्यक्ति बिन्दु से सिन्धु बनता है। नर से नारायण बनाने की कला का नाम भी साधना है। अतः सप्रमाण सिद्ध होता है कि साधना महान बनने का प्रथम द्वार है।
सेवा मनुष्य के हृदय को निर्मल बनाती है तथा उसमें सभी प्रकार विकारों समाप्त करने में सहायता करती है। इसके साथ सेवा मनुष्य को उसके मनुष्यत्व रुपी फर्ज के साथ संयुक्त रखती है। जब मनुष्य में मनुष्य का जागरण हो जाता है तब महान बनने की यात्रा आरंभ हो जाती है। इसलिए नीति शास्त्र में कहा गया है कि जगत की सेवा ही ईश्वर की सेवा है। अतः सप्रमाण कहा जा सकता है कि सेवा महानता की दूसरी सीढ़ी है।
त्याग मनुष्य का एक महान कार्य माना गया है। अपने निजी सुख एवं हित समष्टि कल्याण के लिए त्यागने वाला श्रेष्ठ मनुष्य की श्रेणी में आता है। केवल त्याग के प्रतीक भगवा इत्यादि कोई वस्त्र पहनने से ही व्यक्ति त्यागी नहीं बनता है। त्यागी बनने के लिए मन, वचन एवं कर्म से त्याग वृत्ति को धारण करना होता है। भीष्म पितामह को सभी साधु सन्यासियों से बड़ा त्यागी बताया गया है कि क्यों उन्होंने मन, वचन एवं कर्म से त्याग को धारण किया था। राजा जनक सभी साधु सन्यासियों से बड़े तपस्वी बताया गया है क्योंकि उनकी तपस्या में त्याग बहुत बड़ा था। इसका अर्थ यह नहीं कि सन्यासी त्यागी नहीं होता है। सन्यासी यदि सच्चे अर्थ सन्यास व्रत के साथ जीता है तो सबसे बड़ा त्यागी बन सकता है। शादी नहीं करना ही त्याग की निशानी नहीं है, त्याग की निशानी मन का विषय की ओर अनुरक्त नहीं होना है। विवाह को धर्म सहमत माना गया है। कोई मनुष्य सार्वजनिक जीवन के साथ निजी जिम्मेदारी निर्वहन में असमर्थता महसूस करें तो उन्हें विवाह नहीं करने का एक वैकल्पिक प्रावधान दिया गया है। विकल्प को संकल्प के रूप में लेने से सिद्धि होती है। अतः प्रमाणित होता है कि त्याग महानता की तीसरी निशानी है।
[Shri] Anand Kiran "Dev"
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Shri Shri Anandmurti Ji tells that a man can become great in three ways, they are - Sadhana, service and sacrifice. Today we will talk about these.
Sadhana gives perfection to a man and greatness enters only in perfection. A person can never become great by having any narrowness. To become great, one has to adopt broadness. Sadhana not only makes a man broad but also vast. The true meaning of Sadhana is called Brahma Sadhana or Dharma Sadhana, which means Sadhana of Brahma. On the strength of this, a person becomes an ocean from a point. The art of making a man Narayan is also called Sadhana. Hence, it is proved with evidence that Sadhana is the first door to becoming great.
Service purifies the heart of a man and helps in eliminating all types of vices in it. Along with this, service keeps a man connected with his duty of humanity. When the human spirit awakens in a man, the journey to become great begins. Therefore, it is said in ethics that service to the world is service to God. Therefore, it can be said with proof that service is the second step to greatness.
Sacrifice is considered a great act of man. One who sacrifices for his personal happiness and welfare of the society comes in the category of a great man. A person does not become a renunciant just by wearing clothes like saffron etc., which are symbols of sacrifice. To become a renunciant, one has to adopt the attitude of renunciation in mind, words and deeds. Bhishma Pitamah has been described as a greater renunciant than all the sages and saints, as to why he adopted renunciation in mind, words and deeds. King Janak has been described as a greater ascetic than all the sages and saints because the sacrifice in his penance was very great. This does not mean that a renunciant is not a renunciant. If a renunciant lives with the true meaning of renunciation vow, then he can become the greatest renunciant. Not getting married is not the only sign of renunciation, the sign of renunciation is the mind not being attached to material things. Marriage is considered as per religion. If a person feels incapable of discharging personal responsibilities along with public life, then he has been given an alternative provision of not getting married. Taking the option as a resolution leads to success. Hence it is proved that renunciation is the third sign of greatness.
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